पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२१

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पाचनक २६५० पाज अजीर्ण का मठ्ठा पाचन है। गरम मसाला, हल्दी, हींग, सोठ पाछो की किया प्रथा नाप । ४ रिशी वृक्ष पर उमा रम नमक प्रादि साधारण रीति से सभी द्रव्यो फे पाचन हैं। निगलने के लिये गाया हपा गोग। पाचनक-सज्ञा पुं० [सं०] १ सोहागा। २ पाचन करनेवाला एक कि०प्र०-देना ।-स्तगाना । पेय (को०)। पाठ-गा. [३० परचार, प्रा०पन्या पीया। पिछला भाग । पाचनगण-श पुं० [सं०] पानन भौषधियो का वर्ग । जैसे, पाली पाछ-क्रि० वि पीये। उ०-प्रसपी नगि गय में चितय मिर्च, अजवायन, सोठ, चव्य, गजपीपल, कागडासिंगी यादि । पाद उात । जुग पपुर र वीर रय गम नहिं मोहि पाचनशक्ति-सज्ञा स्त्री० [स०] वह पाक्ति जो भोजन को पचाये । तात ।-तुलसी (शब्द०)। अमाशय और पक्वाशय में रहनेवाले पित्त तथा पग्नि की पालना-गि[हिं० पद्या ] जापा पोय के गैर पर छुगे शक्ति । हाजमा। की धार इस प्रकार मारा किया करता न परो पौर निमरो पाचनायो-क्रि० स० [स० पाचन ] १ पकाना। २ अच्छी तरह ऐयल कार कार पा रक्त प्रादि निरूत जाय । पुरा या पकाना । परिपक्व करना । उ०—निसि दिन स्याम सुमिरि नहग्नी पादि में रना, पहा या रग निरानने यश गावे कलपन मेटि प्रेमरस पाचै । -सूर (शब्द०)। पेलिपे लोग सगा।। पोला। उ०-मुनि मुठ पाचना-क्रि० अ० निस्तत्व होना । पचना । गलना । जोण वचन बहत कोई । मरगु पाधि जनु माहुर ३६।-नुलनी होना। (पद०)। पाचनिका-मसा पी० [सं० ] पकाने या पचाने की क्रिया [को०) । पाछल 9-ft- [हिं०] . 'पिपला । पाचनी-सशा गी॰ [म०] हड । पाछली- [हिं०] • "पिपना' । उ०-गए भतरघान बीठे पाचनीय-० [सं०] जो पचाई या पकाई जा सके। पचाने या पाएनी निमि जाग ।--भारतं म०, मा०३, पृ०७८ । पकाने योग्य । पाच्य । पाछलु-० [fro] २० 'पिछला'। पाचयिता-वि० [सं० पाचयित ] १ पाक करनेवाला। रसोइया । पाछा- पु० [हिं० पाठ ] पीटा। २ पचानेवाला । हाजिम । पाछाई-सी० [फा० पादशाही] वादशाती। हुमत । उ०- पाचरी-सज्ञा पुं॰ [देश०] दे० 'पच्चर'। लोक ती हि नौये माही। जा पर रात कर पापाई।- पाचल-वि० [सं०] १ पाक करनेवाला। पकानेवाला । २ घट०, पृ०२५६ । पचानेवाला । हाजिमा [को०] । पाछिल-१० [हि पाह+इल (प्रत्य॰)]: "पिछता। उ०- पाचल-सञ्ज्ञा पुं० १. अग्नि । २ पाचक । रसोइया । ३ वायु । पादित मोह समुझि पपताना। ब्रह्म मनादि मनुज कर ४ रीधने या पकाने की वस्तु (को०] । माना ।-तुलमी ( शन्द०)। पाचा-सा सी० [सं०] राधना । पकाना [को०] । पाछो-फ्रि० वि० [हिं० पार ] नीचे की पोर । पीये। उ०- पाचि-सज्ञा गी० [स०] दे॰ 'पाचा' [को०] । यक दिन मृतका रासि यक बाघो। नददास पर फे पY पाचिका-शा सी० [म०] रसोईदारिन । रसोई करनेवाली। पाची। रघुराज ( शब्द०)। पाची-सशा सी० [ स०] एक प्रकार की लता जिसे वैद्यक मे कटु- पाछी-मश सी० [ स० पी ] ३० 'पक्षी' । उ०--रसना तू मनु- तिक्त, कपाय, उष्ण, वातविकार, प्रेत और भूत की वाघा, रागनि पाची। गोविंद गुनगन रिमा साधी । -घनानंद, चर्मरोग और फोडे फु मियो मे उपकारक माना है। पाची या पृ० २६६। पच्ची लता । मतपत्री । हरितपत्रिका । पाचू-फि० वि० [ft.] 'रे० 'पीये। पाच्छा-सज्ञा पु० [ फा० पादशाह ] दे० 'बादशाह' पा:-क्रि० ६५० [हिं०] २० 'पी' । उ०-कान्ह को डर जिनि पाच्छाई-सज्ञा स्त्री॰ [फा० पादशाही] राज्य । हुकूमत । वादशाहत । जिय मैं यानी। पाई मोहि आयो ही जानी।-नंद० ० उ०—जिनके लागे सब्द के डहा त्यागि चने पाच्छाई।- पृ० १६१ । कवीर श०, भा० ३, पृ०१६ । पाछे-क्रि० वि० [हिं०] ६० 'पोधे । पाच्छाह-वज्ञा पुं॰ [फा० पादशाह ] दे० 'बादशाह'। पाछो-फि० वि० [स० पश्चा, प्रा० पच्छा हि. पाछा] २० 'पाछा' । पाच्य–वि० [सं०] जो पचाया या पकाया जा सके । पचाने या उ०-तातें श्री ठाकुर जी ने वा वैष्णव के लरिका को पायौ पकाने योग्य । पाचनीय । घर भेज्यो ।-दो सौ वायन०, भा० १, पृ० ३२७ । पाठ -सचा श्री० [हिं० पाछना ] १ जतु या पौधे के शरीर पर पाज'-सशा पुं० [सं० पाजस्य ] पांजर। उ०-निरसि छवि फूलत छुरी की धार आदि मारकर ऊपर ऊपर किया हुआ घाव हैं प्रजराज। उत जमुदा इत मापु परस्पर भाडे रहे कर जो गहरा न हो। २ पोस्ते के डोडे पर नहरनी से लगाया पाज।-सूर ( शन्द०)। हुमा चीरा जिससे गोद के रूप मे अफीम निकलती है। ३. पाज-सज्ञा पुं० [?] १ पक्ति । पाती। कतार । ( लश.)।