पाठा पार्दत पाठा-सच्चा स्त्री॰ [स०] एक लता । पाठ । पाढ़ा। यौ०-पाठ्यक्रम = पढ़ाने या अध्ययन के लिये निर्धारित पाठ । विशेष—इसके पत्ते कुछ नोकदार गोल, फूल छोटे सफेद और पाठ्यपुस्तक पढ़ाने के लिये निर्धारित पुस्तक । फल मकोय के से होते हैं। फलो का रग लाल होता है। यह पाड़-सज्ञा पुं० [हिं० पाट] १ धोती, साडी आदि का किनारा । दो प्रकार की होती है-छोटी और बडी । गुण दोनो के २ मचान । पायठ। ३ लकडी की जाली या ठठरी जो कुएँ समान हैं । वैद्यक में यह कडवी, चरपरी, गरम, तीखी, हलकी, के मुंह पर रखी रहती है । कटकर । चह । ४ बाँध । पुरता । टुटी हड्डियों को जोडनेवाली, पित्त, दाह, शूल, अतिसार, ५ वह तस्ता जिसपर खडा करके फांसी दी जाती है। वातपित्त, ज्वर, वमन, विप, अजीर्ण, त्रिदोष, हृदयरोग, तिकठी। ६ दो दीवारों के बीच पटिया देकर या पाटकर रक्तकुष्ठ, कंह, श्वास, कृमि, गुल्म, उदररोग, व्रण और कफ बनाया हुआ माघारस्थान । पाटा। दासा । तथा वात का नाश करनेवाली मानी गई है। पाइइ-सच्चा स्त्री० [ स० पाटल ] पाटल नामक वृक्ष । उ०-जहाँ बहुधा लोग घाव पर इसकी टहनी को बांधे रहते हैं। वे समझते निवारी सेवती मिलि झूमक हो । बहु पाडइ विपुल गभीर है कि इसके रहने से घाव विगह या सड न सकेगा। इसकी मिलि झूमक हो।—सूर (शब्द०)। सुखी जड़ मूत्राशय की जलन में लाभदायक होती है। पक्वा- शय की पीडा में भी इसका व्यवहार किया जाता है। जहाँ पाड़ना -क्रि० स० [सं० उत्पाटन ] उखाडना । उपाटना । उ०- वो तोता जो पिंजर में ते भार काह। निकाली जो थी उसके सौप ने काटा या विच्च ने डंक मारा हो वहाँ भी ऊपर से शाह पर वो पाठ । -दक्खिनी०, पृ०८६ | इसके बांधने से लाभ होता है। पा०-पाठिका | अवष्ठा । अयष्ठिक।। यूथिका। स्थापनी। पाडर-सञ्चा पुं० [स० पाटल ] दे॰ 'पाढर'। उ०—कहूँ पाडर डार बैठे परेवा ।-५० रासो, पृ० ५५ । विद्धकर्णिका । दीपनी 1 वनतिक्तिका । तिक्तपुष्पा । वृहत्ति- क्ता । मालती। वरा । प्रतानिनी। रक्तना। विपहनी । पाडल-सचा पुं० [सं० पाटल ] दे० 'पाटल' । महौजसी । वीरा । यल्लिका । पाडलीपुर-सज्ञा पुं० [सं० पाटलिपुत्र ] दे॰ 'पाटलीपुत्र' । पाठा--सपा पुं० [सं० पुष्ट, हिं० पट्ठा ] [ सी० पाठी ] १ वह पाहसाली-सशा पुं० [ देश० ] दक्षिण भारत में रहनेवाली जुलाहो जो जवान और परिपुष्ट हो। हृष्टपुष्ट । मोटा तगडा । जैसे, की एक जाति । साठा तव पाठा । २ जवान वैल, मैसा या बकरा। विशेष-वाघलकोट प्रादि स्थानो मे इस जाति के जुलाहे पाए पाठान-सभा ० [हिं०] दे० 'पठान' । उ०-सुनत खबर जाते हैं। लिंगायतो से इनमें बहुत कम प्रतर है। ये भी लज्जे पाठानह । -५० रासो, पृ० १०५ । गले में लिंग पहनते और सिर में भस्म रमाते हैं। ये पाठालय-भज्ञा पुं० [सं०] पाठशाला। मास, मद्य प्रादि का सेवन नहीं करते । ये एक गोत्र में विवाह पाठिक-वि० [सं०] मूल पाठ के समान । मूल पाठ से मिलता नहीं करते। जुलता हुमा [को०)। पाड़ा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पट्टन या स० पद्र, देशी पद्द, य० पाहा ] पाठिका-शा खी० [ स०] १. पढनेवालो। २ पढ़ानेवाली । ३ पुरवा । टोला। महल्ला । पौठा । पाढ़ या पाढ़ा लता। पाड़ा-सञ्ज्ञा पु० [ देश०] १. एक सामुद्रिक मछली जो भारतीय पाठिकुट-वज्ञा पुं० [सं०] चीते का वृक्ष । चित्रक वृक्ष [को०] । महासागर में पाई जाती है । यह प्राय तीन फुट लवी होती पाठित-वि० [सं०] पढाया हुमा। सिखाया हुमा। है। [स्त्री० पादी ] २ भैस का बच्चा । पडवा । पाठी-सज्ञा पुं० [सं० पाठिन् ] १ पाठ करनेवाला । पाठक । पाडिनी-सशा स्त्री॰ [ स०] मिट्टी का बरतन । हाँडी। पढनेवाला । उ०-ना मैं पाठी ना परधाना। ना ठाकुर पाढ़ा-सञ्ज्ञा पुं० [ देश० मध्य । बीच । उ०-जीवन दीसै रोगिया चाकर तेहि जाना । -कवीर म०, पृ० ५०१ । २ वह ब्राह्मण जो अपना अध्ययन समाप्त कर चुका हो (को०) । कहैं मूवा पीछे जाइ । दादू दूंह के पाढ मे, ऐसी दारू लाइ ।- दादू०, पृ० २५६। यौ०-वेदपाठी । त्रिपाठी। २ चीता । चित्रक वृक्ष । पाढ़-सज्ञा पुं॰ [ स० पाटा ] १ पाटा । २ सुनारों का एक औजार जिससे नक्काशी करते हैं । ३ वह पीढा या पाटा जिसपर पाठोफुट-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] चीते का पेड । बैठकर सुनार, लुहार आदि काम करते हैं । ४ लकडी की पाठीन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. पहिना या पढिना नाम की मछली । वह छोटी सीढी जिसके डडे कुछ ढालू होते हैं । ५ वह मचान उ०-मीन पीन पाठीन पुराने। भरि भरि भार कहारन्ह जिसपर फसल की रखवाली के लिये खेतवाला बैठता है। माने ।-मानस, २।१६३ । २ गूगल का पेठ । ३ कया ६ कुएं के मुंह पर रखी हुई लकडी की चह । पाह । ७ वाचक । पुराण आदि धार्मिक ग्रथों का वक्ता (को॰) । घोती का किनारा । पाह। पाठ्य-वि० [सं०] १. जो पढ़ने योग्य हो। पठनीय । पठितव्य । पाढत-सञ्चा स्त्री० [हिं० पदना] १. जो कुछ पढा जाय । २. जो पढ़ाया जाय। जिसका पाठ किया जाय । २ मंत्र । जादू । पढ़त । उ०-आई
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२६
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