पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१८५

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छपते हैं। पलेटन २८९४ पत्सव उनके किसी विशेष प्रश को वडा या सु दर बनाने के पलोटना-फि०प० [हिं० पल्टना] १ पष्ट से लोटना पाटना । लिये लगाई जाय । पट्टी। जैसे, कुरते का पलेट, कमीज तडफडाना । उ०-सेज पढ़ी सफरी सी पलोटत ज्यों ज्यों का पलेट । घटा घन की गरज री।-पाकर ( शब्द०)।२ लोटना पलेटन-सज्ञा पुं० [अ० प्लेटन ] छापे के यत्र में लोहे का वह पोटना । लोट पोट करना। चिपटा भाग जिसके दवाव से कागज प्रादि पर अक्षर पलोथन-सज्ञा पुं० [सं० परिस्तरण, हिं० पलेयन ] दे० 'पलेथन' । पलोवना-मि० स० [म० प्रलोटन] १ पैर दबाना । पैर पलेटना-क्रि० स० [देश॰] पहनाना । उ०-जूटै खेटा मोख पद, मलना। उ०-चरण कमल नित रमा पलोवै। चाहत नेक माल पलेटा रभ ।-रा० रू०, पृ० ४३ । नेन भरि जोवै ।-सूर (शब्द०)। २ सेवा करना। किसी को प्रसन्न करने का उपाय करना। उ०-प्रथम चरण कमल पलेड़ना-क्रि० स० [सं० प्रेरणा ] ढकेलना। धक्का देना। उ०-तू अलि कहा परयो केहि पैडे। या आदर पर मजहूँ यो घ्यावै । तामु महातम मन में लावै । गगा परमि इनहि को भई। शिव शिवता इन ही सो लई । लक्ष्मी इनको सदा बैठो टरत न सूर पलेडे । —सूर (शब्द॰) । पलेथन-सज्ञा पुं० [स० परिस्तरण (= लपेटना)] १ वह सूखा पलोवै । वारवार प्रीति को जोये ।-सूर (शब्द०)। आटा जिसे रोटी वेलने के समय इसलिये लोई पर लपेटते पलोसना@-क्रि० स० [म० स्पर्शन, हि० परसना ] १ घोना । और पाटे पर बखेरते हैं कि गीला आटा हाथ या बेलन आदि उ०-अटसठ तीरथ निदक न्हाय । देह पलोसे मैन न जाय । में न चिपके । परथन । कवीर (शब्द०)। २ मीठी मीठी बातें करके गाहक को ढग क्रि० प्र०-निकालना ।—लगाना । पर लाना। तरह तरह की बातें करके गाहक या शिवार फंसाना । (दलाल)। मुहा०-पलेथन निकलना = (१) खूब मार पडना या खाना । पलोल-ता पुं० [सं० पल्लव ] पिमलय । योपल । पल्लव । भुरकुस निकलना । कचूमर निकलना । (२) परेशान होना । उ०-दए न लेइ गोर करि भजन । पलो मोट जनु तग होना । हार जाना। पलेथन निकालना = (१) खूब फरकहि संजन ।-हिंदी प्रेमगाथा०, पृ० १६७ । मारना या ठोंकना। पीटना । कचूमर निकालना । (२) तग करना । परेशान करना । बुरा हाल करना। पल्टन-सा सी० [अ० प्लैटून ] दे० 'पलटन' । २ किसी हानि या अपकार के पश्चात् उसी के सबंध से पल्टा-तशा पुं० [हिं० पलटना ] दे० 'पलटा' । होनेवाला अनावश्यक व्यय । किसी वढे खर्च के पीछे पल्थी-सज्ञा सी० [ स० पर्यस्ति, प्रा० पल्लस्थि ] दे० 'पलथी' । होनेवाला छोटा पर फजूल खर्च । जैसे,-माल तो चोरी गया पल्यक-सज्ञा पुं॰ [स० पल्याक ] पलग । खाट । ही था, तहकीकात कराने में १००) और पलेथन लगा। पल्यंग-सज्ञा पुं॰ [ स० पल्या ] दे० 'पल्यक'। उ०-गज वचन क्रि० प्र०—देना ।—लगाना । सुणि राज कुमार पत्यग छोडि घरती पडी नारि।-धी० पलेनर-सज्ञा पुं० [अं० प्लेनर ] काठ का एक वह छोटा चिपटा रासो, पृ०५०। टुकडा जिससे प्रेस मे कसे हुए फरमे फे उभरे हुए टाइपो को पल्ययन-सरा पुं० [सं०] घोड़े की पीठ पर विछाने की गद्दी । पलान । वरावर करते हैं। पल्ल-संज्ञा पुं० [०] १ अन्न रखने का स्थान । बखार । कोठार । धिशेप-काठ के इस समतल टुक्रे को वसे फरमे के ऊपर २ पाल जिसमें पकने के लिये फल रखे जाते हैं। रखकर काठ के हथौड़े से धीरे धीरे कई वार ठोकते हैं जिससे पल्लड़ा-संशा पुं० [देश॰] प्रवाह । कोका। थपेडा । उ०-लहरो के उभरे हुए अक्षर दवकर वरावर हो जाते हैं । एक पल्लड को चीरा, उसपर के भाग को वेघा कि दूसरा पलेना-सक्षा पुं० [अ० प्लेन ] दे० 'पलेनर'। सामने । शब्दमय प्रवाह की निरर्थक भाषा मानो बार बार पलेव-सज्ञा पुं॰ [देश॰] १. पलिहर की वह सिंचाई या छिड़काव कहती थी, वचो वचो।-झांसी०, पृ० २६५ । जिसे वोने के पहले तरी की कमी के कारण करते हैं । हलकी पल्लव-संज्ञा पुं० [स०] १ नए निकले हुए कोमल पत्तो का समूह या सिंचाई। पटकन । २ जूस । शोरवा । ३ माटा या पिसा गुच्छा । टहनी मे लगे हुए नए नए कोमल पत्ते जो प्राय हुआ चावल जो शोरवे मे उसे गाढ़ा करने के लिये डाला लाल होते हैं । कोपल । कल्ला । उ०-नव पल्लव भए विटप जाता है । जहा मसाला नहीं या कम डालना होता है वहाँ अनेका ।—तुलसी (शब्द॰) । इसको डालकर काम चलाते हैं। पर्या०-किशलय । किसलय । नवपत्र। प्रयाला बल। पलोटना-त्रि० स० [सं० प्रलोठन ] १. पैर दबाना या दाबना । उ०-(फ) तीन लोक नारी को कहियत जो दुर्लभ बल विशेष-हाथ के वाचक शब्दो के साथ 'पल्लव' का समास होने वीर । कमला हूँ नित पायें पलोटत हम तो हैं भाभीर ।- से इसका अर्थ 'उंगली' होता है। जैसे, करपल्लव, पाणि- सूर (शब्द॰) । (ख) ते दोउ वधु प्रेम जनु जीते । गुरु पद पल्लव । कमल पलोटत प्रीते ।-तुलसी (शब्द०)। २. दे० 'पलटना' । २ हाथ मे पहनने का कडा वा ककण। ३. नृत्य मे हाथ की एक किसल ।