पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१९६

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२६०५ पहचानना पस्त पस्त-वि० [फा०] १. हारा हुप्रा । २ थका हुआ । ३ दवा हुमा । बहुत ही उत्तम मौर उपयोगी होता है। जार में इसमें गूय उ०-किसी तरह यह कमवस्त हाथ पाता तो पौर फूल लगते हैं जिनमें से बहुत अच्छी सुगंघ निम्लती है। राजपूत खुद व गुद पस्त हो जाते। -भारतेंदु ग्र०, युरोप मे इन फूलों से कई प्रकार के इत्र और मुगधित द्रव्य भा० १, पृ० ५२१ । ४ निम्न । मघम (को०)। ५ छोटा । बनाए जाते हैं। लघु (को०)। पह-प्रव्य. [ सं० पार्थ, प्रा० पाह ] १ निकट । समीप । यो०-पस्तकद । पस्त किस्मत -भागा । बदकिस्मत । पस्त उ०-राजा दि जेहि के सौंपना । गा गोरा तेहि पहें प्रग- खयाल = लघुचेता । क्षुद्रबुद्धि । पस्तहिम्मत । पस्त मना।-जायसी (शब्द०)। २ से। उ०-दूतिन्ह यात हिम्मती - कायरता । उत्साहहीनता । पस्तहौसला-दे० न हिये समानी। पदमावति पहँ पहा सो पानी।-जायमी 'पस्तहिम्मत'। (शब्द०)। पस्तकद-वि० [फा. पस्तक़द ] नाटा । वामन । बोना। पहसुल -सया पी० [सं० प्रर (= गुका हुश्रा) +शूल ] हमिया के पस्वहिम्मत--वि० [फा०] हिम्मत हारा हुमा। भीरु । डरपोक । प्राकार का तरकारी काटने का एक प्रौजार । हेमुया। कायर। पहल-सानो [ म० प्रभा ] दे० 'पी' । उ०-प्रफुलित फमल पस्ताना -क्रि० प्र० [सं० पश्चात्ताप, मरा० पस्तावणो ] दे० गुजार करत भलि पह फाटी पुमुदिनि मिलानी। -मूर 'पछताना'। (शब्द०)। पस्तावा-सा पुं० [सं० पश्चात्ताप, सिंधी परतावो, गुज० पस्तावू] पह-सज्ञा पुं० [सं० प्रभु ] दे० 'प्रभु' । उ०-साहां ऊयप पपणो, दे० 'पछतावा'। पह नरनाहाँ पत्त । राह दुई हद रक्सपो, प्रभमाह एवपत्त ।- रा० रू०, पृ०१०। ( ख ) क्रोध न करो प्रकाजा, देव दीन पस्ती-सहा ग्बी० [फा०] १ नीचे होने का भाव । निचाई । २ कमी। न्यूनता । अभाव । ३ अघमता । क्षुद्रता। निम्नता । सुरमी दुजराजा पह रघुवशी पूजे ।-२५० रू०, पृ०६० । कमीनापन (को०)। पहचनवाना-क्रि० स० [हिं० पहचानना का प्र० रूप] पहचानने का काम कराना। पस्तो-सज्ञा ली० [हिं०] दे० 'पश्तो'। पस्स्य-राज्ञा पुं० [सं०] १ गृह । निवास । घर । २ कुल । परि पहचान-सग स्त्री० [सं० प्रत्यभिज्ञान ] १ पहचानने की क्रिया वार [को०)। या भाव । यह ज्ञान कि यह वही व्यक्ति या वस्तु विशेष है जिसे मैं पहले से जानता हूँ। देखने पर यह जान पस्यमां-सज्ञा पुं० [सं० पश्चिम ] दे० 'पश्चिम' । उ०-दिसि लेने की क्रिया या भाव कि यह अमुक व्यक्ति या वस्तु है । पस्यम गुरजर सुघर मेहेर अहमदावाद । -पोद्दार अभि० ग्रंक, जैसे,—गवाह मुलजिमों की पहचान न कर सका। पृ०४२१ । क्रि०प्र०—करना ।होना । परसर-सा पुं० [सं० परसर ] जहाज का वह कर्मचारी जो खला- सियो आदि को वेतन पोर रसद बांटता है । जहाज का २ भेद या विवेक करने की क्रिया या भाय। किसी का गुण, खजानची या भडारी ( लश०)। मूल्य या योग्यता जानने की क्रिया या भाव । जैगे,—(क) तुम भले बुरे की पहचान नहीं कर सकते। (ग) जया- पस्सा-फि० वि० [?] मुट्ठी भर । उ०-वाइका बनेगी राहा हिरात की पहचान जौहरी कर सकता है। ३ पहचानने की बेगले फिरेंगे छोरे। पस्सो उठा को मांटी डालेंगे नाउँ पो सामग्री । किसी वस्तु से सबंध रसनेयाली ऐसी बातें जिनकी तेरे ।-दपिरानी०, पृ० २६७ । सहायता से वह मन्य वस्तुषों से अलग की जा सके। जिमी पस्सी-शा पु० [देश॰] शीशम की जाति का एक प्रकार का वृक्षा। वस्तु की विशेषता प्रकट करनेगली बातें । नक्षण । निशानी। वियुमा । भकोली। जैसे,—(क) मुझे उनके मकान की पहचान बतायो तो मैं विशेष—यह वृदा प्राय सारे उत्तरी भारत, नेपाल और मायाम वहाँ जा सकता है। (ग) अगर वह रमीज तुम्हारी है तो मे पाया जाता है। यह प्राय सडको के किनारे लगाया जाता इसकी कोई पहचान बतायो। ४ पहनानने की शकि, या है। यह नीची मोर वलुई जमीन में बहुत जल्दी बढता है। वृत्ति । पतर या भेद समझने की शक्ति । एक वस्तु पो दूरगे इससी पत्तियां चारे के काम में भाती है। इसकी सवडी यस्तु भपवा यस्तुमी रो पृपक करने की योग्यता । पिगी यस्तु बहुत वडिया होती है मौर शीशम को भौति ही काम मे का गुण, मूल्य मपया योग्यता समगने पो मक्ति। दिया। तमीज । जैसे,-(क) तुममें सौटे रारे मी पहगान नहीं है। परसी बबूल -मा पु० [हिं० पस्मी ? + हि. यधूल ] एक प्रकार (ग) तुममै पादमी पी पहचान नहीं है। ५ दान पहचान । फा पहाटी विलायती यफूल जो जगली नहीं होता बस्ति योने परिचय । (क्य०)। जैसे,—(2) हमागे उनी पह- पौर सगाने से होता है। चान विसात नई है। (ग) तुम्हारी परनान सा सोई विशेष-हिमालय मे यह ५००० पुट पोचाई तक बोया जा पादमी हो तो उससे मिलो। रापता है। प्राय घेरा बनाने या पार लगाने के लिये यह पहचानना-कि० म० [हिं• पहचान + ना] १. स्मिा यस्तु या माती है।