पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१९७

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पटना २६०६ पहरा व्यक्ति को देखते ही जान लेना कि यह कौन व्यक्ति या पहनाना-क्रि० स० [हिं० पहनना] दूसरे को कपडे, आभूषण आदि क्या वस्तु है । यह ज्ञान करना कि यह वही वस्तु या धारण कराना। किसी के शरीर पर पहनने की कोई चीज व्यक्तिविशेष है जिसे मैं पहले से जानता हूँ। चीन्हना । धारण कराना। दूसरे के शरीर पर यथास्थान रखना या जैसे,—(क) बहुत दिनो पीछे मिलने पर भी उसने मुझे ठहराना । जैसे, कुर्ता, मंगूठी, माला, जूता, मदि पहनाना। पहचान किया। (ख) पहचानो तो यह कौन फल है। पहनाव-तज्ञा पुं० [हिं० पहनना ] दे० 'पहनावा' । २ वस्तु या व्यक्ति के स्वरूप को इस प्रकार जानना पहनावा-तज्ञा पु० [हिं० पहनना ] १ ऊपर पहनने के मुख्य मुख्य कि वह जब कभी इद्रियगोचर हो तो इस बात का निश्चय कपडे । सिले या बिना सिले सव कपडे जो ऊपर पहने जायें। हो सके कि वह कौन अथवा क्या है। किसी वस्तु की परिच्छद । परिघेय । पोशाक । २ सिर से पैर तक के कपर शरीराकृति, रूप रंग अथवा शक्ल सूरत से परिचित होना। पहनने के सव कपडे। पांचो कपडे। सिरोपाव । ३ विशेष जैसे- (क) में उन्हे चार वरस से पहचानता हूँ। (ख) अवस्था, स्थान अथवा समाज में ऊपर पहने जानेवाले कपडे । तुम इनका मकान पहचानते हो, तो चलकर बता न दो। वे कपडे जो किसी खास अवसर पर देश या समाज मे पहने ३ एक वस्तु का दूसरी वस्तु अथवा वस्तुओं से भेद करना । जाते हों । जैसे, दरवारी पहनावा, फौजी पहनावा, व्याह का अतर समझना या करना। विलगाना। विवेक करना । तमीज करना। जैसे,-प्रसल और नकल को पहचानना जरा टेढा पहनावा, कावुलियो का पहनावा, चीनियो का पहनावा, आदि । ४ कपडे पहनने का ढंग या चाल । रुचि अथवा रीति काम है। ४ किसी वस्तु का गुण या दोष जानना । की भिन्नता के कारण विशेष देश या समाज के पहनावे किसी की योग्यता या विशेषता से मभिज्ञ होना। किसी की विशेषता। व्यक्ति के स्वभाव अथवा चरित्र की विशेषता को जानना । जैसे,- तुम्हारा उसका इतने दिनो तक साथ रहा, लेकिन पहपट-संशा पुं० [ देश०] १ एक प्रकार का गीत जो लियां गाया तुम उन्हें पहचान न सके । करती हैं। २ शोरगुल । हल्ला। कोलाहल । ३ किसी की वदनामी का शोर । बदनामी या अपवाद का शोर । पटना-कि०म० [स० प्रखेट, प्रा. पहेट (= शिकार) ] भगा वदनामी की जोरशोर से चर्चा | ४ ऐसी वदनामी जो देने अथवा पकड लेने के लिये किसी के पीछे दौड़ना । पीछा कानाफूसी द्वारा की जाय । गुप्त अपवाद या निंदा। किसी करना । खदेड़ना। के दोष की ऐसी चर्चा जो उससे छिपाकर की जाय । पहटना-क्रि० स० [देश॰] पैना करना । धार को रगड रगड़कर (वु देलखड तथा अवघ)। ५.छल । ठगी । धोखा। तेज करना। फरेब । पहटा-सरा पुं० [टेग०] १ ० 'पाटा' । २ दे० 'पेठा'। पहपटवाज-पञ्चा पुं० [हिं० पहपट+फा. बाज़ ] [सञ्ज्ञा पहपटबाजी] पहन-सशा पु० [सं० पाहन ] दे० 'पाहन' वा 'पाषाण' । उ०- १ शोर गुल करने या करानेवाला । हल्ला करने या कराने- (क) अदिन प्राय जो पहुंचे काऊ । पहन उड़ाय वहै सो वाला । फसादी। शरारती। झगड़ालू । २. छलिया । ठग । वान । —जायसी (शब्द०) । (ख) भव की घडी चिनग धोखेबाज । फरेबी। तेहि छूटे । जरहिं पहाड पहन सब फूटे |-जायसी (शब्द०)। पहपटबाजी-सभा सी० [हिं० पहपट+बाजी ] १. झगडालुपन । पहन-सज्ञा पुं० [फा०] वह दूघ जो बच्चे को देखकर वात्सल्य भाव कलहप्रियता। शोर गुल कराने का काम या मादत । २ के कारण माँ की छातियो मे भर पाए और टपकने को हो । छलियापन । ठगी । मक्कारी। पहनना-क्रि० स० [मं० परिधान] (कपडे अथवा गहने को) शरीर पहपटहाई-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पहपट+हाई (प्रत्य॰)] पहपट कराने- पर घाण करना। परिधान करना। वाली। बात का वतगड करनेवाली। झगडा कराने या पहनवाना-क्रि० स० [हिं० पहनना का प्रे०रूप ] किसी के द्वारा लगानेवाली। किसी को बल या पाभूपण धारण कराना । किसी और के पहर-संज्ञा पुं० [ स० प्रहर ] १. एक दिन का चतुर्थांश । अहोरात्र द्वारा किसी को कुछ पहनाना । का पाठवा भाग । तीन घटे का समय । २ समय । जमाना । पहना-सज्ञा पुं॰ [हिं० ] दे० 'पनहा' । युग । जैसे,—(क ) कलिकाल का पहर न है ? (ख) किसी पहना–स पु० [फा० पहन ] वह दूध जो बच्चे को देखकर का क्या दोष, पहर ही ऐसा चढ़ा है। वात्सल्य भाव के कारण मां के स्तनो में भर आया हो और क्रि० प्र०-चढ़ना ।-लगना । टपकना सा जान पडे। पहरना-क्रि० स० [सं० प्रधारण ] दे० 'पहनना' । कि०प्र०-फूटना। पहरा'-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पहर ] १ किसी वस्तु या व्यक्ति के पास पहनाई-सजा परी० [हिं० पहनना ] १ पहनने की क्रिया या भाव । पास एक या अधिक आदमियों का यह देखते रहने के लिये जैसे,—जरा पापको पहनाई देखिए । २ जो पहनाने के बदले बैठना (अथवा बैठाया जाना ) कि वह निर्दिष्ट स्थान से मे दिया जाय । पहनाने की मजदूरी या उजरत । जैसे, हटने वा भागने न पावे । रक्षकनियुक्ति। रक्षा अथवा निगह- पूड़ी पहनाई। बानी का प्रबंध । चौकी।