पहवे २६१४ पहवी पलव-वचा पुं० [स०] १. एक प्राचीन जाति । प्राय प्राचीन पारसी की थी। सगर ने समर्थ होने पर हैहयवशियो को हराकर या ईरानी। पिता का राज्य वापस लिया। उनके सहायक होने के कारण विशेष-मनुस्मृति, रामायण, महाभारत ग्रादि प्राचीन पुस्तको 'पलव' प्रादि भी उनके कोपभाजन हुए। ये लोग राजा में जहाँ जहाँ खस, यवन, शक, कावोज, वाह्नीक, पारद सगर के भय से भागकर उनके गुरु वशिष्ठ की शरण गए । प्रादि भारत के पश्चिम में बसनेवाली जातियो का उल्लेख वशिष्ठ ने इन्हे अभयदान दिया। गुरु का वचन रखने के लिये है वहाँ वहाँ पह्नवो का भी नाम पाया है उपर्युक्त तथा सगर ने इनके प्राण तो छोड दिए पर धर्म ले लिया, इन्हें अन्य सस्कृत अथो में पह्नव शब्द सामान्य रीति से पारस क्षात्रधर्म से वहिष्कृत करके म्लेच्छत्व को प्राप्त करा दिया। निवासियो या ईरानियों के लिये व्यवहृत हुमा है मुसल- वाल्मीकीय रामायण के अनुसार 'पह्नवो' की उत्पत्ति वशिष्ठ मान ऐतिहामिकों ने भी इसको प्राचीन पारसीको का नाम की गौ शवला के हुंभारव ( रंभाने) से हुई है। विश्वामित्र माना है। प्राचीन काल मे फारस के सरदारो का 'पह- के द्वारा हरी जाने पर उसने वशिष्ठ की प्राज्ञा से लड़ने के लिये जिन अनेक क्षत्रिय जातियो को अपने शब्द से उत्पन्न लवान' कहलाना भी इस बात का समर्थक है कि पह्नव पारसीकों का ही नाम है। शाशनीय सम्राटो के समय में किया 'पलर' उनमे पहले थे। पारस की प्रधान भाषा और लिपि का नाम पह्नवी पट चुका २ एक प्राचीन देश जो 'पह्नव' जाति का निवासस्थान था। था । तथापि कुछ युरोपीय इतिहासविद् 'पलव' सारे पारस वर्तमान पारस या ईरान का अधिकांश । निवासियो की नहीं केवल पाथिया निवासियो पारदों-की विशेष-फारसी कोशो मे 'पलव' प्राचीन पारस के प्रतर्गत एक अपभ्र श सज्ञा मानते हैं । पारस के कुछ पहाडी स्थानो में प्रदेश तथा नगर का नाम है । कुछ लोगों के मत से इस्फाहान, प्राप्त शिलालेखो मे 'पार्थव' नाम की एक जाति का उरलेख है। राय, हमदान, निहावद और माजरवायजान का सम्मिलित डा० हाग आदि का कहना है कि यह 'पार्थव' पाथियस भूभाग ही उस काल का 'पह्नव' प्रदेश है । पर ऐसा होने से ( पारदो) का ही नाम हो सकता है और 'पह्नव' इसी 'पह्नव' को मीडिया या माद का ही नामांतर मानना पडेगा। पार्थव का वैसा ही फारसी अपभ्र श है जैसा मावेस्ता के परतु किसी भी पारसी या अरव इतिहास लेखक ने उसका मिघ्र (वै० मित्र ) का मिहिर । अपने मत की पुष्टि में ये 'पह्नव' के नाम से उल्लेख नहीं किया है । पारद और पह्नव लोग दो प्रमाण और भी देते हैं। एक यह कि अरमनी भाषा को एक फहनेवाले युरोपीय विद्वान् 'पह्नव' को पाथिया प्रदेश के नथो मे लिखा है कि भरसक ( पारद ) राजाप्रो की का ही फारसी नाम मानते हैं। संस्कृत पुस्तकों मे जिस तरह राज-उपाधि 'पलव' थी। दूसरा यह कि पाथियावासियो