पारस पारवती २६६५ सुजान कृपा घनानंद प्रान पपीहनि पारत क्यो नहीं। पारशव'-वि० [मं०] [वि० सी० पारशवी] १ लौहनिर्मित । -घनानद, पृ० १५१ । लोहे का बना हुप्रा । २ परशु का । परणु सवधी [को०] । पारबती-सच्चा सी० [ स० पार्वती ] 'पार्वती' । उ०-पारवती भल पारशव--सञ्ज्ञा पु० [ स०] १ याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार ब्राह्मण अवसरु जानी। गई समु पहिं मातु भवानी । —मानस, पिता और शूद्रा माता से उत्पन्न पुरुप या जाति । २ पराई १।१०७ । स्त्री से उत्पन्न पुत्र । ३ लोहा । ४ एक देश का नाम जहाँ मोती निकलते थे। पारब्रह्म-मज्ञा पुं॰ [ स० परब्रह्म ] दे० 'परब्रह्म' । उ०-सभै काल वसि होय, मौत कालो की होती। पारब्रह्म भगवान मरे ना पारश्व वि० [स० पाव ] पोर । तरफ। पाव । उ०—जाके अविगत जोती।-पलटू, भा० १, पृ० २१ । दुहुँ पारश्व पंचमहले महल छवि छाजते ।-प्रेमघन०, भा० १, पृ० ११४ । पारभृत-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्राभूत ] उपायन । उपहार । मेंट [को०] । पारमहस्य-वि० [स० ] परमहस से सबधित । परमहस का [को०] । पारश्वर, पारश्वधिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] परशुधारी व्यक्ति । फरसा लेकर युद्ध करनेवाला योद्धा को०] । पारमार्थिक ---वि० [सं०] १ परमार्थ सबधी। जिससे परमार्थ सिद्ध हो । जिससे मनुष्य को पारलौकिक सुख हो । २ वास्तविक । पारश्वय -सञ्ज्ञा पु० [सं०] सुवर्ण । सोना । जो केवल प्रतीति या भ्रम न हो । सदा ज्यो का त्यो रहने- पारषद-सज्ञा पुं॰ [सं० पार्पद ] दे० 'पार्पद' । वाला । नाम रूप से भिन्न शुद्ध सत्य । जैसे, पारमाथिकी पारपो-सशा पु० [ स० परीक्षक ] दे० 'पारखी' । उ०-रत्न पारषी सत्ता, पारमार्थिक ज्ञान । ३ सर्वोत्तम । प्रत्युत्तम । सर्वोत्कृष्ट ने ऐसे दरिद्र के हाथ मे ऐसी अनमोल रत्नजडित मू (को०)। ४ परस्पर विभक्त (को॰) । को देखकर मन मे चोर समझा और कोतवाल के पास भेजा। पारमार्थ्य-सक्षा पु० [ स० ] परम सत्य । शुद्ध सत्य [को०] । -भारतेंदु ग्र०, भा० ३, पृ० ३१ । पारमिक-वि० [सं०] [वि॰ स्त्री० परमिकी ] श्रेष्ठ । सर्वोत्तम । पारस--सज्ञा पुं॰ [ मं० स्पश, हिं० परस ] १ एक कल्पित मुख्य को जिसके विषय मे प्रसिद्ध है कि यदि लोहा उससे छुलाया ज पारमित-वि० [स०] १ उस पार या किनारे गया हुमा । २. तो सोना हो जाता है। स्वर्णमणि । उ०-पारस मनि लिय सर्वातिशायी । सर्वोत्कृष्ट [को०] । अप्प कर दिय प्रोहित कह दान ।-५० रासो, पृ० ३३ । पारमिता --मज्ञा स्त्री० [सं०] पूर्णता । गुणो की पराकाष्ठा [को०] । विशेष- इस प्रकार के पत्थर की बात फारस, अरव तथा विशेप-पारमिता छह कही गई हैं,-(१) दान, (२) शील, मे भी रसायनियो अर्थात् कीमिया बनानेवालो के बीच बात (३) क्षमा, (४) धैर्य, (५) ध्यान और (६) प्रज्ञा । कुछ थी। योरप में कुछ लोग इसकी खोज मे कुछ हैगन भी हुए लोगो के मत में सत्य, अधिष्ठान, मैत्र और उपेक्षा को इसके रूप रंग आदि तक कुछ लोगो ने लिखे । पर प्रत मिलाकर यह १० कही गई हैं। सब ख्याल ही ख्याल निकला। हिंदुस्तान में अब तक 4g पारमेश्वर-१० [म० ] परमेश्वर सबधी । परब्रह्म संवधी (को०] । से लोग नै गाल मे इसके होने का विश्वास रखते हैं । पारसेष्ठ्य-सज्ञा पुं० [सं०] १ श्रेष्ठता । सर्वोच्च स्थान । २. अत्यत लाभदायक और उपयोगी वस्तु । जैसे,- अच्छा पार सर्वेश्वरता । २ राजचिह्न [को०] । तुम्हारे हाथ लग गया है। पारस-वि० १ पारस पत्थर के समान स्वच्छ और उत्तम पारय -नि. [ मं० ] उपयुक्त । योग्य [को०] । चगा। नीरोग । तदुरुस्त । जैसे-थोडे दिन यह दधा ख पारयिष्णु -वि० [ मं०] १ सतोपजनक । तृप्तिदायक । २ पार करने या पूरा करने में शक्त। ३ जिसने पार कर लिया हो देखो देह कैसी पारस हो जाती है । २ जो किसी दूसरे को जिसने पूर्ण कर लिया हो (को०] । अपने समान कर ले। दूसरो को अपने जैसा बनानेवाला उ०—पारस जोनि लिलाटहि प्रोती। दिष्टि जो करे होते। पारलोक्य -वि० [सं०] दे० 'पारलौकिक' [को०] । जोती। —जायसी (शब्द०)। पारलौकिक'-वि० [सं०] १ परलोक सबधी। २ परलोक में शुभ फल देनेवाला। पारस-ज्ञा पुं० [हिं० परसना] १ खाने के लिये लगाया : भोजन । परसा हुना खाना। २ पत्तल जिसमे खाने के । पारलौकिक-सञ्ज्ञा पुं० प्रत्येखि कर्म (को०] । पकवान मिठाई, आदि हो। जैसे,—जो लोग वैठकर न पारवत-सज्ञा पुं० [स०] कबूतर । पारावत [को०] । खायेंगे उन्हे पारस दिया जायगा । पारवर्ग्य-वि० [सं०] अन्य वर्ग या दल का। अपर पक्ष का। अन्यदलीय । विरोधी (को०] । पारस-सज्ञा पुं॰ [स० पार्श्व] १ पास । निकट । समीप । उ०-( भृकुटी कुटिल निकट नैनन के चपल होत यहि भौति । पारवश्य -सञ्ज्ञा पु० [म.] परवशता । परतत्रता । तामरस पारस खेलत वाल भृग की पांति ।-सूर (शब्द० पारविपयिक-वि० [म० ] दूसरे राज्य का । विदेशी ( कौटि० )। (ख) उत श्यामा इत सखा मडली, इत हरि उत प्रजन ६-३१ २
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२५६
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