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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२५९

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पारा २१६८ पाराशर फिर इस सोने या चांदी में मिले हुए पारे को स्वेदनविधि से पारा-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा० पारह ] १ टुकहा। २ वह छोटी दीवार भाप के रूप मे अलग कर देते हैं और खालिस सोना या जो चूने गारे से जोडकर न बनी हो, केवल पत्थरो के टुक्के चाँदी रह जाता है । वात यह है कि इन धातुपो में एक दूसरे पर रखकर बनाई गई हो। ऐसी दीवार प्राय पारे के प्रति रासायनिक प्रवृत्ति या राग होता है । बगीचे आदि की रक्षा के लिये चारो ओर बनाई जाती है। इसी विशेषता के कारण पारा रसराज कहलाता है पारा -सञ्ज्ञा पुं० [स० पाराशर ] दे० 'पाराशर'। उ०-पारा और ईमके योग से धातुप्रो पर अनेक प्रकार की क्रियाएँ ऋषि मछोदरी ते कामक्रीडा करी। कृस्न गोपिन के सग की जाती हैं। पारे के योग से, रांगे, सोने, चांदी आदि को भीना ।-कवीर रे०, पृ०४५। दूसरी घातु पर कलई या मुलम्मे के रूप मे चढाते हैं। जिस पारापत-मज्ञा पुं० [सं०] कबूतर । कपोत । पारावत [को०] । धातु पर मुलम्मा चढाना होता है उसपर पहले पारे शोरे से पारापार-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ समुद्र । सागर । २. पार पार । दोनो सघटित रस मिलाते है, फिर १ भाग सोने और ८ भाग पारे तट (को०] । का मिश्रण तैयार करके हलका लेप कर देते हैं। गरमी पारापारीण-वि० [सं०] समुद्रगामी । पारावारीण [को०] । पाकर पारा तो उड जाता हैं, सोना लगा रह जाता है। पारायण-मक्षा पुं० [सं०] १ समाप्ति । पूरा करने का कार्य । २. पारे पर गरमी का प्रभाव सबसे अधिक पडता है इसी से समय बांधकर किसी ग्रथ का आद्योपात पाठ। ३ पार गरमी नापने के यत्र मे उसका व्यवहार होता है। इन सव जाना (को०)। कामो के अतिरिक्त औषध में भी पारे का बहुत प्रयोग पारायणिक-सभा पुं०, वि० [सं०] १ पुराण आदि का पाठ करने- होता है। वाला । आद्योपात पढ़नेवाला। २ छात्र। पुराणो और वैद्यक की पोथियो मे पारे की उत्पत्ति शिव के वीर्य पारायणी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ सरस्वती का एक नाम । २ कार्य। से कही गई है और उसका वडा माहात्म्य गाया गया है, यहाँ कर्म । क्रिया । ३ प्रकाश । ज्योति । ४ मनन । चितन [को०)। तक कि यह ब्रह्म या शिवस्वरूप कहा गया है। पारे को लेकर एक रसेश्वर दर्शन ही खडा किया गया है जिसमे पारे पारारुक-सञ्ज्ञा पुं० [म०] चट्टान । शिला। पत्थर । ही से सृष्टि की उत्पत्ति कही गई है और पिंडस्थैर्य ( शरीर पारावत-स्त्री० पुं० [ सं०] १ परेवा । पछुक । उ०—तीतर कपोत को स्थिर रखना ) तथा उसके द्वारा मुक्ति की प्राप्ति के लिये पिक कंकी कोक पारावत ।-केशव ग्र०, भा० १, पृ० १४४ । रससाघन ही उपाय बताया गया है। भावप्रकाश में पारा २ कबूतर । कपोत । उ०-सर्वदा स्वच्छद छज्जो के तले । चार प्रकार का लिखा गया है-श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण । प्रेम के पादर्श पारावत पले ।-साकेत, पृ०४। ३ वदर । इसमें श्वेत श्रेष्ठ है। ४. तेंदु का वृक्ष । ५ गिरि। पर्वत । ६ एक नाग का नाम ( महाभारत ) । ७ एक प्रकार का खट्टा पदार्थ (सुश्रुत)। वैद्यक मे पारा कृमि और कुष्ठनाशक, नेत्रहितकारी, रसायन, मधुर प्रादि छह रसो से युक्त, स्निग्ध, त्रिदोषनाशक, योग- वाही, शुक्रवधक और एक प्रकार से सपूर्ण रोगनाशक कहा पारावतक-सच्चा पुं० [सं०] एक प्रकार का पान । गया है। पारे में मल, वह्नि, विष, नाग इत्यादि कई दोष पारावतकालिका-सचा स्त्री० [म०] वही मालफंगनी। महा ज्योति- मिले रहते हैं, इससे उसे शुद्ध करके खाना चाहिए । पारा पोधने की अनेक विधियाँ वैद्यक के ग्रथों मे मिलती हैं । पारावतघ्नी-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] सरस्वती नदी [को०] । शोधन कर्म पाठ प्रकार के कहे गए हैं-स्वेदन, मर्दन, पारावतपदी -सज्ञा स्त्री० [सं०] १ मालकॅगनी । २ का जघा । उत्थापन, पातन, वोधन, नियामन और दीपन । भावप्रकाश पारावतांघ्रिपिच्छ-सज्ञा पुं॰ [ स० पारावतविपिच्छ ] एक प्रकार मे मूर्छन भी कहा गया है जो कुछ प्रोषधियो के साथ मर्दन का कबूतर [को०। का ही परिणाम है। पारावताश्व-सज्ञा पुं॰ [ सै० ] घृष्टद्युम्न का एक नाम [को०) । पर्या-रसराज । रसनाथ । महारस । रस । महातेजम् । पारावती-सज्ञा स्त्री॰ [सं०] १ लवली फल। हरफा रेवडी । २ रसलेह। रसात्तम। सुतराट् । चपल । जैत्र । शिववीज । गोपगीत । ग्वालो का गीत । ३ एक नदी का नाम । शिव । अमृन । रसेद्र । लोकेश । दुर्धर । 1 प्रभु । रुद्रज। पारावार-सचा पुं० [ मं०] १ पार पार । वार पार । दोनों तट । हरतेज । रसधातु । स्वद। देव । दिव्यरस । यशोद । सूतक । २ सीमा । प्रत । हद । जैसे,-आपकी महिमा का पारावार सिद्धधातु । पारत । हरवीज । नही। २ समुद्र। मुहा०- पारा पिलाना = ( १ ) किसी वस्तु मे पारा भरना । पारावारीण-वि० [सं०] १. जो दोनों ओर जाय । जो किसी वस्तु (२) किमी वस्तु को इतना भागे करना जैसे उसमे पारा के दोनों किनारों को पहुंचा हो। २ किसी विषय का पूर्ण भरा हो । भागे करना । वजनी करना । ज्ञाता । पारगत ३. पारावार अर्थात् समुद्रगामी [को०] । पारा-शा पुं० [सं० पारि ( = प्याला )] दीए के आकार का पाराशर-सक्षा पुं० [सं०] १ पराशर का पुत्र या वशज । २ पर उससे बडा मिट्टी का वरतन । परई। व्यास। ६ दत्तात्रेय के गुरु । मती लता। 1