को जाति के पर्थ मे 'पल्लव' का साधारणत. पारस निवासियो अपनी शूर वीरता और युद्धप्रियता का वडा के लिये प्रयोग हुमा है उसी तरह देश पर्थ में भी मोटे प्रकार था, भोर फारसी के पहलवान' और अरमनी से पारस के लिये ही उसका व्यवहार हुआ है। के 'पहलवीय' शब्दो का अर्थ भी शूरवीर और युद्धप्रिय है। पह्नवी-सच्चा सौ. [ फा० अथवा सं० पहव ] फारस या ईरान की रही यह वात कि पारसवालो ने अपने आपके लिये यह सज्ञा एक प्राचीन भाषा । भति प्राचीन पारसी या जेंद अवस्ता की क्यों स्वीकार की और आसपास वालो ने उनका इसी नाम भाषा पौर प्राधुनिक फारसी के मध्यवर्ती फाल फी फारस से क्यों उल्लेख किया । इसका उत्तर उपयुक्त ऐतिहासिक यह की भाषा। देते हैं कि पाथियावालों ने पांच सौ वर्ष तक पारस में राज्य विशेष-पारसियो के प्राचीन धार्मिक और ऐतिहासिक प्रथ इसी किया और रोमनों आदि से युद्ध करके उन्हें हराया । ऐसी भाषा में मिलते हैं। उनकी मूल धर्मपुस्तक 'जेंद अवस्ता' की दशा में 'पह्नव' शब्द का पारस से इतना घनिष्ठ सबध हो टीका और अनुवाद प्रादि के रूप मे जितनी प्राचीन पुस्तकें जाना कोई प्राश्चर्य की वात नहीं है। सस्कृत पुस्तको मे मिलती हैं, अधिकाश सभी इसी भाषा में हैं। शाशान वशीय सभी स्थलों पर 'पारद' और 'पलव' को अलग अलग दो सम्राटो के समय मे यही राजकाज की भाषा थी। अत इसकी जातियाँ मानकर उनका उल्लेख किया गया है । हरिवश पुराण उत्पत्ति का काल पारद सम्राटो का शासनकाल हो सकता है। में महाराज सगर के द्वारा दोनो की वेशभूपा अलग अलग इस भाषा मे सेमिटिक शब्दो की बहुत भरमार है । शाशानीय निश्चित किए जाने का वर्णन है। पह्नव उनकी प्राज्ञा से काल के पहले की पह्नवी में ये शब्द और भी अधिक हैं। 'श्मश्रुधारी' हुए और पारद 'मुक्तकेश' रहने लगे। मनुस्मृति इसमें व्यवहृत प्राय समस्त सर्वनाम, अव्यय, क्रियापद, बहुत के भनुसार 'पह्नव' पारद, पाक आदि के समान आदिम क्षप्रिय से क्रियाविशेषण और सज्ञापद अनार्य या शामी हैं। इसके थे और ब्राह्मणो के भदर्शन के कारण उन्ही की तरह लिखने की दो शैलियाँ थी। एक में शामी शब्दो की सस्कारभ्रष्ट हो शूद्र हो गए। हरिवश पुराण के अनुसार विभक्तियां भी शामी होती थीं, दूसरी मे शामी शब्दो के साथ महाराज सगर ने इन्हें बलात् क्षत्रियधर्म से पतित कर म्लेच्छ खाल्दीय विभक्ति लगती थी। इन दोनो रीतियो में यह भी बनाया । इसकी कथा यों है कि हैहयवशी क्षत्रियो ने सगर के प्रभेद था कि पहली में क्रियापदो का कोई रूपातर न होता था पिता बाहु का राज्य छीन लिया था। पारद, पलव, यवन, परतु दूसरी में उनके साथ अनेक प्रकार के पारसी प्रत्यय जोडे कांबोज प्रादि क्षत्रियों ने हैहयवशियों की इस काम में सहायता जाते थे। पह्नवी प्रथसमूह मुख्यत दो भागो मे विभक्त हैं । घमड
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