पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३४

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पाथीज ६४३ पीददाह पाथोज-पज्ञा पु० [सं०] कमल । उ०-पुनि गहे पद पाथोज मयना विशेष-इस व्रत की दूसरी विधि भी मिलती है। उसमे पहले प्रेम परिपूरन हियो ।—मानस, १।१०१ । दिन रात में एक बार का परसा हुआ भोजन कर दूसरे दिन यौ०-पाथोजनाभ = विष्णु। उ०—सिद्ध सुर सेव्य पाथोज उपवास क्यिा जाता है। तीसरे और चौथे दिन यही विधि नाभ।-तुलसी ग्र०, पृ०४८१ । पाथोजपानी = कमलपाणि । क्रम से दुहराई जाती है। विष्णु । उ०-मजु मानाथ पाथोज पानी। -तुलसी ग्र०, पादक्षेप-सञ्चा पुं० [सं०] १. पैर उठाकर आगे रखना। पादन्यास । पु०४८७। २ पैर का माघात । पादप्रहार । पाथोद-सञ्ज्ञा पु० [सं०] वादल । मेघ । १०-पाथोदगात सरोज पादगंडीर-सज्ञा पुं॰ [सं० पादगण्डीर ] श्लीपद रोग । पीलपाँव । मुख राजीव पायत लोचन ।-मानस, ३ । २६ । पादगोप–सञ्चा पुं० [सं०] पदाति, रथी हस्ती तथा अश्वारोही सेना पाथोधर-सञ्चा पु० [सं०] बादल । मेघ । के सरक्षक । ( कौटि०)। पाथोधि-सचा पुं० [स०] समुद्र । पादप्रथि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० पादप्रन्थि ] एंडी और घुट्टी के बीच का पाथोन-पञ्चा पुं० [ यू. पथेयनस ] कन्या राशि । स्थान । गुल्फ। पाथोनिधि--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] समुद्र । पादग्रहण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पैर छूकर प्रणाम करना। पाथ्य-वि० [सं०] १ आकाश में रहनेवाला । २ हवा में रहनेवाला । विशेष-जिसके हाथ में समिधा, जल, जल का घडा, फूल, अन्न ३ हृदयाकाश मे रहनेवाला । तथा अक्षत में से कोई पदार्थ हो, जो अशुचि हो, जो जप या पाद'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. चरण । पैर । पाँव । पितृकार्य करता हो उसका पैर न छूना चाहिए। यौ०-पादत्राए। पादचतुर-सज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'पादचत्वर' [को०] । विशेष—यह शब्द जब किसी के नाम या पद के प्रत मे लगाया पादचत्वर'–सञ्चा पु० [ सं०] १. बकरा । २ वालू का भीटा । ३. जाता है तव वक्ता का उसके प्रति अत्यत सम्मान भाव तथा भोला। ४ पीपल का पेड़। श्रद्धा प्रगट करता है। जैसे,—कुमारिलपाद, गुरुपाद, पादचत्वर-वि० दूसरे का दोष कहनेवाला। निंदा करनेवाला । प्राचार्यपाद, तातपाद, आदि । चुगलखोर । २. मत्र, श्लोक या अन्य किसी छदोबद्ध काव्य का चतुर्थांश । पादचार-सशा पुं० [स०] पैरों से चलना । पैदल चलना [को०)। पद । चरण। ३, किसी चीज का चौथा भाग । चौथाई। ४ पुस्तक का विशेष प्रश । जैसे, पातजल का समाधिपाद, पादचारो'-सञ्ज्ञा पुं० [ सं० पादचारिन् ] १ पैदल । २ वह जो पैरो साधनपाद आदि। ५ वृक्ष का मूल । ६ किसी वस्तु का से चलता हो। नीचे का भाग । तल । जैसे, पाददेश । ७. बड़े पर्वत के समीप पादचारी-वि० पैरो से चलनेवाला । पैदल चलनेवाला [फो॰] । में छोटा पर्वत । ८ चिकित्सा के चार प्रग-वैद्य, रोगी पादज'–सझा पुं० [सं०] शूद्र । औषध और उपचारक। ६ किरण । रश्मि । १० पद को पादज-वि० जो पैर से उत्पन्न हुआ हो। क्रिया। गमन । ११. एक ऋषि । १२ शिव । १३ एक पादजल-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ वह जल जिसमें किसी के पैर घोए गए पैर की नाप जो १२ अगुल की होती है (को०) । १४. प्रश । हो । चरणोदक । २ मठा जिसमें चतुर्थाश जल हो। भाग । हिस्सा । टुकडा (को०)। १५. चक्र। चक्का (को॰) । १६. सोने का एक सिक्का जो एक तोला के लगभग होता पाजाह-सञ्ज्ञा पुं॰ [ सं०] पादमूल [को०] । था (को०)। पादटीका-नशा स्त्री० [सं०] वह टिप्पणी जो किसी न थ के पृष्ठ के नीचे लिखी गई हो । फुटनोट । पाद-मशा पुं० [स० पई, प्रा० पड़ ] वह वायु जो गुदा के मार्ग से निकले । अपानवायु । अघोवायु । गोज । पादतल-सञ्चा पु० [स] पैर का तलवा । पादक-वि० [सं०] १ जो खुब चलता हो । चलनेवाला। २. चौथाई। पादत्र'-सञ्ज्ञा पुं० [स०] दे० 'पादत्राण'। चतुर्थाश । ३ छोटा पैर। पादर- वि० पैर की रक्षा करनेवाला । पादकटक-मचा पु० [म०] भूपुर । पादत्राण-प्रज्ञा पुं० [सं०] १. खडाऊँ। २ जुता। पादकमल-सज्ञा पुं० [सं०] कमल के समान चरण। चरण पादत्राण-वि० जो पैर की रक्षा करे । कमल [को०] । पादत्रान-सचा पु० [स०] दे० 'पादत्राण' । उ०-पादज्ञान उपा- पादकीलिका सञ्चा पुं० [म०] भूपुर । नहा पाद पीठ मृदु भाइ ।-अनेकार्थ०, पृ० ५५ । पादकच्छ-सज्ञा पुं० [१०] एक प्रायश्चित्त व्रत जो चार दिन का होता पाददलित-वि० [सं०] पैर से कुचला हुआ। पादाक्रांत । पददलित । है । इसमे पहले दिन एक बार दिन मे, दूसरे दिन एक बार पाददारिका-सञ्चा ली [सं०] विवाई नाम का एक रोग, जिसमे रात में खाकर फिर तीसरे दिन अपाचित अन्न भोजन करके पैर का तलवा स्थान स्थान में फट जाता है चौथे दिन उपवास किया जाता है। पाददाह-सचा पुं० [सं०] सुश्रुत के अनुसार एक प्रकार का रोग