पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६०

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पाराशर २४६६ पारिपात्रिक पाराशर-वि०१ पराशर सवधी । २ पराशर का बनाया हुप्रा। हैं । सत्यभामा की प्रसन्नता के लिये इसे श्रीकृष्ण स्वर्ग से जैसे, पाराशर स्मृति । इद्र से युद्ध करके लाए थे और फिर उसका पूरा भोग करके पाराशरि-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] १ पराशर के पुत्र वेदव्यास । २. इसे स्वर्ग मे रख पाए थे। यह समुद्रमथन के समय मे शुकदेव । निकला था। पाराशरी-सज्ञा पुं॰ [ स० पाराशरिन् ] वेदव्यास के भिक्षुसूत्र का २ परजाता। हरसिंगार। ३ कोविदार। कचनार । ४ अध्ययन करनेवाला । सन्यासी । चतुर्थाश्रमी। पारिभद्र । फरहद । ५. ऐरावत के कुल का एक हाथी । पाराशरीय-वि० [स०] पाराशर के पास का प्रदेश आदि । ६ सितोद पर्वत । ७ एक मुनि का नाम । पाराशर्य-सगा पुं० [स०] वेदव्यास । पारिजातक-सञ्चा पुं० [स०] १ देववृक्ष । पारिजात । २ परजाता। हरसिंगार । २ फरहद । पारिभद्र । पारासर-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'पाराशर'। उ०—सिंगी ऋषि पारासर पाए।-कबीर श०, भा०४, पृ० २११ । पारिणामिक-वि० [स०] १ जो पच जाय । पाच्य । २ विकासो- न्मुख । जिसका विकास हो सके [को०] । पारिंद'-सज्ञा पु० [सं० पारिन्द्र ] सिंह । शेर [को०] । पारिणाय्य–वि० [सं०] १ परिणय मे प्राप्त । विवाह मे पाया हुआ पारिद२- सज्ञा पुं० [फा० परद] पक्षी। परंदा। चिडिया । (धन) । २ विवाह से सबधित [को०] । उ०-सात सिकारी 'चौदह पारिद, भिन्न भिन्न निरतावै । -कबीर श०, भा०३, पृ०१। पारिणाय्य-सञ्ज्ञा पु० १. वह धन जो स्त्री को विवाह मे मिले । २. विवाह का तय होना [को०] । पारि-सहा स्त्री० [हिं० पार ] १. हद । सीमा। २ ओर तरफ । दिशा । उ०—मोचि दृग वारि सोच सोचती विचारि पारिणाहथ-सज्ञा पुं० [स०] १ घर गृहस्थी का सामान । जैसे, चारपाई, वरतन, घड़ा इत्यादि । देव चितै चहूं पारि घरी चार लौं चकि रही -देव (शब्द०)। ३ जलाशय का तट । पारितथ्या-सक्षा सी० [सं०] १ सिर पर बालो के ऊपर पहनने का स्त्रियो का एक गहना । २. बालो को वाँधने की मोतियो की पारि-सञ्ज्ञा पु० [स०] मद्य पीने का पात्र । प्याला । लडी [को। पारिक-वि० [हिं० पार ] पार करनेवाला। उद्धार करनेवाला । पारिताप-सशा पुं० [हिं०] दे० 'परिताप' । उ०-अत्यत पारिताप उ०-पारिक, मैं सासारिक, अविद्या हो व्यग्यदाम ।- का विषय तो यह है कि ।-प्रेमघन०, भा० १,पृ० २६१ । पाराधना, पू०१४। पारितोषिक'–वि० [सं०] पानदकर । प्रीतिकर । पारिकांक्षा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पारिद्वाक्षक ] दे० 'पारिकाक्षी' को०] । पारितोषिक-सञ्ज्ञा पुं० वह धन या वस्तु जो किसी पर परितुष्ट पारिकाक्षी-मज्ञा पु० [ सं० पारिवाधिन् ] ब्रह्मज्ञान का अभिलाषी । तपस्वी। या प्रसन्न होकर उसे दी जाय अथवा जो किसी को प्रसन्न करने के लिये उसे दी जाय । इनाम । पारिकुट-सा पुं० [स०] सेवक । भृत्य । नौकर । पारिध्वजिक-सशा पुं० [सं०] झडाबरदार । झडा या ध्वजा लेकर पारिकोट-सज्ञा पुं० [सं० परिकोट, हिं० परकोटा] दे० 'परकोटा'। चलनेवाला [को०] । उ.-सोझति सोलकी पहिलि चोट से लोट किए घर पारिकोट ।-पृ० रा०,१। ४२८ । । पारिपंथिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पारिपन्थिक ] बटपार । डाकू । चोर । पारिक्षित-सशा पुं० [०] परीक्षित के पुत्र जनमेजय । पारिपाट्य-सज्ञा पुं० [सं०] परिपाटी । ढग। तरीका [को०] । पारिख-वि० [सं०] परिखा सवधी । परिखा का । पारिपातिकरथ-सा पुं० [स०] वह रथ जो इधर उधर सेर करने पारिख'-संज्ञा स्त्री० [हिं० परख ] दे० 'परख' । के काम का होता था। पारिख-पञ्ज्ञा पुं० [देश] १ गुजरातियो की एक जाति । २. पारिपात्र-पञ्ज्ञा पुं० [सं०] सप्त कुलपर्वतो मे से एक जो विध्य के परखनेवाला । पारखी व्यक्ति । मतर्गत है। पारिखेय-वि० [स०] परिखा या खाई से घिरा हुआ [को०] । विशेष—इससे निकली हुई ये नदियां बताई गई हैं—वेदस्मृति, पारिगमिक-संशा पुं० [सं०] कबूतर । वेदवती, वृत्रघ्नी, सिंघ, सानदिनी, सदानीग, मही, पारा, चर्मण्यवती, नृपी, विदिशा, वेत्रवती, शिप्रा इत्यादि ( मार्क- पारिमामिक-वि० [स०] गाँव के चारो ओर स्थित (को०] । डेय पुराण)। विष्णु पुराण मे लिखा है कि मरुक और मालव पारिजात-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ एक देववृक्ष जो स्वगलोक मे इद्र के जाति इस पर्वत पर निवास करती थी। कही कही 'पारियात्र' नदनकानन में है। भी इसका नाम मिलता है। चीनी यात्री हुएन्सांग' ने दक्षिए. विशेष--इसके फूल जिस प्रकार की गध कोई चाहे, दे सकते हैं । के 'पारिपात्र' राज्य का उल्लेख किया है। इसकी भिन्न भिन्न शाखामों में अनेक प्रकार के रत्न लगते पारिपात्रिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पारिपात्र नामक पर्वत पर वगने हैं। इसी प्रकार इस वृक्ष के अनेक गुण पुराणो मे कहे गए वाला । २. दे० 'पारिपाय' (को०] ।