पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८३

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पलास २८८२ पलितो ! विणेष रूप से है। फूल को उबालने से एक प्रकार का ललाई छांटकर ठीक करना । जूते का फालतू चमडा आदि लिए हुए पीला रग भी निकलता है जिसका खासकर होली काटना। के अवसर पर व्यवहार किया जाता है। फली की बुकनी कर पलास पापड़ा-सज्ञा पुं० [हिं० पलास+पापड़ा] १ पलास की फली लेने से वह भी अवीर का काम देती है। छाल से एक प्रकार जो औपध के काम मे पाती है। पलास पापडी । ढकपन्ना। का रेशा निकलता है जिसको जहाज के पटरो की दरारों में वि० दे० 'पलास'। भरकर भीतर पानी पाने की रोक की जाती है। जड की पलास पापड़ी-सज्ञा सी० [हिं० पलास + पापडी] दे॰ 'पलास छाल से जो रेशा निकलता है उसकी रस्सियां वटी पापडा'। जाती हैं। दरी और कागज भी इसमे बनाया जाता है । पलाहना -सञ्ज्ञा पुं० [ स० पलायन ] पीछे की ओर हटना। इसकी पतली डालियो को उबालकर एक प्रकार का कत्था भय, प्राकस्मिक प्राघात से पीछे भागना । पलायन करना। तैयार किया जाता है जो कुछ घटिया होता है और वगाल उ.-मुख जोवइ दीवाघरी पाछउ करई पलाह । मारू दीठी मे अधिक खाया जाता है। मोटी डालियों और तनो को सास विण मोटी मेल्हइ घाह । - ढोला०, दू० ६०६ । जलाकर कोयला तैयार करते हैं। छाल पर बछने लगाने से एक प्रकार का गोद भी निकलता है जिसको 'चुनियां गोद' पलिंजो-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक घास जिसके दानो को दुभिक्ष या पलास का गोद कहते हैं । वैद्यक में इसके फूल को स्वादुः पलिक -वि० [सं०] जो तोल मे एक पल हो । एक पल या पल भर के दिनो में अकसर गरीब लोग खाते हैं । कडवा, गरम, कसैला, वातवर्धक, शीतज, चरपरा, मलरोधक, तृषा, दाह, पित्त, कफ, रुधिरविकार, कुष्ठ और मूत्रकृच्छ ( कोई पदार्थ)। का नाशक, फल को रूखा, हलका, गरम, पाक मे चरपरा, पलिका'-सञ्ज्ञा पु० [ से० पर्यक, पल्यक, प्रा. पलिक, पल्लक ] कफ, वात, उदररोग, कृमि, कुष्ठ, गुल्म, प्रमेह, बवासीर और दे० 'पलका' । उ०-नवल वाल पलिका परी, पलक न लागन शूल का नाशक, बीज को स्निग्ध, चरपरा, गरम, कफ और नैन।-मति० प्र०, पृ० ३०४ । कृमि का नाशक और गोंद को मलरोधक, ग्रहणी, मुखरोग, पलिका-सञ्ज्ञा सी० [सं०] तेल निकालने की डाँडीदार खांसी और पसीने को दूर करनेवाला लिखा है। बेलिया। पली। यह वृक्ष हिंदुनो के पवित्र माने हुए वृक्षों में से हैं। इसका विशेष-सम्बत् १००३ के सियादानी शिलालेख मे यह शब्द उल्लेख वेदो तक में मिलता है। श्रौत्रसूत्रो में कई यज्ञ- पाया है। वि० दे० 'घाणक' । पात्रो के इसी की लकडी से बनाने की विधि है । गृह्यसूत्र पलिक्नी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ म० ] वह गाय जो पहली ही बार गामिन के अनुसार उपनयन के समय में ब्राह्मणकुमार को इसी को लकडी का दह ग्रहण करने की विधि है। वसत में पलिक्नी-वि० (स्त्री) जिसके वाल पक गए हो । वुड्डी (वैदिक)। इसका पत्रहीन पर लाल फूलों से लदा हुआ वृक्ष पलिघ-सज्ञा पुं० [सं०] १ कांच का घडा। करावा। २. घडा । अत्यत नेत्रसुखद होता है। सस्कृत और हिंदी के कवियो ३ प्रकार । चारदीवारी । ४ गोपुर । फाटक । ५ ने इस समय के इसके सौंदर्य पर कितनी ही उत्तम अगरी या व्योंडा। अर्गल। दे० 'परिघ'। ६ गोशाला। उत्तम कल्पनाएँ की हैं। इसका फूल अत्यत सु दर तो गोगृह (को०)। होता है पर उसमे गध नहीं होती। इस विशेषता पर भी पलितफरण-सज्ञा पु० [सं० पलि तङ्करण ] पलित करनेवाला । बहुत सी उक्तियां कही गई हैं। श्वेत बनानेवाला [को०] । पर्याय-किसुक । पर्ण । याज्ञिक । रक्तपुष्पक | क्षारश्रेष्ट । वात- पलित'-वि० [ म०] [ वि० सी० पलिता ] २ वृद्ध। बुड्डा । २ पोथ । ब्रह्मवृक्ष । ब्रह्मवृक्षक । ब्रह्मोपनेता । समिद्वर । करक । पका हुमा (केश) । सफेद ( बाल )। उ०—पलित वृद्ध के त्रिपत्रक । ब्रह्मपादप । पलाशक । त्रिपर्ण। रक्तपुष्प। शीश पर सो तो पलित न पेख । गई जवानी भजन विन पुतद् । काप्ठ । यीजस्नेह । कृमिघ्न । वक्रपुप्पक । सुपर्णी । वानी परी विशेष । -राम० धर्म०, पृ०७७ । २ एक मासाहारी पक्षी जो गीध की जाति का होता है। पलित-सञ्ज्ञा पुं० १ सिर के बालों का उजला होना । वाल पकना। पलास'- ससा पु० [अ० स्प्लाइस] वह गांठ जो दो रस्सियो या एक २ वैद्यक के अनुसार एक क्षुद्र रोग जिसपे क्रोध, शोके और ही रस्सी के दो छोगे या भागो को परस्पर जोड़ने के लिये श्रम के कारण शारीरिक अग्नि मोर पित्त सिर पर पहुंचकर दी जाय । (लश०)। वहाँ के वालों को वृद्ध होने के पहले उजला वर देते हैं। ३ शलज । भूरि छरीला। ४ ताप । गरमी। ५ कर्दम । मि०प्र०-करना। कीचड । ६ गुग्गुल । ७ मिचं । ८ केश पाश (को॰) । पनास-सज्ञा पुं० [2] कनवास नाम का एक मोटा कपडा । वि० पलितग्रह -शा पुं० [#०] तगर । गुलचाँदनी। दे० 'वनवास'। पलिती-वि० [सं० पलितिन् ] जिसको पलित रोग हुआ हो । पलित पल्लासना-त्रि० स० [ देश० ] सिल जाने के बाद जूते को काट रोगयुक्त । पके वालोवाला।