सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कनेर । 1 पंचप्रस्थ २७३३ पचमतान जो देवताओं को प्रिय है-चपा, आम, शमी, कमल और पचभुज-वि० [सं० पञ्चभुज ] पाच भुजाअोवाला [को०] । पचभुज-सज्ञा पुं० १. पाँच भुजानोवाला क्षेत्र या कोण । २. गणेश पंचप्रस्थ-वि० [ म० पन्चप्रस्थ ] पँचगुनी ऊँचाईवाला [को॰] । का एक नाम [को॰] । पंचप्राण-सज्ञा पुं० [स० पञ्चप्राण ] पाँच प्राण या वायु-प्राण, पंचभूत-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] पाँच प्रधान तत्व जिनसे ससार की सृष्टि अपान, समान, व्यान और उदान । हुई है-आकाश, वायु, अग्नि, जल, और पृथिवी । उ०- पंचप्रासाद-सञ्ज्ञा पु० [ स० पञ्चप्रासाद ] १. वह प्रासाद जिसमे लेत उठी मुख माधव नामा। पचभूत मैं किय विश्रामा ।- पांच शृग या गुबद हो। २. एक प्रकार का देवगृह जिसे हिंदी प्रेमगाथा०, पृ० २१८ । 'पचरत्न' या 'पंचरतन' कहते हैं। विशेष-दे० 'भूत'। पंचबंध-सशा पुं० [स० पञ्चबन्ध] मिताक्षरा के अनुसार एक प्रकार पंचभृग-सज्ञा पुं० [स० पञ्चभृग ] पाँच वृक्ष जिनके नाम हैं- का अर्थदड जो खराव हुई वस्तु के मूल्य का पचमाश हो देवदाली, शमी, भगा, निगुमी और तमालपत्र को०] । को०] । पंचमडली-सज्ञा स्त्री० [ स० पञ्चमण्डली ] पांच भलेमानसो की पंचबटी-मञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स० पञ्चवटी ] दे० 'पचवटी' । सभा। पचायत । पंचबला-सज्ञा स्त्री॰ [ म० पञ्चबला ] वैद्यक के बला, अतिबला, विशेष-गद्रगुप्त द्वितीय के साँचीवाले शिलालेख मे यह शब्द नागवला, राजवला और महावला नामक पोषधियो पाया है। का समूह। पंचम --वि० [ स० पञ्चम ] [ वि० सी० प चमी] १ पाँचवा । जैसे, पंचपाइ-सशा स्त्री० [सं० पञ्चवायु ] दे० 'पचवायु'। उ०- पचम वर्ण, पचम स्वर । २ रुचिर । सुदर । ३ दक्ष । पचवाइ जे सहजि समावै, ससिहर के घरि प्राणे सूर।- निपुण। सीतल मिले सदा सुखदाई अनहद शब्द बजावै तूर ।-दादू०, पचम-सञ्ज्ञा पुं० [स०] १ सात स्वरो में पांचवाँ स्वर । पृ०६७४। विशेष—यह स्वर पिक या कोकिल के अनुरूप माना गया है । पचवाण-सशा पुं० [सं० पन्चवाण ] दे॰ 'पचवाण' । सगीत शास्त्र में इस स्वर का वर्ण ब्राह्मण, रंग श्याम, देवता पचबान-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] कामदेव । पचवाण। उ०—कहै महादेव, रूप इद्र के समान और स्थान क्रौंच द्वीप लिखा है। पद्माकर प्रपची पचवान हू के सुकानन के मान पै परी त्यो यमली, निर्मली और कोमली नाम की इसकी तीन मूर्च्छनाएं घोर घानें सी।-पोद्दार अभि० प्र०, पृ० ४६४ । मानी गई हैं। भरत के अनुसार इसके उच्चारण मे वायु पचबाहु-सज्ञा पुं० [सं० पञ्चबाहु ] शिव [को०) । नाभि, उरु, हृदय, कठ और मूर्धा नामक पाँच स्थानों मे पंचबिंदुप्रसृत-मज्ञा पुं॰ [ मं० पञ्चबिन्दु प्रसृत ] एक प्रकार की लगती है, इसलिये इसे 'पचम' कहते हैं। सगीत दामोदर का नृत्यमुद्रा को०] । मत है कि इसमें प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान एक पचबिंस-वि० [सं० पञ्चविंश ] पच्चीसौं । पच्चीस की सख्या साथ लगते हैं इसीलिये यह पचम' कहलाता है। स्वरग्राम वाला। उ०-अव सुनि पचविस अध्याई। पचविंस निर्मल मे इसका सकेत 'प' होता है। हजाई।-नद ग्र०, पृ० ३०७ । २ एक राग जो छह प्रधान रागो में तीसरा है । पचबिडाल-सचा पु० [ स० पञ्चविदाल ] बौद्ध शास्त्रों में निरू- विशेष-कोई इसे हिंडोल राग का पुत्र और कोई भैरव का पुत्र पित पालस्य, हिंसा, काम, विचिकित्सा और मोह ये पांच प्रतिबध । उ०—कामा बतलाते हैं। कुछ लोग इसे ललित और वसत के योग से पचविडाल ।-इतिहास, बना हुआ मानते हैं और कुछ लोग हिंडोल, गापार और पृ० १२। मनोहर के मेल से । मोमेश्वर के मत से इसके गाने का समय पचबोज-सज्ञा पु० [सं० पञ्चवीज ] ककडी, खीरा, अनार, पद्मवीज और पानरीबीज-ये पांच प्रकार के बीज [को०] । शरदऋतु और प्रात काल है और विभाषा, भूपाली, कर्णाटी, वहहसिका, मालश्री, पटमजरी की इसकी छह रागिनियाँ पंचभद्र-सज्ञा पुं० [ स० पञ्चभद्र ] १. वैद्यक मे एक ओषधिगण हैं, पर कल्लिनाथ त्रिवेणी, स्तभतीर्था, भाभीरी, ककुभ, जिसमे गिलोय, पित्तपापडा, मोथा, चिरायता और सोंठ हैं। वरारी और सौवीरी को इसकी रागिनियां बतलाते हैं। कुछ २. पचकल्याण घोडा लोग इसे प्रोडव जाति का राग मानते हैं और ऋषभ, कोमल पचभद्र-वि० १. पाँच गुणो से युक्त ( व्यजन आदि ) । २. पापी । पचम और गाधार स्वरो को इसमें वजित बताते हैं। दुष्ट को०] । पचभर्तारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [स० पञ्च+भर्तार+हिं० ई (प्रत्य०)] ३. वर्ग का पांचवां अक्षर-ड, ब, ण, न और म । ४ मैथुन । पंचमकार-सञ्ज्ञा पु० [स० पञ्चमकार] वाम मार्ग के अनुसार मद्य, पंचभागी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स पञ्चभागिन् ] पच महायज्ञों की पांच . मास, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन । पंचमतान-सञ्ज्ञा पु० [स० पञ्चमतान] मीठी आवाज । ६-२ तरुवर द्रौपदी। देवियाँ (को०] 1