पाय २६३ पातिक यड़ा-लिगी तुरा लोग मैदान मे पाते जाते हैं। महाभाष्य । ३ पातजल योगसूत्र के अनुसार योगसाधन मुनीता, पृ०१६। करनेवाले। पाश्मिा-""- [० पारियन्ध ] पाणिग्रहण । विवाह । पावंजलदर्शन-सज्ञा पुं० [ सं० पातञ्जलदर्शन ] योगदर्शन । पाशिमुह-' पाणिभुज् ] गूलर वृक्ष । पातंजलमाष्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पातञ्जलमाप्य ] महाभाष्य नामक पाणिभुत-- [१० पागिभुज गूलर का पेड । प्रसिद्ध न्यारण ग्रंथ। पाशिमई- " [10] परमद । करौंदा । पातंजलसूत्र-सा पुं० [ स० पातञ्जलसूत्र ] योगसूत्र । पानिमुछ- [H० गत्य । भाला (फो०] । पातजलिशास्त्र-शा पुं० [स० पातञ्जलशास्त्र] पठजलि का पातिमुक-राय फेंका जानेवाला (पन्य) (को०] । बनाया हुपा योगशास्त्र । योगदर्शन । उ०-वैशेषिक शास्त्र पुनि, कालवादी है प्रसिद्ध, पातजलिशास्त्र माहिं, योगवाद पाणिगुम्ब'- [: पाणिमुग्पा ] १ पितृदेव । पितर (को०] । लह्यो है ।-सतवाणी०, मा० २, पृ० ११६ । पाणि मुरा- जाप से भोजन परे [को०] । पावंजलीय-वि० [सं० पातन्जलीय ] दे० 'पात जल' । पाणिमूल-7 [20] कलाई । पात-वि० [सं०] रक्षित । पात [को०] । पाणिमह [40] १ उँगली । २ नउ । नाखून । पास-संशा पु० [म०] १ गिरने की क्रिया या भाव । पतन । जैसे, पाणिरेखा-० [ 10 ] हथेली पर की लकीरें । हस्तरेखा । प्रघ पात। पाणिपाद-पुं० [सं०] १ मृदग, ढोल ग्रादि बजानेवाला । २ यौ०-प्रपात । गादान प्रादि वाजे । ३ ताली बजाना। ४ ताली बजाने- २ गिराने की क्रिया या भाव । जैसे, अथ पात, रक्तपात । ३. गाना। टूटकर गिरने की क्रिया या भाव । झडने की क्रिया या भाव । पाणियादर- [म०] १ मृदग प्रादि वजाने वाला। २ ताली जैसे, उल्कापात, । द्रुमपात । ४ नाश । ध्वस । मृत्यु । यजानेगाना । जैसे, देहपात । ५ पड़ना । चा लगना। जैसे, दृष्टिपात, पापिसा-या की [ 10 ] रजुरी । रस्सी (को॰] । भूमिपात । ६ खगोल में वह स्थान जहाँ नक्षत्रो की कक्षाएँ पारिएरवनि--77. [४०] यह जो हापो से याद्य यजाता हो (को०] क्रांतिवृत्त को काटकर ऊपर चढ़ती या नीचे माती हैं । पाणिवा- [40] ललितविस्तर के अनुसार एक छोटा विशेष—यह स्थान परावर यदलता रहता है और इसकी गति चालाय जिसे देवतामो ने युद्ध भगवान के लिये तैयार किया वक्र अर्थात् पूर्व से पश्चिम को है । इस स्थान का अधिष्ठाता गा। मदत है, देवतामों ने एक बार हाप से पृथ्वी को देवता राह है। ठा दिया जिससे यही एक पुष्परिणी निकल पाई। ७ राहु । ८ प्रहार । मार । प्राघात । जैसे, खड्गपात (को०)। पापिलोम-100 [10] एक विशेष होम जो पधिकारी ग्राह्मण ६ उठने की क्रिया । उहान । उहना (को०)। हापरी क्रिया जाता है। पात-मचा पुं० [सं० पत्र, प्रा० पत्त ] १ पत्ता । पत्र । पाणी-पु. [ स. पाणि] दे० 'पाणि' । मुहा०-पाता था लगना= पतझड़ होना या उसका पायी-31 [हिं० पानी ] जल । पानी। उ०-भीतर भैला समय पाना। सारी पार पाणी प्य पसाले धोया ।-दक्सिनी०, विशेष-उर्दू की पुरानी कविता में इस मुहावरे का प्रयोग पृ०३४। मिलता है। पाणित-० [1] जातिकेय ा एक गण । २ फान में पहनने का एक गहना। पत्ता । ३. चाशनी । पासोरण-. [-] पिपाह । पाणिग्रहण। किवाम । पत्त। पास्य--- [-] 1 पाशिय पी। हाप सवधी । २ प्रशसनीय । पात-सगा पुं० [सं० पाय, प्रा० पात (=दान दने योग्य गुणी )] पसाई ये योग्य (२०)। कवि । (रि०) । उ०-पात सुजस मसियात पयपै दातव पायाम- [4] राय ने सानेपाने ( पितर ) [फो०] । मसमर वात दुवै।-रघु० ६०, पृ० १६ । पात"-न पी० [सं० पात्र ] » 'पातुर' । उ०-राव अाव्या की पाग-[.. पाना] १. भरा । २ पतग सबंधी (को०)। मामली वात । नाचत रूप मनोहर पात । गढ माहीं गुडी पावनि--- [" पात]ि पग पर्षान् सूर्य में पुन-१ उछली। परि घरि तोरण मगलचार।-वी. रासो, पृ०६१ -२२म । ३ गुपीय । ४ पणं [२०] । पावक'-सरा पुं० [सं०] १ यह कर्म जिसके करने से नरक जाना पाजल'-'. [ पातयत ] पत अनि रचिउ (प्रप)। पत पटे । कर्ता को नीचे ठफैलनेवाला कर्म। पाप । फिल्विप । हावा या मा (पौत्र पाध्याकरण महानाप्य ) । कल्मष । प्रध। गुनाह । वदकारी। निषिद्ध या नीच कर्म । गो- पायी। पातं नाय । पाराजालसूत्र । उ० पातक उपपातक प्रहही। परम वचन मन भव पाव जल'--:.1. पव अमित योगसूत्र । २. पतंजषिप्रणीत फवि पहहीं।-मानस, २२१६७ ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२२९
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