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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३२

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पात्रशुद्धि २६४१ पावित्य नाटक खेलते हैं। अभिनेता। नट । ६ राजमंत्री। ७. वैद्यक में एक तोल जो चार सेर के बराबर होती है। आढक । ८. पत्ता । पत्र। ६ स वा आदि यज्ञ के उपकरण । १०. जल पीने या खाने का वरतन । ११ घादेश । हुक्म । आशा (को०) । १२ योग्यता । उपयुक्तता (को०)। १३. वह व्यक्ति जिसका कहानी, उपन्यास आदि के कथानक में वर्णन हो। पातित्य-सज्ञा पुं० [ स०] १. पतित होने या गिराने का भाव । गिरावट । २ अघ पतन । नीच या कुमार्गी होने का भाव । पातिनी-सक्षा स्त्री० [सं०] १ विशेष वर्ग की स्त्री। २ जाल । पाश । फदा । ३ मिट्टी का पात्र [को०] । पातिव्रत-सज्ञा पु० [ स० पातिव्रत्य ] दे० 'पातिव्रत्य' । उ०- मेट सकेगा कौन विश्व के पातिव्रत की लीक कहो।- साकेत । ३८६ । पातिव्रती-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'पतिव्रत्य' [को०] । पातिव्रत्य-सज्ञा पुं॰ [स०] प्रतिव्रता होने का भाव । पातिसाहा-मचा पुं० [फा० पादशाह] नरेश । पादशाह । वादशाह । राजा। उ०-धनि छोड्डिय नवजोव्वना धन छोड्डियो वहृत्त । पातिसाह उद्देशे चलु गानराज को पुत्त । –कीतिक, पु०२८। पातिसाहि-सज्ञा पु० [फा० पादशाह ] दे० 'पातिसाह' । पाती'-मज्ञा स्त्री॰ [सं० पत्रिका, प्रा० पत्तिा, पत्तिन] १ चिट्ठी । पत्री। पत्र। उ०-तात कहाँ ते पाती भाई? -सुलसी (शब्द०) । २. पत्ती । वृक्ष के पत्ते । पाती-सचा स्त्री० [हिं० पति ] लज्जा । इज्जत । प्रतिष्ठा उ०-ह्या ऊघो काहे को आए कौन सी अटल परी । सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन विनु सव पाती उघरी। सूर (शब्द॰) । पाती'-वि० [सं० पातिन् ] [वि० सी० पातिनी ] १ नीचे फेंकने या गिरानेवाला । २. पतनशील । गिरनेवाला [को०] । पातुक'-वि० [सं०] १ पतनशील । गिरनेवाला। २ नरकगामी (को०) । ३ जातिच्युत । जाति से भ्रष्ट होनेवाला। पातुकर-सचा '०१ प्रपात । झरना । २ वह जो पतनशील हो । ३ जलहाथी। पातुरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पातली = (स्त्री विशेष) ] वेश्या। रही। उ०-कार्छ सितासित काछनी केमव पातुर ज्यो पुतरीति विचारौ।-केशव ग्र०, भा० १, पृ०८१ । पातुरनी - सशा जी० [हिं० पातुर ] दे० 'पातुर'। पातुरि-सज्ञा स्त्री० [हिं० पातुर ] दे॰ 'पातुर'। पात्त-सचा पु० [ म०] पापियों का उद्धार करनेवाला । पापियो का पाता। पास्य-वि० [सं०] १ पातनीय । गिराने योग्य । २ पतित होने का भाव । गिरावट। ३ प्रहार कर गिराने योग्य (को०)। ४ (दर भादि) लगाने योग्य (को॰) । पात्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ वह वस्तु जिसमें कुछ रखा जा सके। प्राधार । बरतन । भाजन । २ वह व्यक्ति जो किसी विषय का अधिकारी हो, या जो किसी वस्तु को पाकर उसका उपभोग कर सकता हो । जैसे, दानपात्र, शिक्षापात्र आदि। उ०-स्ववलि देते हैं उसे जो पात्र । -साकेत, पृ० १८५। ३ नदी के दोनो किनारो के बीच का स्थान । पाट । ४ नाटक के नायक, नायिका प्रादि । ५ वे मनुष्य जो ६-२८ पात्रक-सशा पुं० [म०] १ थाली, हाँडी आदि पात्र । २ छोटा बरतन । लघु पात्र । ३. वह पात्र जिसमें भीख मांगकर रखी जाय । भिखमगो का भीख मांगने का पात्र । भिक्षापात्र । पात्रट'-मज्ञा पुं० [ म०] १. फटा पुराना कपडा । फटा वस्त्र । २ पात्र । बरतन [को०] । पात्रट-वि० दुबला पतला । कृश [को०] । पात्रटीर-सज्ञा पुं० [सं०] १ रजत । चांदी । २ लोहा, पीतल, कांसा या चाँदी का बरतन । ३ योग्य अमात्य । वक्ष मंत्री। ४ कोना। ५. अग्नि । ६ मोरचा । जग । ७ कक पक्षी। ८ पिंगाश । ( नाक का मल । नेटा [को०] । पात्रतरंग-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पात्रतरङ्ग ] प्राचीन काल का ताल देने का एक प्रकार का बाजा । पात्रता-सचा सी० [स०] पात्र होने का भाव । अधिकार । योग्यता। लियाकत । पात्रत्व-सच्चा पुं० [स०] पात्रता । पात्र होने का भाव । पात्रदुष्टरस-सञ्ज्ञा पुं० [स०] केशवदास के मत से एक प्रकार का रसदोष, जिसमें कवि जिस वस्तु को जैसा समझता है रचना में उसके विरुद्ध कर जाता है। एक ही वस्तु के विषय में ऐसी बातें कह जाना जो एक दूसरे के विरुद्ध या वेमेल हों। रचना में ऊटपटांग अविचारयुक्त बातें कह जाना । उ०- कपट कृपानी मानी, प्रेमरस लपटानी, प्राननि को गगा जी को पानी सम जानिए । स्वारथ निधानी परमारथ की रज- घानी, काम की कहानी केशोदास जग मानिए । सुबरन उर- झानी, सुधा सो सुधार मानी सकल सयानी सानी ज्ञानी सुख दानिए। गौरा और गिरा लजानी मोहे पुनि मूढ़ प्रानी, ऐसी बानी मेरी रानी विषु के घखानिए । -केशव (शब्द॰) । पात्रनिणेग-सया पुं० [सं०] घरतन साफ करनेवाला । पात्रपाल-सहा पुं० [सं०] १ पतवार । २ चप्पू । ३ तराजू का पल्ला या गड़ी को। पात्रभृत्-सज्ञा पुं॰ [ स०] दास । नौकर [को॰] । पात्रवर्ग-सञ्ज्ञा पुं० [१०] अभिनय करनेवाले लोग [को०] । पात्रमेल-सज्ञा पुं० [सं०] नाटक प्रादि में अनेक पात्रो का किसी दृश्य में संयोजन (को०] । पात्रशुद्धि-सच्चा श्री० [सं०] बरतनो की सफाई । पात्रो की शुद्धता [को०] । 1