पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२

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पंचजन २७३१ पंचत्व 1 पंचजन-सञ्ज्ञा पुं० [स० पञ्चजन] १ पांच वा पाँच प्रकार के जनो पंचतप-सञ्ज्ञा पु० [स० पञ्चतप] पचाग्नि [को॰] । का समूह । २. गधर्व, पितर, देव, असुर और राक्षस । ३. पचतपा-पचा पु० [ म० पञ्चतपस् ] पचाग्नि तापनेवाला तपस्वी । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और निपाद । ४. मनुष्य । जन चारो ओर भाग जलाकर धूप में बैठकर तप करनेवाला । समुदाय । ५ पुरुप । ६ मनुष्य जीव और शरीर से सवध पंचतय-वि० [ स० पन्चतय ] पंचगुना [को॰] । रखनेवाले प्राण प्रादि। ७ एक प्रजापति का नाम । ८ एक पंचतरु-सञ्ज्ञा पु० [ म० पन्चतरु ] पाँच वृक्ष-मदार, पारिजात, असुर जो पाताल में रहता था। सतान, कल्पवृक्ष और हरिच दन । विशेष—यह कृष्णचद्र के गुरु सदीपनाचार्य के पुत्र को चुरा ले गया था। कृष्णचद्र इसे मारकर गुरु के पुत्र को छुड़ा लाए पंचता-सज्ञा स्त्री० [ म० पञ्चता ] १ पांच का भाव । २. शरीर घटित करनेवाले पांचो भूतों का अलग अलग अवस्थान । थे। इसी असुर की हड्डी से 'पाचजन्य' शख बना था जिसे मृत्यु । विनाश। भगवान् कृष्णचद्र बजाया करते थे। पंचताल-सञ्ज्ञा पुं० [स० पन्चताल ] अष्टताल का एक भेद । इस ६ राजा सगर के पुत्र का नाम । भेद में पहले युगल, फिर एक, फिर युगल और प्रत शून्य पचजनी-सज्ञा स्त्री० [म० पञ्चजनी] १ पांच मनुष्यो की मडली। होता है। पचायत । २ विश्वरूप की कन्या का नाम (भागवत) । पंचतालेश्वर-सज्ञा पुं० [म० पन्चतालेश्वर ] शुद्ध जाति का पचजनीन-सञ्ज्ञा पु० [सं० पञ्चजनीन ] १ भांड । नकल करने- एक राग। वाला । २. नट । स्वांग बनानेवाला । अभिनेता। पंचजन्य-सज्ञा पु० [म० पञ्चजन्य] एक प्रसिद्ध शख जिसे कृष्णचद्र पचतिक्त-सशा पु० [ स० पञ्चतिक्त ] आयुर्वेद मे इन पांच कड ई वजाया करते थे । यह एक राक्षस की हड्डी का था जिसका ओषधियो का समूह-गिलोय ( गुरुच ), कटकारि ( भट नाम पचजन था। वि० दे० 'पचजन'-८ । कटैया ), सोंठ, कुट और चिरायता ( चक्रदत्त ) । पचमजाती-सज्ञा सी० [हिं० पाँच +अ० जमानत + ई (प्रत्य॰)] विशेष-पचतिक्त का काढा ज्वर में दिया जाता है। भावप्रकाश पांच ज्ञानेंद्रियाँ । उ०-दादू काया मसीति करि, पच जमाती में पचतिक्त ये हैं -नीम की जड़ की छाल, परवल की जड, मनहीं मुला इमाम। आप अलेख इलाही आग तह सिजदा अहसा, कटकारि ( कटैया ) और गिलोय। यह पचतिक्त करे सलाम । दादू०, पृ० १२८ । ज्वर के अतिरिक्त विसर्प और कुष्ठ आदि रक्तदोष के रोगो पर भी चलता है। पंचज्ञान-मज्ञा