पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२३९

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पान २६४८ पाना पान-सञ्ज्ञा पुं॰ [देश॰] लडी । गून । (लश०) । पानभांड-संज्ञा पुं० [ स० पानभाग ] पानपात्र । पान–सञ्चा स्त्री० सूत को मांडी से तर करके ताना करना। पानभाजन-सज्ञा पुं० [म०] पानपात्र । (जुलाहा)। पानभूमि-सज्ञा श्री० [सं०] वह स्थान जहाँ एकत्र होफर लोग पानक-सचा पुं० [स] विशेष क्रिया से बनाया हुमा खट्टा तरल शराब पीते हैं। पदार्थ जो पीने के काम में आता है । पना । पानभू-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म.] द० 'पानभूमि' । विशेष-पके नीबू, भाम या इमली के रस में पानी और चीनी पानमडल-ससा पु० [सं० पानमण्डल ] पानगोष्ठी । मिलाकर पना या पानक बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त पानमत्त-० [सं०] नशे मे मतवाला । नशे में चूर । और अनेक पदार्थों का भी बनाया जाता है। पानरत-वि० [सं०] ३० 'पानपर' को०] । पानकी-सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार का पांडु रोग जिसमें हाथ पानरा-सशा पुं० [हिं० पनारा ] ० 'पनारा' । उ०-पाकी को पैरों में सूजन, अतिसार, ज्वर आदि होते हैं। -माधव०, मन पानरे के गोबर के गार । और जनम कहाँ पाइए, यह तो पृ० ७५। चालाहार ।-कबीर (शब्द॰) । पानगोष्ठिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १ वह स्थान जहाँ तात्रिक लोग पानरी-सशा सी० [हिं० ] +7 'पानही'। उ०-पति पद पानरी एकत्र होकर मद्यपान तथा कुछ पूजन भादि करते हैं। मद्यपान के प्रनव फुबु द कषों विवुध विदग्ध चित्त मृदु मधुराई तें। चक्र । २.दे० 'पानगोष्ठी'। -पजनेस०, पृ०२३ । पानगोष्ठी-सज्ञा सच्चा [सं०] १ वह सभा या मंडली जो शराव पानषणिक-सहा पुं० [सं० पानवणिज ] मद्यविक्रेता। कलवार । पीने के लिये बैठी हो। पानसभा। शराव की मजलिस । २ शराब बेचनेवाला [फो०] । मद्यशाला । शराब की दूकान (को०)। पानवणिज-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पानवणिज ] मद्य बेचनेवाला । पानड़ी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पान + डी ( प्रत्य० ) ] एक प्रकार की कलवार। पत्ती जो प्राय मीठे पेय पदार्थों तथा तेल और उबटन आदि पानविभ्रम-सचा पुं० [स०] पानात्यय नामक रोग । में उन्हें सुगधित करने के लिये छोडी जाती है। विशेष-२० 'पानात्यय'। पानदान-सञ्ज्ञा पु० [हिं० पान + फा० दान ( प्रत्य०)] १ वह पानशौंठ-सचा पुं० [सं० पानशौण्ड ] अत्यधिक मद पीनेवाला डिब्बा जिसमें पान और उसके लगाने की सामग्री रखी जाती शराबी [को०] । है। पनडब्बा । २ वह डिबिया जिसमें पान के वीडे रखे जाते हैं। गिलौरीदान । खासदान | पानस'-सशा पुं० [सं०] प्राचीन काल की एक प्रकार की शराब जो पनस (कठहल ) से वनाई जाती थी। मुहा०—पानदान का खर्च = वह रकम जो पान तथा दूसरी पानसरे-वि० पनस (फठहस) से सवध रखनेवाला । निजी आवश्यकतामो के लिये दी जाय । पिटारी का खर्च । पानदोष-सञ्ज्ञा पुं० [०] मद्यपान का व्यसन । शोरी पानही-सला सी० [सं० उपानह, हि० पनही ] मृता । - बिनु पानहिन्ह पयादेहि पाएँ । सकरु साखि रहे एहि पाएँ । की लत । मानस, २ । २६१ । पानन–सचा पुं० [हिं० पान या देश०] १ मझोले आकार का एक पाना'- क्रि० स० [स० प्रापणा, प्रा० पावा ] १ अपने पास या प्रकार का पेड जो हिमालय की तराई और उत्तरी भारत अधिकार में करना । ऐसी स्थिति मे करना जिससे अपने के भिन्न भिन्न प्रांतों में होता है। उपयोग या व्यवहार में पा सके। उपलब्ध करना । लाभ विशेष—इसकी पत्तियां जाड़ों में झड जाती हैं । लकड़ी पकने पर करना । प्राप्त करना। हासिल करना । जैसे,—उसके हाय लाल रग की, चिकनी और भारी होती है और बहुत दिन में गई वस्तु कोई नहीं पा सकता । २ फल या पुरस्कार रूप तक रहती है। इस लकडी से सजावट की चीजें, गाड़ी तथा मे कुछ पाना । कृत कर्म का भला बुरा परिणाम भोगना । घर के संगहे बनाए जाते है। इसका गोंद दवा काम में जैसे,—(क) जागे सो पावे, सोवे सो खोवे । (ख) जैसा पाता है। किया वैसा पाया । ३ किसी को दी हुई चीज वापस मिलना या २ सांदन नाम का मझोले पाकार का एक वृक्ष जिसकी लकडी कोई खोई हुई पंज फिर मिलना । जैसे,—(क) यह विठाब से सजावट के सामान बनते हैं । वि० दे० 'सांदन'। तुमसे हमने तीन वरस के बाद प्राज पाई है। (ख) यह अंगूठी मैंने चार वरस के बाद आज पाई है । ४ पता पाना । पानप-सञ्ज्ञा पुं० [स०] मद्यप । शराबी। पियक्कड । भेद पाना। तह तक पहुंचना । समझना । जैसे,—(क) मापने पानपर-वि० [स०] मद्यप । शरावी को०) । उसका रोग भी पाया है या यों ही नुसखा लिखते हैं । (ख) पानपात्र-सचा पुं० [मं०] १ वह पात्र जिसमें मद्यपान किया जाता मैंने तुम्हारे मन की बात पा ली।५ किसी की कोई वात है। २ पीने का पात्र । गिलास । उ०-नेत्रादिक इद्रियगन अपने तक पहुंचना । कुछ सुन या जान लेना । जैसे, सुध पाना जिते । हमरे पानपात्र प्रभु तिते ।-नद० प्र० पू० २७२ । समाचार पाना, संदेशा पाना । ६. देखना । साक्षात् करना।