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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६३

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पार्थिवलिंग २६७२ पार्श्वगत यौ० -पार्थिवपुत्रपौत्र = यम के पुत्र युधिष्ठिर । जाती हैं। शिवा । भवानी। पाथिवलिग- पुं० [स० पार्थिव लिन ] १ राजा का गुण । पर्या०-उमा। गिरिजा । गौरी। २ राजचिह्न (को०] । २ शल्लकी । सलई । ३ गोपीचदन । ४ सिंहली पीपल । ५ पार्थिवश्रेष्ठ-संज्ञा पुं० [सं०] सर्वश्रेष्ठ राजा [को०] । छोटा पखानभेद। ६ घाय का पौधा। ७ अलमी। तीसी । पाथिवसुत-सशा पु० [ स० ] सूर्य [को॰] । ८ द्रौपदी (को०)। पहाडी नाला (को०)। १० गोपी। पार्थिवसुता-संज्ञा स्त्री० [सं०] राजा की पुत्री । राजकुमारी [को०] । गोपिका (को०)। पार्थिवात्मज-सज्ञा पुं॰ [सं०] सूर्य (को०] । पार्वतीनदन-सज्ञा पुं० [ सं० पार्वतीनन्दन ] १ कार्तिकेय । २ गणेश (को०)। पार्थिवाधम-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] अधम राजा । नीच राजा (को०] । पार्वतोनेत्र-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] दे० 'पार्वतीलोचन' [को०] । पार्थिवी-सज्ञा स्त्री॰ [ म०] १ (पृथिवी से उत्पन्न ) सीता । २ उमा । पार्वती । ३ लक्ष्मी (को॰) । पार्वतीय' संज्ञा पुं० [सं०] पर्वत सवधी । पहाड का । पहाडी । पार्थी- पु० [ पुं० पार्थिव ] मिट्टी का शिवलिंग । पार्वतोय'-सञ्ज्ञा पुं० एक पर्वती जाति (को०] । पार्पर -सज्ञा पुं॰ [ म०] १ यम । २. मुट्ठी या मंजुरी भर चावल पार्वतीलोचन-सञ्ज्ञा पु० [ मं० ] ताल के साठ मेदो में से एक । (को०)। ३ क्षय रोग (को०) । ४ राख । भस्म (को॰) । पावतीसख - सज्ञा पुं० [सं०] शिव [को०] । ५ कदर का केसर (को०)। पावतेय'-वि० [स०] पर्वत पर होनेवाला । पार्यतिक-वि० [स० पार्यन्तिक ] प्रतिम । निर्णायक (को०) । पार्वतेय-ज्ञा पुं० १. अ जन । सुरमा । , हुरहुर का पौधा । ३ पार्य-मुज्ञा पु० [ म० पाय्य ] १ एक रुद्र का नाम (शुक्ल यजु०) । जिगिनी। जिगनी । ४ घाय का पेट । २ मत । निश्चय । समाप्ति । परिणाम (को॰) । पार्वत्य-वि० [सं०] पहाडी । पर्वतीय । उ०—क्यार की प्रयोदशी पार्य--१० [सं०] १ जो दूसरे तट पर या दूसरी पोर हो। २ का चद्रमा पार्वत्य प्रदेश के निर्मल आकाश मे ऊंचा उठ कपरी । ३ प्रतिम । निर्णायक । ४ प्रभावकारी। अपनी शीतल प्राभा से आकाश और पृथ्वी को स्तभित किए सफल (को०)। था ।-पिंजरे०, पृ० १० । पार्लामेंट-सज्ञा स्त्री॰ [अ॰] वह सभा जो देश या राज्य के पार्शव-सज्ञा पुं॰ [ सं० ] पशु या फरसे से युद्ध करनेवाला योद्धा । शासन के लिये नियम बनाए । कानून बनानेवाली सबसे पाशुका-तचा स्त्री० [सं०] पावं को हड्डी । पसली। पजर की वही सभा । विशेष-इन शब्द का प्रयोग विशेषत अंगरेजो राज्य की पार्श्व'-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] १ वृक्ष का प्रयोभाग। काँख के नीचे का शासनव्यवस्था निर्धारित करनेवाली महामभा के लिये भाग । छाती के दाहिने या वाएँ का भाग। वगल । उ०- होता है जिसके सदस्य जनता के भिन्न भिन्न वर्गों द्वारा सुने एक पौर विशाल दर्पण है लगा। पाव से प्रतिबिंब जिममे है जाते हैं । अंगरेजी साम्राज्य के भीतर कनाडा मादि स्वराज्य- जगा। -साकेत, पृ० १२ । २ इधर उधर पडनेवाला प्राप्त देशो की ऐसी मभानो के लिये भी यह शब्द आता है। स्थान । अगल बगल की जगह । पास । निकटता । समीपता । पार्वण'-मज्ञा पुं० [सं०] वह श्राद्ध जो किसी पर्व में किया जाय । यौ०-पाचवर्ती = पास में बैठनेवाला। साथी या मुसाहिब । जैसे, अमावास्या या ग्रहण आदि के दिन किया जानेवाला ३ पाश्वास्थि । पसली । ४ कुटिल उपाय । टेड़ी चाल । ५ पार्वनाथ (को०) । ६ पहिए की धुरी का छोर या पार्वण-वि० अमावास्या या किसी पर्व के दिन किया जाने किनारा (को०)। वाला (को०] । पार्श्व-वि० समीप का । निकट का । नजदीकी । पार्वत-वि० [सं०] १ पर्वत स बघी। २ पर्वत पर होनेवाला । पार्श्वक संज्ञा पुं॰ [ सं०] १ अनेक प्रकार के कुटिल उपाय रचकर ३ जहाँ पहाड हो। धन कमानेवाला । चालबाजी के सहारे अपनी बढ़ती चाहने- पार्वत-सज्ञा पुं०१ महनिव । वकायन । २ ई गुर । ३ शिलाजतु । वाला । २ चोर । ठग (को०)। ३ ऐंद्रजालिक । वाजीगर मिलाजीत । ४ मीसा धातु । ५ एक अस्त्र । (को०) । ४ साथी । मित्र को० । पार्वतपीलु-वि० [सं०] अक्षोट । अखरोट । पार्श्वकर-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] वकाया मालगुजारी। पिछले साल की पार्वतायन-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पर्वत ऋषि की परपरा या गोत्र में बाकी जमा। उत्पन्न व्यक्ति। पार्श्वग–वि० [सं०] बगल मे चलनेवाला। साथ मे रहनेवाला । पार्वतिक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स०] पर्वतश्रेणी । पर्वतमाला [को०] । पार्श्वग-संशा पु० १ सहचर । २ परिचारक (को॰) । पार्वती-संज्ञा स्त्री० [म०] १ हिमालय पर्वत की कन्या, शिव की पार्श्वगत-वि० [सं०] १ जो वगल मे हो । जो निकट या साथ अर्धागिनी देवी जो गौरी, दुर्गा प्रादि अनेक नामों से पूजी हो । २ रक्षित [को०] । श्राद्ध ।