पु० [स० पञ्चज्ञान] १ वह जो पांच प्रकार के ज्ञान से युक्त हो । २ वुद्ध का एक नाम । पंचतीर्थ-सज्ञा पुं० [स० पञ्चतीर्थ ] पांच तीर्थों का समूह । दे० पचतंत्र-सज्ञा पुं० [स० पञ्चतन्त्र] सस्कृत की एक प्रसिद्ध पुस्तक 'पचतीर्थी'। उ०--फिर पचतीर्थ को चढे सकल गिरिमाला जिसमें विष्णुगुप्त द्वारा नीतिविषयक कथानो का सग्रह है। पर, है प्राण चपल । -तुलसी०, पृ० २५ । विशेष—इसमे पांच तत्र हैं जिनके नाम क्रमश मित्रलाभ, पचतीर्थी-तज्ञा ग्लो० [ स० पन्चतीर्थी ] पाँच तीर्थ स्थान । पाँच सुहृद्भेद, काकोलूकीय, लब्धप्रणाश और अपरीक्षित कारक हैं। तीर्थ । पंचतत्री-सचा स्त्री॰ [ स० पञ्चतन्त्रिन् ] एक प्रकार की वीणा विशेष-ये तीर्थ भिन्न भिन्न स्थानो मे विभिन्न नाम के हैं। जिसमें पांच तार लगते हैं। काशी खड के अनुसार काशी की पचतीर्थी निम्नाकित है- पचतत्री-वि० जिसमें पांच तार हों । पाँच तार का बना हुमा । ज्ञानवापी, नदिकेश, तारकेश, महाकालेश्वर और दडपाणि । पचतत्व-पन्ना पु० [स० पञ्चतत्त्व] १. पचभूत । पृथ्वी, जल, तेज, वाराह पुराण के अनुसार विधाति, शौकर, नैमिप, प्रयाग वायु और आकाश । उ०—पश्चाद्वर्ती भारतीय दार्शनिको ने और पुष्कर ये पांचतीर्थ । पचतत्व का प्रतिपादन किया है। -स० दरिया (भू०), पचतृण-सज्ञा पु० [ म० पन्चतृण ] इन पांच तृणो का समूह-कुश, पृ० ५४ । २. वाम मार्ग के अनुसार मद्य, मास, मत्स्य, मुद्रा, कांस, शर ( सरकहा ), दर्भ ( डाभ ) और ईख । भाव- और मैयुन । इन्हे 'पाँच प्रकार' कहते हैं। ३ तत्र के प्रकाश के मत से शालि (धान), ईख, कुश, काश और शर । अनुसार गुरुतत्व, मत्रतत्व, मनस्तत्व, देवतत्व और ध्यानतत्व । पचतोलिया-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का झीना महीन कपडा । पचतन्मात्र-सञ्ज्ञा पु० [म० पञ्चतन्मात्र ] साख्य में पांच स्यूल पचतोरिया-सञ्ज्ञा पु० [ देश० ] एक प्रकार का झीग महीन महाभूतो के कारणरूप, सूक्ष्म महाभूत जो अतीद्रिय माने कपडा । पचतोलिया। उ०-सेत जरतारी की उज्यारी कचुकी गए हैं। इनके नाम हैं शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गध । को कसि अनियारी हीठि प्यारी पेन्हीं पचतोरिया । -देव तन्मात्र ये इस कारण कहलाते हैं कि ये विशुद्ध रूप में रहते (शब्द०)। हैं अर्थात् एक मे किसी दूसरे का मेल नहीं रहता। स्यूल भूत विशुद्ध नहीं होते । एक भूत मे दूसरे भूत भी सूक्ष्म रूप पचत्रिंश-वि० [सं० पञ्चत्रिश ] पैतीसवाँ । में मिले रहते हैं। पचत्रिंशत्-वि० [स० पञ्चत्रिशत् ] पैतीस । विशेष->० 'तन्मात्र'। पचत्व-सञ्ज्ञा पुं॰ [सपञ्चत्व ] १. पांच का भाव । २. शरीर