पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२११

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- - पांगुना २४२० पाति पाँगुला--नशा पुं० [सं० पाइल्य ] एक प्रकार का वात रोग पचमी। उ०-(क) जब वसत फागुन सुदी पाँच गुरु दिन । जिसमें दोनो पैर वेकार हो जाते हैं । उ०-जो दोनो पैरो को -तुलसी (शब्द०) । (ख) नाचे वनगी वसत की पांचं ।- स्तभित करे उसको पांगुला कहते हैं। माधव०, पृ० १४३। देव (शब्द०)। पाँच–वि० [ स० पञ्च ] जो गिनती में चार और एक हो । जो पाँछना-क्रि० स० [हिं० पछा] पाछना । चीरना। चीरा लगाना । तीन और दो हो। चार से एक मधिक । उ०-पांच कोष उ०-सुनि सुत वचन कहति कैकेई । मरमु पांछि जनु माहुर नीचे कर देखो इनमे सार न जानी।-कवीर श०, भा० देई।--मानस, २।१६० । २, पृ०६६। पाँजना-क्रि० न० [सं० प्रणद्ध प्रा. पणम, पॅज्म ] टीन, लोह, मुहा०-पाँचों उँगलियाँ घी में होना = सब तरह का लाभ या पीतल प्रादि धातु के दो या अधिक टुकडों को टांके लगाकर आराम होना । खुब वन भाना । जैसे,—इस समय तो आपकी जोसना । झालना । टांका लगाना । पांचो उंगलियां घी मे होगी। पाँचो सवारों में नाम पाँजर-सञ्ज्ञा पुं० [स० पर] १ बगल और कमर के बीच का लिखाना = जबरदस्ती अपने से अधिक योग्य व श्रेष्ठ मनुष्यो मे वह भाग जिसमे पसलियां होती हैं। छाती के अगल वगत मिल जाना। पौरो के साथ अपने को भी श्रेष्ठ गिनान! । का भाग । २ प्रसली । ३ पावं । पास। बगल । सामीप्य । विशेष- इस मुहावरे के सवध में एक किस्सा है। कहत हैं, पॉजरा-सश पुं० [१] वह मल्लाह जो मल्लाही मे अनाडी हो । एक बार चार अच्छे सवार कही जा रहे थे। उनके पीछे पीछे डडी। फूली । (ऐसे अनाडियो को मल्लाह लोग पांजरा एक दरिद्र आदमी भी एक गधे पर सवार जा रहा था। थोडी कहते हैं )। दूर जाने पर एक आदमी मिला जिसने उस दरिद्र गधे सवार पाँजोमग सी० [ स० पदाति, हिं० पाजी (= पैदल) । या ७० से पूछा कि क्यों भाई, ये सवार कहाँ जा रहे हैं । उसने बहुत बिगडकर कहा, हम पांचो सवार कहीं जा रहे हैं तुम्हें पूछने पाद्य ? ] विसी नदी का इतना सूख जाना कि लोग उसे से मतलव। हलकर पार कर सकें । नदी का पानी घुटनो तक या उससे भी कम हो जाना । उ०-प्रब कबीर पांजी परे पथी पावै पाँच-सञ्ज्ञा पु०१. पांच की संख्या। २. पांच का अक जो इस जायं । -कवीर (शब्द॰) । प्रकार लिखा जाता है-५। ३. कई एक पादमी। बहुत लोग । उ०-~मोरि बात सब विधिहि बनाई। प्रजा पाँच कत क्रि० प्र०-पढ़ना। करहु सहाई । -तुलसी (शब्द०)। ४ जाति विरादरी के पाँम-वि० [ देश० ] दे० 'पांजी' । उ०-~-नदियो को पांझ और मार्ग मुखिया लोग । पच । उ०—सांचे परे पनि पान पाँच मे को सूखा करनेवाली शरद ने उसको मन के उत्साह से पहले परे प्रमान, तुलसी चातक पास राम श्याम धन की।- ही यात्रा निमित्त प्रेरणा की।-लक्ष्मणसिंह (शब्द०) । तुलसी (शब्द०)। पॉड --वि० सी० [ दे. ] १ (स्त्री) जिसके स्तन विलकुल न हो पाँचको-सज्ञा पु० [सं० पञ्चक ] ३० पच्क' । या बहुत ही छोटे हो। २ (स्त्री) जिसकी योनि बहुत छोटी पाँघर-सज्ञा स्त्री० [सं० पञ्जर ] १ कोल्हू के वीच में जडे हुए हो और जो सभोग के योग्य न हो। लकडी के वे छोटे छोटे टुकडे जो गन्ने के टुकड़े को दवाने पॉडक-सज्ञा पु० [हि पण्डुक J दे० 'पडुक' । मे जाठ के सहायक होते हैं। जाठ और पांचर के बीच में दवने से ही गन्ने के टुकडो में से रस निकलता है। २ पाँडरी-सज्ञा पु० [ म० पाण्डर ] १ दौना । मरुवा । दे० 'पाडर' । दे० 'पच्चर'। २ कुद का पुष्प । उ०-वर बिहार चरन चारु पांडर पाँचवाँ-वि० पुं० [हिं० पाँच+वाँ (प्रत्य॰)] [ सी० पाँचवीं ] चपक चनार कचनार वार पार पुर पुरगिनी। -तुलसी न०, पृ० ३४४। जो क्रम मे पांच के स्थान पर पडे । पाँच के स्थान पर पडनेवाला। पाँढरा-सशा पुं० [देश॰] एक प्रकार की ईख । पाँचमा-वि० पुं० [स० पञ्चम ] दे० 'पांचवा' । उ०-पाछे थी पाँडे-सज्ञा पुं० [ स० पण्डित ] १ सरयूपारी, कान्यकुब्ज और गुसाई जी पास पांचमें दिन नारायण दास कासिद पठावते । गुजराती श्रादि ब्राह्मणो की एफ शाखा । २ कायस्थो -दो सौ बावन०, भा० १, पृ० १०७ । की एक शाखा। ३ पडित । विद्वान् । (क्व०) । ४ पाँचा-सज्ञा पुं० [हिं० पाँच+श्रा (प्रत्य॰)] किसानों का एक औजार अध्यापक । शिक्षक । ५ रसोइया । भोजन बनानेवाला। ६ पानी पिलानेवाला। जिससे वे भूसा, घास इत्यादि समेटते या हटाते हैं। इसमें चार दाँते और एक बॅट होता है इसी से इसे पांचा कहते यौ०-पानीपाँडे। हैं । पचगुरा। पति-सज्ञा खी० [हिं० पॉति ] दे॰ 'पांति' । उ०-खोवै जगत पाँचो-सचा मी० [ देश० ] एक प्रकार की घास जो तालाबों में पति अभिमाना। -कवीर सा०, पृ०६३७॥ होती है। पाँति-सज्ञा स्त्री० [सं० पक्ति ] १ कतार । पगत । २ अवली । +--सच्चा स्त्री॰ [हिं० पञ्चमी ] किसी पक्ष की पांचवीं तिथि । समूह । ३ एक साथ भोजन करनेवाले विरादरी के लोग। पाँचा-