पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८४

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पक्षिया २८६३ पलेट शैतान । पलिया--सञ्चा पुं० [ देश० ] पशुओ का एक रोग जिसमे उनका गला दानी, सिंगहा, तूलि पलीतादानी। -प्रेमघन०, भा० १, फूल जाता है। घटेरुपा। पृ०१३। पलिहरा-सज्ञा पुं॰ [ स० परिहर ( = छोड़ देना, वचा देना, बचा ३. एक विशेष प्रकार की कपडे की बत्ती, जिसे कही कहीं पन- रखना) ] वह खेत जिसमे चैती फसल मे कोई जिंस बोने शाखे पर रखकर जलाते हैं। के लिये अगहनी या भदई फसल मे कुछ न बोया जाय कि०प्र०-जलाना। और जो केवल जोतकर छोड दिया जाय । वह खेत पलीता-वि० १ बहुत क्रुद्ध । क्रोध से लाल । आग बबूला। जो बरसात मे विना कुछ वोए केवल जोतकर छोड दिया मि०प्र०—करना ।—होना । गया हो । चौमासा । २ तेज दौडने या भागनेवाला । द्रुतगामी। क्रि० प्र०-छोदना ।-रखना । पलीती'-सज्ञा स्त्री० [हिं० पलीता ] बत्ती। छोटा पलीता। विशेष-ईख, शकरकद, गेहूँ, अफीम, प्रादि वोने के लिये प्राय पलीती-सशा स्त्री॰ [फा० पलीद ] गदगी। बुराई। अपवित्रता । ऐसा करते हैं। अन्य धान्यो के लिये बहुत कम पलिहर उ०-बाहरो पाक कीते की होदा, जो प्रदरो न गई पलीती। छोड़ते हैं। -सतबानी०, पृ० १५३ । पनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ सं० पलिध ] तेल, घी, आदि द्रव पदार्थों को पली-वि० [फा०] १ अशुचि । अपवित्र । गदा । वडे बरतन से निकालने का लोहे का उपकरण । इसमे छोटी करछी के वरावर एक कटोरी होती है जो एक खडी मुहा०-(किसी की) मिट्टी पलीद करना=किसी का सम्मान घुडी से जुड़ी होती है। नष्ट करना । किसी की इज्जत उतारना । मुहा०-पली पली जोड़ना = थोडा थोडा करके सचय या संग्रह २ घृणास्पद । ३. नीच । दुष्ट । उ०-इस पलीद से बिना करना । पैसा पैसा जोडकर धन एकत्र करना। उ०—मियाँ छेडे कब रहा जाता था। शिवप्रसाद (शब्द॰) । जोडे पली पली खुदा ढावें कुप्पा ।-(कहावत)। पलीद-सज्ञा पुं० [स० प्रेत, परेत हिं० परीत, पलीत] भूत । प्रेत । पनीत-सज्ञा पुं० [सं० प्रत । मि० फा० पलीद ] भूत । प्रेत । पलुआ-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] सन की जाति का एक पौधा । पलुआ-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पलना+उआ (प्रत्य॰)] पालतू । पत्नीत'–वि० [फा० पलीद] १ दुष्ट । पाजी। २ धूर्त । चालाक । पाला हुआ। काइयां। ३ घृणास्पद । गदा । अपवित्र । निम्न । उ० पलुइना@+-क्रि०अ० [सं० पल्लव ] पल्लवित होना । पत्रयुक्त देव पितर इन सू डरे, रसक तरे किण रीत । हेम रजत होना । हरा भरा होना। उ०-(क) भोर होत तव पलुह पातर हरे, पातर करे पलीत ।-बांकी० ग्र०, भा० २, सरीरू। पाय घुमरहा सीतल नीरू।-जायसी (शब्द०)। पृ०४1 (ख) पुनि ममता जवास बहुताई । पलुहइ नारि सिसिर पलीता'-सञ्ज्ञा पु० [फा० पतीलह ] १ बत्ती के आकार में लपेटा ऋतु पाई।-तुलसी (शब्द॰) । हुमा वह कागज जिसपर कोई मत्र लिखा हो। पलुहानाg'-क्रि० अ० [हिं० पलुहना ] पल्लवित होना । विशेष--इस बत्ती की धूनी पंतग्रस्त लोगो को दी जाती है। पलुहना । उ०-जस भुई दहि असाढ़ पलुहाई। परहि वूद औ सोघि बसाई । —जायसी ग्र०, पृ० १८७ । क्रि० प्र०- जलाना ।-सुघाना ।-सुलगाना । २ बरगेह (बगेह) को कूट और वटकर बनाई हुई वह वत्ती पलुहाना-क्रि० अ० [हिं० पलुहना ] पल्लवित करना । हरा जिससे बदूक या तोप के रजक मे आग लगाई जाती है। भरा करना । उ०-कबहुँक कपि राघव श्रावहिंगे। विरह उ०-( क ) काल तोपची, तुपक महि दारू अनय कराल । अगिनि जरि रही लता ज्यो कृपादृष्टि जल पलुहावहिंगे । पाय पलीता कठिन गुरु गोला पुहमी पाल । -तुलसी -तुलसी (शब्द॰) । (ख) कठ लाइ के नारि मनाई। ( शब्द०)। (ख) जलघि कामना वारि दास भरि तडित जरी जो वेलि सीचि पलुहाई। जायसी ग्र०, पृ० १८६ । पलीता देत । गर्जन औ तर्जन मानो जो पहरक मे गढ लेत । पलूचना-क्रि० स० [हिं० पलना] देना। (दल्लाल) । सूर (शब्द०)। पलेक-क्रि० वि० [स० पल +हिं. एक ] एक पल । क्षण भर । क्रि० प्र०-दागना ।—देना । जरा सी देर । उ०-भारे दुख सारे ये बिलावेंगे पलेक मुहा०-पलीता चाटना = भडककर वल उठना । जल उठना । माझ प्यारी कहि मोको प्यार करिके बुलावेंगे। -नट०, (क्व०)। पृ०१८ यौ०-पलीता दानी = पलीता देने या रखनेवाला। बंदूक या पलेट-सज्ञा स्त्री० [अ० प्लेट ] १ लबी पट्टी। पटरी। २ तोप के रजक की बत्ती में आग लगानेवाला। उ०-रजक कपडे की वह पट्टी जो कोट, कुरते अादि में नीचे की ओर ६-२२