पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२१०

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पाशुपत्र २६१४ पाँगुर पाशुपत्र-सज्ञा पुं॰ [सं०] बयुपा ( साग ) । पांसुला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ कुलटा । २ रजस्वला। ३ भूमि । पांशुमन-सञ्ज्ञा पुं० [स०] थाला । पालवाल । क्यारी। ४ केतकी। पांशुर-संज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'पासुर' [को०] । पाँ-सञ्चा पु० [सं० पाद, हिं० पाँव ] पैर । पाँव । उ०—(क) पांशुरागिनी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] महामोदा । प्राणपियारी के पां परिकै करि सौंह गरे की गरे लपटाने । -पभाकर (शब्द०)। (ख) सभा समेत पां परे विशेष पाशुराष्ट्र-सञ्ज्ञा पु० [स०] एक देश का प्राचीन नाम जिसका उल्लेख पूजियो सवै ।-केशव (शब्द०)। महाभारत में है। पाँइ-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाद ] पैर । पाँव । पांशुल'-वि० [स०] १ परस्त्रीगामी । लपट । व्यभिचारी। २ घूल पाँइता-पञ्चा पुं० [हिं० पाय +ता ] दे० 'पायता'। उ०-कहा या मिट्टी से ढका हुआ। जिसपर गर्द पड़ी हो । मलिन । मैला । ३ कलकित वा भ्रष्ट करनेवाला (को॰) । कहीं और राति सोवै जब रानी सब आपु वैठ्यो पाइते कहानी भावतो कहै ।-रघुनाथ (शब्द॰) । पाशुल-सज्ञा पुं॰ [स०] १ पूतिकरज । २ शिव । ३ शिव का पाँईबाग-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] महलो के पास पास या चारो ओर बना एक अस्प (को०)। ४ लपट या व्यभिचारी व्यक्ति (को०) । हुआ वह छोटा बाग, जिसमें प्राय, राजमहल की स्त्रियाँ सैर ५ धूल से भरी जगह (को०)। करने को जाती हैं। ऐसे वागो में प्रायः सर्वसाधारण के पांशुला -सज्ञा नी० [सं०] १ कुलटा । २. रजस्वला । ३ केतकी । जाने की मनाही होती है। केवष्ठा । ४. पृथिवी । धरती। भूमि । पाँउ@f-सचा पु० [सं० पाद, हिं० पाँव ] पाँव । पैर । विशेष-ज्ञातव्य है कि 'पाशन' से 'पाशुला' तक के सभी शब्द मुहा०-पाँट पसारे सोना= निर्भय रहना। निश्चित रहना । दत्य सकार से भी होते हैं और उनका अयं समान होता है। बेखौफ रहना। उ०-मारुत बहहु अाज अपने मन सूरज ऐसे कुछ शब्द पागे दिए गए हैं। तपङ सुखारे । इंद्र वरुण कुबेर यम सुर गण सोबहु पाउ पासु' - सज्ञा स्त्री० [स०] दे० 'पाशु' । पसारे ।-रघुराज (शब्द०)। पासुरि-सच्चा स्त्री० [सं० पार्श्व ] दे० 'पसली' । पॉक-सज्ञा पुं० [सं० पक] कीचड । पासुकूल-सञ्चा पुं० [सं०] गुदही। चीथडा। ( बौद्ध ) । उ० पाँका-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पक्क ] दे० 'पाक' । वे चीथडो ( पासुकूल ) का चीवर पहनें। हिंदु० सभ्यता, पाख-शा पुं० [सं० पर, प्रा० पक्ख ] पख । पर। पक्षी का पु० २५० । २ दे० 'पांशुकूल' । डैना। उ०-तापर भमरा पियत रस सजनि गे, बइसल पासुचार-सहा पुं० [सं०] पांगा नमक । पाखि पसारि । -विद्यापति, पृ० १८० । पासुखुर-तच्या पुं० [सं० पाशुभुर ] घोडों का एक रोग जो उनके पाँखड़ा-सज्ञा स्त्री० [हिं० पख+डा (प्रत्य०) ] दे० 'पाँख' । पैरो मे होता है। पोखदी-सशा स्त्री० [हिं०] दे० 'पखडी'। पांसुचदन-तशा पुं० [सं० पांसुचन्दन] शिव । महादेव । पाखी-सक्षा स्त्री० [सं० पक्षी] १. वह पखदार कीडी जो दीपक पसुचत्वर-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] जलोपल । वर्षोपल । पोला। पर गिरती है। पतिंगा। २ कोई पक्षी। ३ वह औजार पासुचामर-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ तबू । बडा खेमा । २ घूलिपुज । जिससे खेतो मे क्यारियां बनाई जाती हैं। धूल का ढेर (को०)। ३ स्तुति । वर्धापन । प्रशसा (को॰) । पाँखुरी-पञ्चा स्त्री॰ [हिं०] दे० 'पखडी'। ४ वह तटभूमि जिसपर दूब जमी हो [को०] । पाँग-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पङ्क ] वह नई जमीन जो किसी नदी के पीछे पासुघावक-सज्ञा पुं० [सं०] धूल साफ करनेवाला। सडक या गली हट जाने से उसके किनारे पर निकलती है । कछार । खादर । झाडनेवाला। ( कौटि०)। गगबरार । पांसुज-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'पाशुज' । पाँगल- सज्ञा पु० [सं० पाजल्य ] ऊंट । (डि०) । पांसुजलिफ-सज्ञा पु० [सं०] विष्णु [को०] । पागलायु-सद्या पुं० [हिं०] एक हिंगल छद का नाम । उ०- पांसुमव-सच्चा पुं० [ स०] दे० 'पासुज' । पागलों छद भाषे प्रगट वद घट कला बखाजै ।- पांसुभिक्षा-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] घो पेड। रघु० रू०, पृ० १४॥ पांसुर-सना पुं० [ स०] १ एक प्रकार का वहा मच्छर। दश । पांगा-चा पुं॰ [देश०] दे० 'पांगा नोन'। डांस । २ लूला । लॅगडा। पाँगानोन-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं० पक. हिं० पॉग+ नोन ] समुद्री नोन । पांसुरी -सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पसली ] स० दे० 'पसली'। विशेष--वैद्यक में इसे स्वाद में चरपरा और मधुर, भारी, न पांसुल-सशा पुं० [सं०] १ मलयुक्त। मलिन । २ पापी । ३ पूति वहुत गरम और न बहुत शीतल, अग्निप्रदीपक, वातनाशक करज। कजा। ४ परस्त्री से प्रेम करनेवाला। ५ शिव । और कफकारक माना है। दे० 'पांशुल'। पाँगुरी-वि०, सच्चा पुं० [सं० पङ्गल ] दे० 'पगु' ।