पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२४०

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पाना २१४६ पानी' जैसे,—(क) तुमको जैमा गुना था वैसा ही पाया । (ख) पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा । हिय हो तर माल सुरेसा । भारत में प्रव सिंह प्राय नहीं पाए जाते । ७ अनुभव करना । -मानरा, १११०१। भोगना । उठाना । जैसे, दुख पाना, सुख पाना । ८. समर्थ पानिप-गशा पुं० [हिं० पानी + प (प्रत्य०) J१ प्रोप। पुति । होना । सकना। कांति । चमक । पाव । उ०-पानिप के भारत संभारति न विशेष-इस अर्थ मे पाना निया सयोज्य होती है और जिस गात, लक लचि लचि जाति फच भारन के हलके ।-द्विजदेव क्रिया या धातु के आगे लगाई जाती है उससे शक्यता (शब्द०)।२ पानी । जल । या समाप्ति की शक्यता का अर्थ निकलता है। जहाँ समाप्ति पानिय-सशा पुं० [सं० पानीय ] ३० 'पानी' (को०] । का भाव होता है वहाँ धातु के आगे यह क्रिया पाती है। जैसे,—तुम वहाँ जाने नहीं पायोगे, मैं अभी वह चिट्टी नहीं पानियल२-वि० रक्षणीय । रक्षा के योग्य मो०। लिख पाया। पानिल-मज्ञा पुं० [म०] पानपात्र । पानभाजन [को०] । ६ पास तक पहुँचना । जैसे,—(क) मत दौडो, तुम उसे नहीं पानी'-सज्ञा पुं० [सं० पानीय ] १ एक प्रसिद्ध द्रव जो पारदर्शय, पा सकते । (ख) इस डाल को तुम उछलकर नहीं पा सकते । निर्गध और स्वादरहित होता है। स्थावर पौर जगम स्य १० किमी वात मे किसी के बराबर पहुंचना । वरावर होना । प्रकार को जीवसृष्टि के लिये इसकी अनिवार्य आवश्यकता है । जैसे,—पढने मे तुम उसे नही पा सकते । ११ भोजन करना । वायु की तरह इसके प्रभाव में भी कोई जीवधारी जीवित नहीं आहार करना । खाना । जैसे, प्रसाद पाना (साघु) । उ०- रह सकता। इसी से इसका एक पर्याय 'जीवन' है। तेहि छन तहँ सिसु पावत देखा । पलना निकट गई तह देखा। यौ०-पनचक्की । पनबिजली । पानीपत। पानीफल । -विश्राम (शब्द०)। १२ ज्ञान प्राप्त करना । अनुभव विशेष-पानी यौगिक पदार्थ है। अम्लज और उदजन नामय करना । जानना । समझना । जैसे, किसी का मतलव पाना । दो गैसो के योग से इसकी उत्पत्ति हुई है । विस्तार के विचार उ०-समरथ सुभ जो पावई पीर पराई।-तुलसी (शब्द०)। से इसमे दो भाग उद्जन और एक भाग अम्लजन, और पाना-वि०१ पाने का हक । पावना । २ जिसे पाने का हक हो । गुरुत्व के विचार से १६ भाग अम्लजन और १ भाग उद्जन प्राप्तव्य । पावना। होता है, क्योकि अम्लजन का परमाणु उद्जन के परमाणु से १६ गुना अधिक भारी होता है। गरमी की अधिकता से पानागार-सज्ञा पु० [ स०] वह स्थान जहाँ बहुत से लोग मिलकर भाप बनकर उड़ जाने और कमी से पत्थर की तरह ठोस शराव पीते हो। हो जाने का द्रव पदार्थों का धर्म जितना पानी में प्रत्यक्ष होता पानाजीर्ण-पश पुं० [ स०] एक प्रकार का रोग जो अधिक मद्य है उतना पौरों में नहीं होता। तापमान की ३२ प्रश (फारेन- प्रादि पीने से होता है । उ०-पानात्यय, परमद, पानाजीर्ण हाइट) की गरमी रह जाने पर यह जमकर बर्फ और २१२ और पानविभ्रम इत्यादिक भयकर विकार होते हैं। माधव०, मश की गरमी पाने पर भाप हो जाता है। इनके मध्यवर्ती पृ० ११७॥ मंशो की गर्मी में ही यह अपने मप्रकृत रूप-द्रव रूप में पानात्यय-सज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का रोग जो बहुत अधिक रहता है। पानी में कोई रग नहीं होता पर अधिक गहरा पानी मद्यपान करने से हो जाता है। प्राय नीला दिखाई पड़ता है जिसका कारण गहराई है। स्वाद विशेष-वैद्यक में अन्य रोगो के समान वात, पित्त, कफ, और पौर गध भी उसमे उन द्रव्यों फे पारण, जो उसमे घुले होते सन्निपात भेद से इसके भी चार भेद माने गए हैं। इसमे हृदय हैं. उत्पन्न होता है। ३६ मश को गरमी में पानी पा गुरव अन्य द्रव्यो के सापेक्ष गुरुत्व के निन्नय के लिये प्रमाण रूप मे दाह और पीडा होती है, मुह पीला हो जाता और सूख जाता है। रोगी को मूर्या पाती है, वह मडवड वकता है माना जाता है, सब तरल और ठोस द्रश्यो का गुरुत्व इसी और उसके मुह से भाग गिरने लगती है । से तुलना करके स्थिर किया जाता है। अवस्याभेद से पानी पानि-सज्ञा पुं० [सं० पाणि ] हाथ । उ०- जस चेतन जग के अनेक भेद हैं। यथा-भाप, मेप, वूद, भोता, पुहिग, पाला, श्रौस, वर्फ मादि। वूद, कुहिरा, पाला, प्रोस प्रादि जीव जन सबल राममय जानि । बदउँ सबके पद कमल उसके तरल रूपांतर हैं, भाप और बादल वायय या पर्घवापस सदा जोरि जुग पानि ।-तुलसी ( शब्द०)। और भोला तथा बर्फ पनीभूत रूपातर हैं। पानिg२-राहा पु० [सं० पानीय ] दे० 'पानी' । संसार को पानी मुख्यत दृष्टि से प्राप्त होता है। मग्नों और पानिक-परा पुं० [सं०] १ वह जो शराब वेचता हो। मद्यविक्रेता । कुमों से भी थोडा बहुत मिलता है। पानी विस मवरमा २. कलवार। में बहुत ही कम पाया जाता है। प्रार पृघ7 गुछ साज, पानिमहण(पु-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पाणिग्रहण ] दे० 'पाणिग्रहण' । जोतव मौर वायव ठार उनमें भररस मिले रहे है। वृष्टि पानिमन -ना पु० [सं पाणिमरण] दे० 'पाणिग्रहण' । उ०- वा जल यदि पृथ्वी से में पाई पर मौर युप दिनो तर वृष्टि ६-२६