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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२०१

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पहाड़ा २०१० पहिरन गई है। (ख) यह कन्या हमारे लिये पहाड हो गई है। पहिता-सज्ञा स्री० [ स० प्रहित ( = सालन) ] दाल । पकी हुई ३ अति कठिन (कार्य) अति दुष्कर (काम)। दुस्साध्य दाल। उ०—दघि मधु मिठाई खीर पटरस विविध व्यजन ( कर्म )। जैसे,—तुम तो हर एक काम ही को पहाड जे सबै। लाडू जलेवी पहित भात सुभांति सिद्ध किए तवै । समझते हो। -पद्माकर (शब्द०)। पहाड़ा-सज्ञा पुं॰ [ सं० प्रस्तार ? या हिं० पहाड़ ] किसी प्रक के पहिती-सज्ञा स्त्री० [सं० प्रहित ] दे० 'पहित' । उ०-मूग माष गुणनफलो की क्रमागत सूची या नदशा । किसी प्रक के एक अरहर की पहिती। चनक कनक मम दारी जी ।-रघुराज से लेकर दम तक के माथ गुणा करने के फल जो सिलसिले शब्द०)। के साथ दिए गए हो । गुणनसूची । जैसे, दो का पहाडा, चार पहिनना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'पहनना' । का पहाडा, आदि। पहिनाना-क्रि० स० [हिं० पहिनना ] दे० 'पहनाना' । क्रि० प्र०-पढ़ना ।-याद करना ।-लिखना । —सुनाना । पहिनावा-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पहनावा' । पहाडिया-वि० [हिं० पहाड़ +इया (प्रत्य०) ] दे० 'पहाही'। पहियड़ा-सज्ञा पुं० [सं० पथिक, प्रा० पहिय+डा ( प्रत्य०) ] पहाड़ो- वि० [हिं० पहाड़+ई ( प्रत्य० ) ] १ पहाड पर रहने दे० 'पथिक' । उ०-मारू मारइ पहियहा जउ पहिरइ सोवन्न । या होनेवाला । जो पहाड पर रहता या होता हो। जैसे,- दती, चूडह मोतियां भीयां हेक वरन्न । –ढोला०, दू० १५७ । पहाडी जातियाँ, पहाडी मैना, पहाडी भालू । २ पहाड पहियाँ -अश्य० [हि० पहँ ] दे० 'पहें'। उ०—कहैं कवि तोप सबधी। जिसका पहाड से सबध हो। जैसे, पहाडी नदी, जव नैसो जैसो कीन्हो अब कहत न वतियाँ वै, तैसी हम पहाडी देश। पहियाँ ।-तोप (शब्द०)। पहाड़ो-सज्ञा स्री० [ हि० पहाड +ई (प्रत्य॰)] १ छोटा पहाड । २ पहाड के लोगो को गाने को एक घुन । ३ सपूर्ण पहिया-सज्ञा पुं० [सं० परिधि ? ] १ गाडी, इजन अथवा अन्य किमी कल में लगा हुअा लकडी या लोहे का वह चक्कर जो जाति की एक प्रकार की रागिनी जिसके गाने का समय अपनी धुरी पर घूमता है और जिसके घूमने पर गाडी या कल माधी रात है। गी चलती है । गाडी या कल में वह चक्राकार भाग जो गाडी पहाटो-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पहाड या सं० पर्पटी ] एक प्रकार की या कल के चलने मे घूमता है । चक्का । चक्र। उ०-भीगे ओषधि जिसे पपंटी या जनी भी कहते हैं। वि० दे० 'जनी' । पहिया मेह में रथ ही देत वताय । नीर भरे बदरान पै प्रव पहाड़ी इद्रायन-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पहाड़े+ई (प्रत्य॰) +इंद्रायन] एक पहुंचे हम प्राय । -शकुतला, पृ० १३४ । २. किसी कल का प्रकार का खीरा जिसे ऐरालू भी कहते हैं । वि० दे० 'ऐरालू' । वह चक्राकार भाग जो धुरी पर घूमता है, एव जिसके घूमने पहाड़ आ-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] बच्चो का एक प्रकार का खेल जिसे से समस्त कल को गति नही मिलती किंतु उसके मश विशेष 'पानापानी' भी कहते हैं। अथवा उससे सबद्ध अन्य वस्तु या वस्तुप्रो को मिलती है। पहाड़ आ -'व० [हिं० पहाड + उभा (प्रत्य॰)] पहाड सबधी पहाड का । पहाड़ी। विशेष-यद्यपि धुरी पर घूमनेवाले प्रत्येक चक्रको पहिया कहना पहारी'-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पहाई' । उ०-पाप पहार प्रगट उचित होगा तथापि वोलचाल मे किसी चलनेवाली चीज भइ सोई । भरी क्रोध जल जाइ न जोई । —मानस, २॥३४॥ अथवा गाडी के जमीन से लगे हुए चक्र को ही पहिया कहते हैं । पहार-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० प्रहार, प्रा० पहार] प्राधात । प्रहार । उ०- घडी के पहिए और प्रेस या मिल के इजन के पहिए प्रादि को, हलमिलग सेन वे वाह वीर। वरसें अनग ग्रज्जत धीर । जिनसे सारी कल को नहीं, उसके भागविशेष अथवा उससे माचत कूह बजि लोह सार । जुट्ट त सूर करि रिन पहार ।- सबद्ध अन्य वस्तुप्रो को गति मिलती है, साधारणत चक्का पु० रा०, ११६५६ कहने की चाल है । पहिया कल का अधिक महत्वपूर्ण पग है। पहारा-सज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'पहाडा' । उसका उपयोग केवल गति देने मे ही नही होता, गति का पहारी'-वि० [हिं० पहा ] दे० 'पहाड़ी'। ना वढ़ाना, एक प्रकार की गति से दूसरे प्रकार की गति उत्पन्न करना, आदि कार्य भी उससे लिए जाते हैं। पुट्टी पारा, पहारी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पहाड़ ] दे० 'पहाडी। वेलन, प्रावन, घुरा, खोपडा, तितुला, लाग, हाल आदि गाडी पहारू-सज्ञा पुं० [हिं० पहाड़ ] दे० 'पहाड़' । उ०-जोवन के पहिए के खास खास पुर्जे हैं। इन सबके सयोग से यह गरुम अपेल पहारू ।—जायसी प्र०, पृ० २३५ । वनता और काम करता है । इनके विवरण मूल शब्दों पहारू-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पहरा] पहरेदार । रक्षक । पाहरू । उ०- जेहि जिउ महँ होइ सत्त पहारू । परे पहार न बाँके वारू।- पहियाहा-सज्ञा पुं० [सं० पथिक, प्रा० पहिय ] दे॰ 'पथिक' । जायसी (शब्द०)। उ.-नरवर देस सुहामणउ, जइ जावउ पहियाह ।- ढोला०, पहिचान-सञ्चा मी० [हिं०] दे० 'पहचान'। दू० ११०। पहिचानना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'पहचानना' । पहिरना-सचा पुं० [हिं० पहिरना ] पहनकर उतारा हुमा वस्त्र । चक्कर। में देखो।