पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८६

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पल्लवक २५६५ पल्ला विशेष प्रकार की स्थिति । ४ विस्तार । ५ बल । ६ चपलता । चचलता । ७ पाल का रग । अलक्तक । ८ पह्नव देश । ६ पह्नव देश का निवासी। १०. शृगार (को०)। ११ वन (को०)। १२ कली (को०)। १३. घास का नया कनखा (को०)। १४ किनारा । छोर, विशेषत वस्त्रादि का (को०)। १५ सविलास क्रीडा (को०)। १६ कामासक्त या लपट व्यक्ति (को०)। १७ कथाप्रवध (को०)। १८ दक्षिण का एक राजवश जिसका राज्य किसी समय उडीसा से लेकर तुगभद्रा नदी तक फैला था। विशेष-कुछ लोगो का मत है कि ये पह्नव ही थे और कुछ लोग कहते हैं कि यह स्वतत्र राजवश था। वराहमिहिर के अनुसार पल्लव दक्षिणपश्चिम में बसते थे। अशोक के समय में गुजरात में पल्लवो का राज्य था । पल्लवक-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ एक प्रकार की मछली। २ प्रकुर । पखुवा (को०)। - वेश्यापति । वारवधु का यार (को०) । ४. कामासक्त या लपट व्यक्ति (को०)। ५. अशोक का वृक्ष (को०)। पल्लवग्राहिता-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १. साधारण कार्यों में लगा रहना । कपरी चीजो में व्यस्त होन।। २ अपूर्ण या अधूरा ज्ञान । ऊपरी ज्ञान (को०] । पल्लवग्राहि पाहित्य--पञ्चा पुं० [स०] वह जानकारी जो पूरी न हो। अधूरा ज्ञान (को०)। पल्लवग्राही-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पल्लवग्रहिन् ] किसी विषय का सम्पक् ज्ञान न रखनेवाला । वह जो किसी विषय का पूरा या यथेष्ट शान न रखता हो। रहस्य से अनभिज्ञ केवल ऊपरी या मोटी मोटी वातो का जाननेवाला । पल्लवगु-सञ्चा पु० [सं०] अशोक का पेड । पल्लवन-मशा पुं० [सं०] १ विशेष विस्तार । अति विस्तार । २ निरर्थक कथन (को०)। पल्लवना-क्रि० अ० [सं० पल्लव+ हिं० ना (प्रत्य॰)] पल्लवित होना । पत्ते फेंकना । पनपना। उ०—(क) सुमन वाटिका वाग वन विपुल विहग निवास। फूलत फलत सु पल्लवत सोहत पुर चहुंपास |-तुलसी (शब्द०)। पल्लवांकुर-सञ्ज्ञा पु० [ स० पल्लवाकर ] डाली । शाखा [को०] । पल्लवाद-सञ्ज्ञा पु० [सं०] हिरण । हिरन । पल्लवाधार-सचा पु० [स०] शाखा । डाली । पल्लवापीड़ित-वि० [सं०] कलियो से व्याप्त [को०] । पल्लषास्त्र-सज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । पल्लवाय-सञ्चा पुं० [सं०] तालीसपत्र । पल्लविक-सज्ञा पु० [स०] कामी । कामुक (को०] । पल्लविका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की चादर [को०] । पल्लवित -वि० [सं०] १ पल्लवयुक्त । जिसमें नए नए पत्ते निकले या लगे हों। २ हरा भरा। लहलहाता। ३. विस्तृत । लबा चौडा । ४ पाल में रंगा हुआ। ५ रोमांच युक्त । जिसके रोगटे खड़े हो। उ०—कहि प्रनाम कछु कहन लिय पै भय शिथिल सनेह । थकित वचन लोचन सजल पुलक पल्लवित देह । —तुलसी (शब्द०)। पल्लवितर–सञ्चा पु० पाल का रग। लाक्षारग को०] । पल्लवी-सञ्चा पु० [सं० पल्लविन् ] वृक्ष । पेड । पल्लवी-वि० [वि० सी० पल्लविती ] जिसमे पल्लव हो। पल्लव- युक्त। पल्ला'-क्रि० वि० [सं० पर या पार ( = दूर या छोर )+ला (प्रत्य॰)] १ दूर । २ दूरी। पल्ला-सञ्ज्ञा सं० [सं० पल्लव] १ किसी कपडे का छोर । आँचल । दामन । उ०-एक बडे से कुत्ते ने, जो इस वाग का रख- वाला था, लपककर उसका पल्ला पकड लिया।-शिवप्रसाद (शब्द०)। मुहा०-पल्ला छूटना = पीछा छूटना । छुटकारा मिलना । निष्कृति मिलना। छुटकारा पाना। पल्ला छुड़ाना = पीछा छुडाना। निष्कृति पाना। पल्ला पकड़ना = किसी के लिये किसी को पकहना । पल्ला पसारना = किसी से कुछ मांगना । अांचल पसारना । दामन फैलाना। पल्ला लेना = शोक करना। किसी की मृत्यु पर रोना। (स्त्रियाँ )। पल्ले पड़ना= प्राप्त होता । मिलना। हाथ लगना । (किसी के) पल्ले बँधना = (१) व्याही जाना। हाथ पकडना । (२) जिम्मे किया जाना। पल्ले घाँधना = (१) जिम्मे लेना। (२) गांठ बाँधना । (३) व्याहना। हाथ पकडना। पल्ले से घाँधना= (१) जिम्मे लगाना। (२) ब्याह देना। हाथ पकहा देना। २ दूरी । जैसे,—इनका घर यहां से पल्ले पर है। उ०-दो सौ कोस के पल्ले तक बरफीले पहाड नजर पडते हैं।-(शब्द०) १३ पास । अधिकार मे। जैसे,—उसके पल्ले क्या है ? ४ तरफ। भोर। पल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पटल ] १ दुपल्ली टोपी का एक भाग । दुपल्ली टोपी का प्राधा भाग । २ चद्दर वा गोन जिसमें अन्न बांधकर ले जाते हैं। यौ०-पल्लेदार। ३ किवाड । पटल। ४ पहल । ५ तीन मन का पोझ। ६ वौंरा । ७ धोती का एक फर्द । ८ रजाई या दुलाई आदि के ऊपर का कपडा । ६ दरवाजे आदि में लगनेवाला लकडी का लबाचौडा टुकडा । जैसे, किवाड का पल्ला । पल्ला-सहा पुं० [सं० पल, फा० पक्लह्] तराजू में एक प्रोर का टोकरा या डलिया। पलडा। मुहा०-पल्ला मुकना = पक्ष बलवान होना । पल्ला भारी होना = पक्ष बलवान होना। भारी पल्ला = (१) बलवान पक्ष । (२) ऐसा पक्ष जिसपर बडे वोझ हो। पल्ला --सञ्ज्ञा पुं॰ [स० फल ] ऊँची के दो भागो मे एक भाग ।