पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३

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पंचथु २७३२ पंचपुष्प संघटित करनेवाले पांचों भूतो का अलग अलग अवस्थान । पचनामा-सशा पुं० [हिं० पच + फा० नाम ] वह कागज जिसपर मृत्यु । विनाण। पच लोगो ने अपना निर्णय या फैसला लिखा हो। क्रि० प्र०—होना। पचनिंब-सज्ञा पु० [ स० पन्चनिम्ब ] नीम के पांच अवयव–पत्ता, छाल, फूल, फल और मूल । मुहा०-पचत्व प्राप्त होना = मरना । पचनी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० पक्षिणी, प्रा० पखणी] पक्षिणी । पचथु-रग ० [ म० पञ्चथु ] कोयल। उ०-चालत कटक गोरी प्रबल भूषी चाली पचनिय । -पृ० पंचदश-वि० [स० पञ्चदशन् ] पद्रह । रा०,१११५ । पचदश-मचा पुं० पद्रह की सख्या । पंचनीर-पञ्ज्ञा स्त्री० [स० पञ्चनी] १. कपडे की बनी पासा खेलने पंचदशी-मज्ञा म्मी० [सं० पञ्चदशी] १ पूर्णमासी । २ अमावस्या । की विसात । २. शतरज की विमात [को०] । ३ वेदात का एक प्रसिद्ध ग्रथ । पंचनीराजन-सचा पुं० [सं० पञ्चनीराजन ] पाँच प्रकार की पचदेव-सज्ञा पु० [स० पञ्चदेव] पाँच प्रधान देवता जिनकी उपासना आरती [फो०] । प्राजकल हिंदुनो में प्रचलित है-ग्रादित्य, रुद्र, विष्णु, गणेश पचपक्षी-पज्ञा पु० [ म० पञ्चपक्षिन् ] एक प्रकार का शकुन शास्त्र और देवी। जिसमें अ, इ, उ, ए और ओ इन पांच वर्णों को पक्षी विशेष-इन देवतागो मे यद्यपि तीन वैदिक हैं तथापि सवका कल्पना करके शुभाशुभ विचार किया जाता है। ध्यान और सबकी पूजा पौराणिक और तात्रिक पद्धति पचपत्र-सञ्ज्ञा पु० [म० पञ्चपत्र ] एक पेड । चडाल कद । के अनुसार होती है। इन देवतागो में प्रत्येक के अनेक विग्रह पंचपदी-पज्ञा स्त्री॰ [ म० पञ्चपदी ] १ पाँच कदम या डग । २ हैं जिनके अनुसार अनेक नाम रूपो से उपासना होती है । थोडी देर का सबध । ३. एक प्रकार की ऋचा को॰] । कुछ लोग तो पांचो देवताग्रो की उपासना समान भाव से करते हैं और कुछ लोग किसी विशेष सप्रदाय के अंतर्गत पंचपनडो-पञ्ज्ञा स्त्री० [ देश ] दे० 'पचौली' । होकर किसी विशेष देवता की उपासना करते हैं। विष्णु के पचपर्णिका-सञ्चा स्त्री० [ स० ] गोरक्षी नाम का पौधा । उपासक वैष्णव, शिव के उपासक शैव, सूर्य के उपासक सौर पचपर्व-सज्ञा पुं० [सं० पञ्च पर्वन् ] अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्णिमा, और गणपति के उपासक गाणपत्य कहलाते हैं । अमावस्या और सूर्य की सक्राति [को॰] । पचद्रविड़-सफा पुं० [म० पञ्चद्गविढ] उन ग्राह्मणो के पांच भेद जो पंचपल्लव-सज्ञा पुं॰ [ पुं० पञ्चपल्लव ] इन पाँच वृक्षो के पल्लव- विंध्याचल के दक्षिण बसते हैं-महाराष्ट्र, तैलग, कर्णाट, प्राम, जामुन, कैय, विजौरा ( वीजपूरक ) और बेल । कोई गुर्जर और द्रविड । कोई प्राम, वट और मौलसिरी के पल्लवो को पचपल्लव मे पचधा-क्रि० वि० [ म० पञ्चधा ] पाँच प्रकार से। पांच ढग लेते हैं । पूजा मे घर के ऊपर रखने के लिये पचपल्लव का का को । प्रयोजन पडता है। विभिन्न पद्धतियों में विभिन्न प्रकार के पल्लवो का उल्लेख मिलता है। पचनख-सज्ञा पुं॰ [म० पञ्चनख] १ वह पशु जिसके हाथ और पैरो में पांच पांच नख होते हैं। जैसे, वदर । २ हाथी (को०) । पंचपात-मज्ञा पुं० [० पञ्चपत्र ] पंचोली नाम का पौवा । ३ कच्छप । कूर्म (को०)। ४ वाघ । व्याघ्र (को॰) । पचपनडी। विशेष-स्तृतियो मे इनके माम खाने का निपेध है। पचपात्र-सज्ञा पुं॰ [ स० पञ्चपात्र ] १ गिलास के आकार का चौडे पंचनखराज-यशा पु० [ म० पञ्चनखराज ] दे० 'पचनखो' [को०] । मुह का एक बरतन जो पूजा मे जल रखने के काम में आता है। इसके मुंह का घेरा पेंदे के घेरे के बराबर ही होता है। पचनखी-मा सी० [ म० पञ्चनखी ] गोह । पेडों पर रहनेवाली २ पार्वण श्राद्ध । ३ पाँच पात्रो का समूह (को॰) । बडी छिपक्ली [को०] । पचपाद-वि० [ स० पञ्चपाद् ] पाँच पैरोवाला [को०] । पचनद-मा पु० [ म० पञ्चनट ] १ पांच नदियो का समाहार । पजाव की वे प्रधान पांच नदियां जो सिंधु मे मिलती हैं- पचपिता-सज्ञा पुं० [म० पञ्चपितृ] पिता, प्राचार्य श्वसुर, अन्नदाता पचपाद्र-सज्ञा पुं० एक सवत्सर को०] । सतलज, व्याम रावी, चनाव और भेलम । २ पजाव प्रदेश और भय से रक्षक। जहाँ उक्त पाँच नदियां वहती हैं। ३ काशी के भतर्गत एक तीर्थ जिसे पचगगा कहते हैं । पचपितृ-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पञ्चपितृ ] दे० 'पचपिता' । पचनवत-वि० [सं० पञ्चनवत ] पचानवेवा । पचपित्त-राश पुं० [ मं० पञ्चपिच ] वैद्यक शाम्य के अनुसार वराह, पचनव ति–सशा सी० [सं० पञ्चनवति ] पचानवे की सम्या । छाग, महिष, मत्स्य और मयूर का पित्ता। पचनाथ-7 पु० [म० पञ्च + नाथ ] बदरीनाथ, द्वारकानाथ, पंचपीरिया-सज्ञा पुं० [हिं० पाँच + फा० पीर ] मुसलमानो के जगन्नाथ, रगनाथ, और श्रीनाथ । उ०-पचनाथ कलिपानन पाँचो पीरो की पूजा करनेवाला । जोई । निरखे नर नारायण होई।-गोपाल (शब्द॰) । पच पुष्प-स पु० [ सं पञ्चपुष्प ] देवी पुराणानुसार ये पांच फूल-