पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२४४

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पानी पानीदेवा 1 निथरकर निकले किसी वस्तु का वह पश जो जल क रूप कर देना। किसी का गुस्सा उतार देना । जैसे,-मैंने दो ही मे हो । रस । अर्क। जूस । जैसे, नीम का पानी, दाल का बातो मे उन्हे पानी कर दिया । (किसी का) पानी होना पानी। ६ चमक । भोप । पाव । काति । छवि । जैसे, मोती या हो जाना = (१) क्रोध उतर जाना । गुस्सा जाता रहना । का पानी। उ०-मोतिन मलिन जो होइ गइ कला। पुनि जैसे,-मुझे देखते ही वे पानी हो गए । (२) उग्रता या तेजी सो पानि कहाँ निरमला । —जायसी (शब्द॰) । न रह जाना । मद पड जाना । धीमा हो जाना। मुहा-पानी देना = जला करना । चमकाना। १५ एकबारगी, गीली, नरम या मुलायम चीज (अत्युक्ति) । ७ तलवार आदि धारदार हथियारो के लोहे का वह हलका १६ पानी की तरह फीका या स्वादहीन पदार्थ । जैसे,- स्याह रग और उसपर चीटी के पैर के चिह्नों के से प्रकृ (क) शोरवे मे बस पानी का मजा है। (ख) दाल क्या है, त्रिम चिह्न जिनसे उसकी उत्तमता की पहचान होती है । विलकुल पानी है । १७ कुश्ती या लडाई ग्रादि । द्व युद्ध । ( ऐसे लोहे की धार खुव तीक्षण और कडी होती है)। जैसे,—(क) यह बटेर दो पानी हार चुका। (ख) इन प्राव जौहर । ८. मान । प्रतिष्ठा । इज्जत । पावरू। दोनो मे भी एक पानी हो जाने दो। १८ वार । बेर । साख। उ०—(क) महमद हाशिम शका मानी। चपे दफा । जैसे,-अबकी उन्हे जहां दो पानी पीटा कि वे दुरुस्त चौधरी उतरयो पानी। -लाल (शब्द॰) । (ख) बोली हुए (बाजारू) । १६ मद्य । शराब (बोलचाल ) । २० वचन हास करि रानी। राख्यो तुम पाडव कर पानी।- अवसर । समय । मौका। जैसे -अब वह पानी गया। सवलसिंह (शब्द०)। २१ जलवायु । प्राबवा। जैसे, यहाँ का पानी हमारे अनुकूल नहीं। यौ०-पतपानी। मुहा०-कड़ा पानी = ऐसी जलवायु जिसमें उत्पन्न या पले मुहा०-पानी उतरना = साख जाती रहना । इज्जत उतरना। मनुष्य या पशु फुरतीले, शूर, साहसी, जीवटवाले, सहिष्णु मान न रह जाना। उ०-चपे चौधरी उतरघो पानी।- तथा कट्टर स्वभाव के हो । नरम पानी = ऐसी जलवायु लाल (शब्द०)। पानी उतारना = अपमानित करना। इज्जत जिसमें उत्पन्न या पले मनुष्य या पशु मद, ढीले बदन के, उतारना । उ०-जिन नहिं नेकु कानि मम मानी। दीन जीवटहीन और असहिष्णु हो । पानी लगना = स्थानविशेप के उतारि छनक मे पानी।-सबलसिह (शब्द॰) । पानी जलवायु के कारण स्वास्थ्य बिगडना या कोई रोग होना । जाना प्रतिष्ठा नष्ट होना। इज्जत जाना। मान न रह उ०-लागत प्रति पहार कर पानी। विपिन विपति नहिं जाय जाना । पानी बचाना =किसी की प्रतिष्ठा या आवरू की बखानी।-तुलसी (शब्द०)। २२ परिस्थिति । सामाजिक रक्षा करना। किसी की इज्जत बचाना । पानी रखना या दशा। लोगो की चाल ढाल या रग ढग । जैसे,—(क) पानी राखना = दे० 'पानी बचाना'। उ०-राख्यो तुम बनारस का पानी ही ऐसा है कि रग ढग बदल जाता है। पाडव कर पानी ।-सवलसिंह ( शब्द०)। पानी लेना = (ख) अब उन्हें कलकत्ते का पानी लग चला। किसी की प्रतिष्ठा या इज्जत नष्ट करना। किसी की वेमा- विशेष-इस शब्द से केवल बुरी परिस्थिति, बदमाशी, चालढाल वरूई करना। प्राबरू लेना। उ०-सु दर नयन निहारि या चरित्र विगडनेवाली समाजिक दशा व्यजित होती है, अच्छी लियो कामलन को पानी।-सूर (शब्द०) । बे पानी सामाजिक परिस्थिति नहीं। करना = प्रतिष्ठा नष्ट करना । पानी लेना। मुहा०-पानी लगना = परिस्थिति का प्रभाव पड़ना । नए नए यो०-पानीदेवा । लोगो के साथ का असर पडना । ६ वर्ष । साल । जैसे, पांच पानी का सूपर अर्थात् ऐसा सूअर पानीपुर-सशा पु० [ स० पाणि ] दे० 'पाणि' । उ०--जयति जय जिसने पांच बरसाते देखी हैं अर्थात् जिसके पांच साल पूरे हो वच तनु, दसन, नख, मुख विकट, चंड भुजदड, तरु सैल चुके हों। १० मुलम्मा। पानी।-तुलसी ग्र०, पृ०४६७ । पानी आलू-सज्ञा पु० [ स० पानीयालु ] एक कद जो त्रिदोषनाशक कि० प्र०-चढ़ाना ।-फेरना । है । पानीयालु । ११ वीर्य । शुक्र । नुत्फा (बाजारू) । पानीतराश-संशा पुं० [फा०] जहाज या नाव के पेंदे में वह वडी मुहा०-पानी गिराना = स्त्रीप्रसग करना । (बाजारू)। लकडी जो पानी को चीरती है ( लश०) । १२ पुस्त्व । मरदानगी। जीवट । हिम्मत । स्वाभिमान । पानीदार-वि० [हिं० पानी+फा० दार (प्रत्य॰)] १, प्रायदार । जैसे,—उसमें तनिक भी पानी नहीं है । १३ थोडे आदि चमकदार। २. इज्जतदार । माननीय । पावरूदार । ३. पशुप्रो की वशगत विशेषता या कुलीनता । घोड़े आदि की जीवटवाला । मरदाना । मानवाला । प्रात्माभिमानी । नस्ल । जैसे,—यह जानवर पानी और खेत का अच्छा है। पानोदेवा-वि० [हिं० पानी+देवा (= देनेवाला)] १ तर्पण या १४ पानी की तरह ठढा पदार्थ । जैसे,-तवा तो पानी हो पिंडदान करनेवाला । २ पुत्र । तनय । तनुज । ३ अपने कुल रहा है। का । स्ववशीय । मुहा०-- पानी करना या कर देना = यि.सी के चित्त को ठढा मुहा०-पानीदेवा न रह जाना = वश उच्छेद हो जाना । वश