पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२७

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पादर २६३६ पाणिनि कुमोदिनि चित्तौर चढ़ी। जोहन मोहन पाढत पढ़ी । —जायसी प्राणिग्रह-सञ्ज्ञा पुं० [स०] विवाह । (शब्द॰) । ३ पढ़ने की क्रिया या भाव । पाणिग्रहण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. विवाह की एक रीति जिसमें कन्या पाढर'-सज्ञा पुं॰ [स०] पाटल ] पाडर का पेड । का पिता उसका हाथ वर के हाथ में देता है। विशेष-३० पाढर-वि० [सं० पाट, हिं० पाद-पाद +र (प्रत्य०) ] किनारी- 'विवाह' । २ विवाह । व्याह । दार (साडी, दुपट्टा मादि)। पाणिग्रहणिक-वि० [सं०] १ विवाह सवधी । २ विवाह में दिया पाढ़ल-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाटन ] दे० 'पाटल' । जानेवाला ( उपहार ) । ३ विवाह मे पढा जानेवाला (मत्र)। पाढ़ा'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक प्रकार का हिरन । इसकी खाल पर सफेद चित्तियां होती हैं । चित्रमृग । विशेष प्राश्वलायन गृह्यसूत्र के 'अय॑मन नु देव कन्या अग्नि पाढ़ा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० पाठा ] दे० 'पाठा'। मयाक्षत' से लगाकर १६ वें सूत्र तक के मत्र 'पाणिग्रहणिक' पाढ़ी-सा स्त्री॰ [ देश० ] १ सूत की एक लच्छी । २ वह नाव कहाते हैं। जो यात्रियों को पार पहुंचाने के लिये नियत हो । पाणिग्रहणीय-वि० [सं०] १ विवाह सबधी । २ विवाह मे दिया पाण'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ व्यापार । तिजारत । खरीद विक्री। जानेवाला ( उपहार )। २ दांव । वाजी। ३ हाथ । कर । ४ प्रशसा। ५. व्यव- पाणिग्रहीता-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पाणिग्रहीत ] पति [को०] । सायी। तिजारती (को०)। ६ करार । प्रतिज्ञा (को०) । ७ पाणिग्राह-सज्ञा पुं॰ [सं०] पति । द्यूत । जुया (को०)। पाणिग्राहक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पति । भर्ता । पाणग्ग-तशा पुं॰ [सं० पानक ] नशीला शर्वत । पीने की वस्तु । पाणिघ-सज्ञा पुं० [सं०] १ वह जो हाथ से कोई बाजा बजावे । मदिरा। दे० 'पानक' उ०-अपीयइ पाखरंग ज्यू नयणे मृदग ढोल आदि बजानेवाला। २ हाथ से बजाए जानेवाले छाक चढत । - ढोला०, दू० ५३४ । मृदग, ढोल आदि बाजे । ३ कारीगर। शिल्पी। पाणही-सहा स्त्री॰ [स० उपानह ] दे० 'पानही' । १०-हूँ बराकी पाणिघात-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ थप्पड। मुक्का । चपत । चूंसा । धणि मो कियउ रोस । पाँव की पाणही सु कियन रोस ।- २ मुक्केवाज । घूसेवाज (को०) । ३ घूसेबाजी। मुक्की (को०) वी० रासो, पृ० ३३ । पाणिन'-सशा पुं० [सं०] १ शिल्पी । दस्तकार । पाणिंघम-वि० [सं० पाणिन्धम ] १ हाथों को हिलाता हुपा। २ थपोडी बजानेवाला (को०] । पाणिन-वि० ताली बजानेवाला [को०] । पाणिंधय-वि० [सं० पाणिन्धय ] हाथ से पीनेवाला (को०] । पाणिज-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ उँगली । २ नख । नाखुन । ३ नखी। पाणि-सज्ञा पुं० [सं०] १ हाय । कर । पाणितल-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ हथेली। २ वैद्यक मे एक परिमाण, जो दो तोले के बराबर होता है। यौ०-पाणिग्रह । पाणिग्राहक । २ क्षुर । खुर (को०) । ३ वाजार । हाट (को०) । ४ एक कटीला पाणिताल-सज्ञा पुं० [सं०] संगीत मे एक विशेष ताल । पौधा । कुटिल वृक्ष (को०)। पाणिवाक्ष्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] हस्तलाघव । हाथ की चालाकी [को॰] । पाणिक-सज्ञा पुं॰ [ स०] १ जो खरीदा जा सके। सौदा । २ पाणिधर्म-मञ्चा पुं० [सं०] विवाह संस्कार । हाथ । ३ कार्तिकेय का एक गण । ४ तिजारती। व्यापारी पाणिन-सा पुं० [ सं० पाणिनि ] दे० 'पाणिनि' । (को०) । ५ द्यूत में प्राप्त वस्तु (को०)। पाणिनि-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रसिद्ध मुनि जिन्होंने अष्टाध्यायी पाणिकच्छपिका-सशा स्त्री॰ [सं०] कूर्ममुद्रा। नामक प्रसिद्ध व्याकरण नथ की रचना की। पाणिकर्ण - सज्ञा स्त्रा० [सं०] शिव । पेशावर के समीपवर्ती शालातुर ( सलात् ) नामक ग्राम इनका पाणिकर्मा-सज्ञा पुं॰ [सं० पाणिकर्मन् ] १ शिव । २ हाथ से जन्मस्थान माना जाता है। इनकी माता का नाम दाक्षी और बाजा बजानेवाला। दादा का देवल था। माता के नाम पर इन्हें 'दाक्षीपुत्र' या पाणिका-मझा पुं॰ [सं०] १ एक प्रकार का गीत या छद । २ 'दाक्षेय' तथा ग्राम के नाम पर 'शालातुरीय' कहते हैं । चम्मच के आकार का एक पात्र । प्राहिक, प्राणिन, शालंफी प्रादि इनके और भी कई नाम हैं। पाणिकर्चा-सञ्ज्ञा पुं० [०] कार्तिकेय का एक गण । इनके समय के विषय मे पुरातत्वों में मतभेद है। भिन्न पाणिसात-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक तीर्थ स्थान । भिन्न विद्वानों ने इन्हें ईसा के पांच सौ, चार सौ मौर तीन सौ वर्ष पहले का माना है। किसी किसी के मत से ये ईसा पाणिगृहीत-वि० [सं०] १ विवाहित । २ तैयार । उपस्थित [को०] । की दूसरी शताब्दी में विद्यमान थे। अधिकतर लोगों ने ईसा पाणिगृहीवा-सज्ञा स्त्री० [सं०] पली। के पूर्व चौथी शताब्दी को ही प्रापका समय माना है। पाणिगृहीती-वि० स्त्री॰ [सं.] जिसका, व्याह में पाणिग्रहण किया प्रसिद्ध पुरातत्वज्ञ मौर विद्वान डा० सर रामकृष्ण भांडारकर गया हो । धर्मशास्त्रानुसार व्याही हुई। भी इसी मत के पोषक हैं। पाणिनि के पहने शाक्ल्य,