पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१९०

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पशुकर्म २८६१ पशुहरीतकी सूपर, बंदर, भालू, गैडा, भैसा, गीदड, बिल्ली, गोह, साही, सुखदायक, पशुपति लायक सूर सहायक कौन गर्ने ।-राम हिरन ( सब जाति के ), सुरागाय, नीलगाय, खरहा, च०, पृ०७। गविलाव, बैल, ऊँट, बकरा, मेढ़ा, गदहा, हाथी और घोडा। विशेष-शैव दर्शन और पाशुपत दर्शन में जीवमात्र 'पशु' कहे इन नामो मे गोह भी है जो सरीसृप या रेंगनेवाला है । पर गए हैं और सब जीवों के अधिपति 'शिव' ही परमेश्वर माने साधारणत छिपकली, गिरगिट आदि को पशु नहीं कहते । गए हैं। २ जीवमात्र । प्राणी। ४ अग्नि । ५ श्रीपधि । यौ०-पशुपति । पशुपलवल-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] कैवर्तमुस्तक । केवटी मोथा । विशेष-शैव दर्शन और पाशुपत दर्शन में 'पशु' जीवमात्र की पशुपाल-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ पशुओं को पालनेवाला । २. बृह- सज्ञा मानी गई है। त्सहिता के अनुसार ईशान कोण में एक देश जहाँ के निवासी ३ देवता। ४ प्रथम । ५ यज्ञ । ६ यज्ञ उ बर । ७ वलि- पशुपालन ही द्वारा अपना निर्वाह करते हैं । पशु (को०)। ८ सदसद्विवेक से रहित व्यक्ति । मुर्ख (को॰) । ६. छाग । वकरा (को०)। पशुपालक-सज्ञा पुं॰ [स०] [स्त्री० पशुपालिका ] वह जो पशुप्रो का पशुकर्म-सशा पुं० [सं० पशुकर्मन् ] यज्ञ आदि में पशु का बलिदान । पालन करता हो । पशु पालनेवाला। पशुका-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] एक प्रकार का हिरन । पशुपालन-सज्ञा पुं॰ [ स०] पशुप्रो को रखकर उन्ही के सहारे जीविका चलानेवाला व्यक्ति (को०] । पशुक्रिया-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पशु की बलि । २ मैयुन [को०) । पशुपाश-सचा पु० [सं०] १ पशुप्रो का बधन । २ शैव दर्शन पशुगायत्री-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० ] तंत्र की रीति से बलिदान करने मे अनुसार जीवों के चार प्रकार के बंधन । एक मत्र जिसका बलिपशु के कान में उच्चारण किया जाता है। पशुपासक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] एक रतिवघ का नाम । पशुघात-सज्ञा पुं० [ स०] यज्ञपशु का वध । बलि के पशु का पशुप्रेरणा-सज्ञा पुं॰ [सं०] पशुओ को हांकना [को०] । हनन [को०] । पशुबध-सज्ञा पुं० [म० पशुबन्ध] यज्ञ जिसमें पशुबलि की जाय [को०] । पशुधन-वि० [सं०] पशुप्रो का वध करनेवाला [को०] । पशुबधक-संज्ञा पुं॰ [ सं० पशुबन्धक ] पगहा या रस्सी जिसमे पशु पशुचर्या-सज्ञा बी० [सं०] १ पशु के समान विवेकहीन आचरण । को बांधते हैं । पशुओ का बधन [को०] । जानवरो की सी चाल । स्वेच्छाचार । २ मैथुन । पशुमाव-सच्चा पु० [सं०] १ पशुत्व । जानवरपन । हैवानपन । पशुजीवी-वि० [ स० पशुजीविन् ] पशु के द्वारा जीविका चलाने २. तत्र मे मन के साधन के तीन प्रकारों में से एक । वाला । पशुप्रो के आधार पर जीनेवाला । उ०-श्रीराम विशेष-साधक लोग तीन भाव से मत्र का साधन करते हैं- रहे सामत काल के ध्रुव प्रकाश, पशुजीवी युग में नव कृषि दिव्य, वीर और पशु । इनमे से प्रथम दो भाव उत्तम सस्कृत के विकास । -प्राम्या, पृ० ५८ । और पशुभाव निकृष्ट माना जाता है। जो लोग सत्र के सब पशुता-सशा स्त्री० [स०] १ पशु का भाव । २ जानवरपन । विधानो का (घृणा, भाचार विचार, आदि के कारण ) मूर्खता और प्रौद्धत्य । पूरा पूरा पालन नहीं कर सकते उनका साधन पशुभाव से पशुत्व-सज्ञा पुं० [सं०] पशु का भाव । जानवरपन । समझा जाता है। तात्रिको के अनुसार वैष्णव पशुभाव से पशुदा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] कुमार की अनुचरी एक मातृका देवी। नारायण की उपासना करते हैं क्योकि वे मद्य मास प्रादि का पशुदेवता-सज्ञा पुं० [सं०] वह देव जिनके लिये पशु का हनन सपर्क नहीं रखते। कुब्जिका तत्र में लिखा है कि जो रात किया जाय (फो०] । को यत्रस्पर्श और मत्र का जप नहीं करते, जिन्हे बलिदान पशुधर्म-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ पशुप्रो का सा आचरण । जानवरो में सशय, तत्र मे सदेह और मत्र मे अक्षरबुद्धि (अर्थात् ये का सा व्यवहार । मनुष्य के लिये निंद्य व्यवहार । जैसे, अक्षर हैं इनसे क्या होगा ) और प्रतिमा मे शिलाज्ञान स्त्रियो का जिसके पास चाहे उसके पास गमन, पुरुषो का रहता है, जो देवता की पूजा बिना मास के करते हैं, जो अगम्या आदि का विचार न करना इत्यादि । (मनु०) । बार वार नहाया करते हैं उन्हे पशुभावावलवी और अधम २ विधवा का विवाह (को०)। समझना चाहिए। पशुनाथ-सझा पु० [सं०] १ शिव । २ सिंह । पशुमारण-सच्चा पुं० [सं० ] पशुओं का हनन । पशुप-सशा पुं० [सं०] पशुपाल । गोपाल । पशुओं का पालनेवाला। पशुयज्ञ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] आश्वलायन श्रौतसूत्र में वणित एक यज्ञ । पशुपतास्त्र-सच्चा पु० [ स०] महादेव का शूलास्त्र । पशुराज-सज्ञापुं० [सं०] सिंह । पशुपति-सशा पु० [ स०] १ पशुओ का स्वामी। २ जीवो का पशुलंब~-सञ्ज्ञा पु० [ स० पशुलम्ब ] एक देश का प्राचीन नाम । ईश्वर या मालिक । ३ शिव । महादेव । उ-गणपति पशुहरीतको-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] आम्रातक फल । श्रामहे का फल ।