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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२०८

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। पांडुकंटक २६१७ पाडुरंग प्रत्येक महायज्ञ में उन्होंने इतना धन दान किया था जिसमे चिकित्सा का एक प्रग जिसमें फोडे के अच्छे हो जाने पर सैकडो बडे बडे अश्वमेघ यज्ञ किए जा सकते थे। कुछ दिनों उसके काले दाग को प्रोपधि की सहायता से दूर करते और तक राज्य करने के उपरात पाद अपनी दोनो स्त्रियों को साथ वहाँ के चमडे को फिर शरीर के वर्ण का कर देते हैं । इसे लेकर जगल में जा रहे भौर वही मामोद प्रमोद और शिकार पाठुकरण भी कहा है। आदि करके रहने लगे। एक बार शिकार मे उन्होंने हिरन विशेष-सुश्रुत का मत है कि यदि फोडे के अच्छे हो जाने पर को हिरनी के साथ मैथुन करते हुए देखा और तुरत तीर ने दुरूढ़ता के कारण उसके स्थान पर काला दाग रह गया हो उस हिरन को मार गिराया। कहते हैं ये हिरन और तो कडवी तू घी को तोडकर उसमें बकरी का दूध डाल दे हिरनी वास्तव में ऋषिपुत्र किमिदय और उनकी पत्नी थे। और उस दूध में सात दिन तक रोहिणी फन भिगोए । इसके तीर लगते ही उस मृग ने मनुष्यों की झोली में कहा कि बाद उस फल को गीला ही पीसकर फोहे के दाग पर लगाए तुमने मुझे स्त्री के साथ भोग करते में मारा है प्रत तुम भी तो वह दाग दूर हो जायगा। जब अपनी स्त्री के साथ भोग करोगे तव उमी समय तुम्हारी पाडुकी-वि० [ स० पाण्डुकिन् ] पांडुरोगवाला। जिसे पांडु रोग भी मृत्यु हो जायगी। और जिस स्त्री के साथ भोग करते हुए हुधा हो किो०] तुम मरोगे वह तुम्हारे साथ सती होगी। इसपर पांडु वहृत पांडुदमा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० पाण्डमा ] पाड़ की धरती । हस्तिनापुर दुखी हुए और अपनी दोनों स्त्रियों को साथ लेकर नागशत का नाम। पर्वत पर चले गए। वे सब पकार का भोग विलास आदि छोडकर कठोर तपस्या करने लगे। वहीं एक बार पांढ़ ने पांदुधरु-सशा पुं० [ स० पाण्डतरु ] धौ का पेड़। बहुत से ऋषियों के साथ स्वर्ग जाना चाहा था परतु ऋषियो पांडुता-सञ्चा स्त्री॰ [ स० पाण्डता ] पांड होने का भाव, धर्म या ने उन्हें मना किया और कहा कि जिसके कोई संतान न हो क्रिया । पाहुत्व । पीलापन । वह स्वर्ग नही जा सकता । इसपर पडि ने अपनी स्त्री के गर्भ पाडुतीर्थ-सज्ञा पुं० [ स० पाण्डुतीर्थ ] पुराणानुसार एक तीर्थ से किसी ब्राह्मण के द्वारा पुत्र उत्पन्न कराने का विचार किया का नाम। और अपनी स्त्री कृती से सब हाल कहा। इसपर कृती ने, पांडुत्व-सशा पुं० [सं० पाण्डत्व ] पांडु होने का गाव । पाडता । जिसे जिस देवता का चाहे स्मरण करमेरे पुत्र प्राप्त करने का पांडुनाग-सचा पुं० [सं० पाण्टुनाग [१ पुग्नाग वृक्ष । २ सफेद वरदान था, धर्म, वायु पोर इन को पावाहन कर क्रमश. रंग का हाथी । ३ सफेद रंग का साप । युधिष्ठिर, भीम पौर भर्जुन नामक तीन पुत्र जने और माद्री ने अश्विनीकुमार के अनुग्रह से नकुल और सहदेव नामक पो पाहुपंचानन रस-सज्ञा पुं० [ स० पाण्डपञ्चानन रस ] वैद्यक मे पुत्र पाए । पीछे से ये ही पापों पुत्र पाडव कहलाए पौर इन्होंने एक प्रकार का रस जिसे त्रिकटु, त्रिफला, देनीमूल, चितामूल, कौरवों से युद्ध किया था ( दे० 'पांडव' ) । इसके कुछ दिनों हलवी, मानमूल, इद्रजी, वच, मोथा आदि औषधियो को के उपरांत एक बार वस त ऋतु में पाद को बहुत अधिक काम- गोमूत्र में पकाकर बनाते हैं और नो पाड़ तथा हलीमक पीडा हुई। उस समय उन्होंने माद्री के बहुत मना करने पर आदि रोगों के लिये बहुत ही उपकारक माना जाता है। भी नहीं माना और वे बलपूर्वक उसके साथ भोग करने लगे। पांडुपत्रो-सञ्चा सौ. [ पुं० पाण्डपत्री ] रेणुका नामक गधद्रव्य । विमिंदय ऋषि के शाप के अनुसार उसी समय उनके प्राण पादुपुत्र-सचा पु० [ स० पाण्डपुत्र ] पांडव । निकल गए भोर माद्री ने भी वही अपने प्राण दे दिए। पीथे पांडुपृष्ठ-सशा पुं० [ म० पाण्डुपृष्ठ ] २ जिसकी पीठ सफेद हो । से लोग पाट और माद्री को हस्तिनापुर ले गए और वहीं २ अयोग्य । अकर्मण्य । निकम्मा । धृतराष्ट्र की पाज्ञा से विदुर ने दोनो का प्रेतसस्कार किया। पांडु फल-सशा पुं० [सं० पाण्दुफल ] पटोल । परवल । पादुकटक- सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पायदुषण्टक ] अपामार्ग । चिचडा । पांडुफला-सशा स्त्री॰ [ स० पाण्डुफला ] चिभिटी । पाहुफली । पाहुघल-सज्ञा पुं० [ म० पाण्डुकरयल ] १ एक प्रकार का पत्थर जो सफेद होता है। २ श्वेतवर्ण का ऊनी कबल (को०) । ३ पांडुफली-सच्चा स्त्री० [सं० पाण्डुफली ] चिभिटी (को॰) । गजकीय गण का प्रावरण। हाथी की झूल (को०)। ४ पांडुभूम-वि० [ स० पाण्डभूम ] जहाँ की भूमि श्वेत वर्ण को हो । श्वेतवर्ण का ऊपरी परिधान (को०) । पांडुमृत्-सशा स्त्री० [सं० पाण्डुमृद् ] १ खड़िया । श्वेन खरी। पाडुकवली-सशा पुं० [स० पाण्डुकम्पलिन् ] १ हाथी की झूल । दुधिया मिट्टी । २ पीली मिटटी । रामरज | २ वह रथ प्रादि जिसपर पावर्ण का अोहार वा प्रावरण पाहुमृत्तिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पाण्डमृतिका ] दे० 'पाडपृत्' । पठा हो (को०)। पाडुरंग-सज्ञा पु० [म० पाण्डुरङ्ग ] १ एना प्रकार का साग जो पांडुफ-सज्ञा पुं॰ [ मं० पाण्टुक ] १ दे० 'पटुक'। २ दे० 'पाट' । वैद्यक के अनुसार तिक्त और लघु तथा कृमि, पन्नेष्मा और ३ पाड़ वर्ण । पीला रग । ४ परवल। कफ का नाश करनेवाला माना जाता है । २ पुगणानुसार पाहुकर्म-सपा पुं० [ स. पाण्टुकर्मन् ] सुश्रुत के अनुसार वर्ण विष्णु का एक अवतार । १-२५