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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२०७

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पांड २०१६ पांडु अवरोही-सा नि सा नि ध, नि ध नि ध प, ध प ध प म, प म प म ग, म ग म ग रे, ग रे ग रे सा । पांड-वि० [स० पाण्ड ] निष्फल । फलरहित [फो०] । पांडर-सञ्ज्ञा पुं० [स० पाण्डर] १ कुंद का वृक्ष । २ फुद का फूल । ३ पानडी। ४ सफेद रग। ५ सफेद रग का कोई पदार्थ । ६ मरुवा वृक्ष । दौना । ७ महाभारत के अनुसार ऐरावत के कुल मे उत्पन्न एक हाथी का नाम । ८ पुराणानुसार एक पर्वत का नाम जो मेरु एवंत के पश्चिम मे है। एक प्रकार का पक्षी । १० गैरिक । गेरु (को०) । ११ शुक्र। वीर्य (को०)। पांडरपुष्पिका-सज्ञा स्त्री० [सं० पाण्ढरपुप्पिका ] शीतला वृक्ष । पाडरमुष्टिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पाण्डरमुष्टिका] दे॰ 'पाडरपुप्पिका' । पांढरेतर-वि० [सं० पाण्ढरेतर ] पाहर अर्थात् श्वेतवर्ण से भिन्न । जो सुफेद न हो। पांडव-सज्ञा पुं० [सं० पाण्डव ] १ कुती और माद्री के गर्भ से उत्पन्न राजा पाडु के पांचो पुत्र युधिष्ठिर, भीम अर्जुन, नकुल और सहदेव । ( इनके जन्मवृत्तात के लिये दे० 'पांडु' और इनके विशेष चरित् के लिये पृथक् पृथक् इन सबके नाम देखें)। पाढ़ के पांच पुत्रों में से किसी एक की श्राख्या । ३ प्राचीन काल में पजाब का एक प्रदेश जो वितस्ता ( झेलम ) नदी के तौर पर वसा था। ४. उस प्रदेश में रहनेवाले लोग। पांडवनगर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पाण्डवनगर ] दिल्ली। पांडवश्रेष्ठ-सज्ञा पुं० [म० पाण्डवश्रेष्ठ] पाडवों मे सबसे बडे भाई । युधिष्ठिर [को॰] । पांडवाभील-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पायसवाभील ] कृष्ण । पांडवायन-सज्ञा पुं॰ [ मं० पायहवायन ] श्रीकृष्ण । पांडविक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाण्डविक ] एक प्रकार का चटक पक्षी । गौरा । गौरेया [को०] । पांडवीय-वि० [सं० पायवीय ] पाडव सबधी। पाडव जैसे, राघवपांडवीय (को०] । पांडवेय-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाण्ठधेय ] १ पाडव । २ अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित। पांरित्य-- सज्ञा पुं० [सं० पाण्डित्य ] पडित होने का भाव । विद्वत्ता। पडिताई। पांडिमा-सज्ञा पुं॰ [सं० पांडिमन् ] पाहुता । पाडत्व [को०] । पाडीस-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] तलवार (डि०) । पाहु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पापड ] १ पाङफली । पारली। २ परमल । ३ कुछ लाली लिए पीला रंग। ४ वह जिमका रग लाली लिए पीला हो। ५ एक नाग का नाम । ६ सफेद हाथी । ७ सफेद रग । ८ पीलापन लिए सफेद रंग। ६ एक रोग का नाम जिसमें रक्त के दूषित हो जाने से शरीर का चमडा पीले रंग का हो जाता है। विशेष-सुश्रुत मे लिखा है कि अधिक स्त्रीगमन करने, खटाई और नमक खाने, शराब पीने, मिट्टी खाने, दिन को मोने तथा इसी प्रकार के और कुपथ्य करने से यह रोग हो जाता है। चमडे का फटना, प्रांख के गोलक का सूजना और पेशाब पाखाने के रग का पीला पड जाना इस रोग का पूर्वलक्षण है। यह कफज, यातज, पित्तज और सन्निपातज चार प्रकार का होता है। इसके अतिरिक्त भावप्रकाश में इसका एक पांचवां प्रकार मृत्तिकाभक्षण जात भी माना गया है। सुयुत ने कामला, कुतकामला, हलीमक और लाघरक ग्रादि रोगो को इसी के अतर्गत माना है। इस रोग में रोगी को कप, पोडा, शूल, भ्रम, तद्रा, पालस्य, खाँसी, एवास, अरुचि और प्रगों मे सूजन आदि भी होती है। १. प्राचीन काल के एक राजा का नाम जो पांडव वश के पादिपुरुप थे। विशेप-महाभारत मे इनको कथा बहुत ही विस्तार के साय दी हुई है। उसमे लिखा है कि जिस समय राजा विचित्रवीर्य युवावस्था में ही क्षय रोगो के कारण मर गए और भविका तथा अबालिका नाम की उनकी दोनों लियाँ विधवा हो गई, उस समय विचित्रवीर्य की माता सत्यवती ने अपना वश चलाने के उद्देश्य से अपने दूसरे पुत्र भीष्म से कहा था कि तुम घविका और अबालिका के साथ नियोग करके संतान उत्पन्न करो। परतु भीष्म इससे बहुत पहले ही प्रतिज्ञा कर सुके थे कि मैं माजन्म क्वारा और ब्रह्मचारी रहूंगा। अत उन्होने माता को यह बात तो नहीं मानी पर उन्हे सम्मति दी कि किसी योग्य ब्राह्मण को वुलवाकर और उसे कुछ धन देकर विचित्रवीर्य की स्त्रियो का गर्भाधान करा लो। इसपर सत्यवती ने अपने पहले पुत्र व्यास का जो पराशर ऋपि से उत्पन्न हुए थे, स्मरण किया मौर उनके मा जाने पर कहा कि तुम एक प्रकार से विचित्रवीर्य के बडे भाई हो । प्रत तुम ही उसकी दोनो विधवामों से वशवृद्धि के लिये सतान उत्पन्न करो। व्यास ने अपनी माता की यह बात स्वीकार करते हुए कहा कि पहले दोनों विधवा स्त्रियाँ प्रतपूर्वक रहें तय मैं उन्हें मित्रावरुण के सदृश पुत्र प्रदान करूंगा। लेकिन सत्यवती ने कहा कि राज्य मे राजा के न रहने से अनेक प्रकार के उपद्रव होते हैं, अत तुम अभी इन दोनो को गर्भ धारण करामो । तदनुसार व्यास ने पहले तो अविका के गर्भ से धृतराष्ट्र को उत्पन्न किया। प्रौर तव प्रवालिका की वारी पाई। जव भवालिका भी ऋतुमती हो चुकी तव व्यासदेव प्राधीरात के समय उसके पास गए। उनका उग्र रूप देखकर प्रवालिका मारे डर के पीली पर गई। समय पूरा होने पर अवालिका को पीले रंग का एक लड का हुमा जिसका नाम 'पांड' रखा गया। बाल्यावस्था मे धृतराष्ट्र, पांडु और विदुर तीनों को भीष्म ने ही पाला पोसा और पढाया लिखाया था। पाठ का विवाह राजा कुतिभोज की कन्या कुती से दुपा था। पीछे से भीष्म ने मद्रकन्या माद्री से इनका एक और विवाह कर दिया था। विवाह के कुछ दिनो के उपरात पाहु ने समस्त भूमडल के राजानो को परास्त करके दिग्विजय किया और बहुत सा धन एकत्र किया । इसके धन से धृतराष्ट्र ने पांच महायज्ञ किए थे। इनमे से का।