पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६८

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पाला २३७७ पालिसी लडने या कसरत करने की जगह । ६ दस पांच आदमियो के चीलर । १४. स्त्री जिसकी दाढी में बाल हो। १५ प्रक । उठने बैठने की जगह। चिह्न। १६ सस्तवन । प्रशसन (को०)। १७ श्रोणी। नितब (को०) । १८ लबा तालाव (को०) । पाला-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पालक, प्रा० पालय, हिं० पालना] दे० 'पालक'। उ०—पुहविए पाला प्रावन्ता।-कीति०, पृ० ४६ । पालिक-सञ्ज्ञा पु० [सं० पल्याहक ] १ पलंग । चारपाई । २ पालकी। पालागन-सञ्चा खी० [हिं० पाय+लगना ] प्रणाम । दडवत । पालिका'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] १. पालन करनेवाली । २. कान या नमस्कार। विशेष-प्रणाम करने मे, विशेषत ब्राह्मणों को, इस शब्द का वह नीचे का भाग जो अत्यत कोमल होता है (को०) । ३ तलवार या किसी अन्य शस्त्र का पैना किनारा (को०)।४ मुंह से उच्चारण भी किया जाता है, जैसे, पडित जी छूरी । छोटा चाकू (को०)। ५ स्थाली या पात्र (को॰) । पालागन । पालागल-नुज्ञा पुं० [सं०] हरकारा । संवादवाहक [को०) । पालिकार-वि० स्त्री० पालन करनेवाली। रक्षिका । पालागली-सज्ञा स्त्री० [स०] राजा की चौथी और सबसे कम पादर पालिज्वर-सज्ञा पुं॰ [ स० ] एक प्रकार का ज्वर [को०] । पानेवाली पत्नी [को०] । पालिटिक्स-सज्ञा पुं० [अ०] १. नीति शास्त्र का वह अग पालान-सञ्ज्ञा पुं० [सं• पर्याण, प्रा. पल्लाण ] दे० 'पलान'। राष्ट्र या राज्य की शाति, सुव्यवस्था और सुखसमृद्धि' उ०-ज्ञान रग पालान, सुरति की काठी हो।-धरनी० लिये नियम, कायदे और शासनविधियाँ हो। रजनी' था०, पृ०४४ । शास्त्र । २. वे बातें जिनका राजनीति से संबध हो । ३ पालाश-सधा पुं० [ स०] १ तमालपत्र। तेजपत्ता । २ हरा रंग । अधिकारप्राप्ति के लिये राजनीतिक दलों की प्रतिद्व द्विता । हरित वर्ण (को०] । पालित'-वि० [सं०] [वि०सी० पालिता] १ पाला हुआ पालाश-वि०१ पलाश से सब धित । २ पलाश की लकड़ी का पोसा हुमा! २ रक्षित । बना हुमा । ३. हरे रंग का [को०] । पालित२-सञ्ज्ञा पुं० सिहोर का वृक्ष [को॰] । पालाशखड--सञ्ज्ञा पुं० [ सं० पालाशखण्ड ] मगध देश को०] । पालिता मदार-सज्ञा पुं० [सं० पालित+मदार ] एक । पालाशि-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक ऋषि जो पलाश गोत्र के प्रवर्तक पेड जिशकी शाखाओ और टहनियो मे काले रग के का थे [को०] । होते हैं। पालिंद-संज्ञा पुं० [सं० पालिन्द ] कुंदुरु नामक सुगघ द्रव्य । विशेष-कुछ लोग इसी पेड को मंदार कहते हैं । इसकी . पालिदी-सञ्चा स्त्री० [ स०] १ सरिवन । सालसा । २ काला एक सींके के दोनो ओर लगती हैं और तीन तीन एक स निसोथ । कृष्ण निसोथ। रहती हैं । फूल के दल छोटे बड़े और क्रमविहीन होते है पालिंधी-सञ्ज्ञा ली [ सं० पालिन्धी ] दे० 'पालिंदी' । यह पेड बंगाल में समुद्रतट के पास होता है। मदरास वरमा में भी इसकी कई जातियां होती हैं । इसे बाड पालि-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं०] १. कर्णलतान । कान की लो। कान के भौति लगाते हैं। पुट के नीचे का मुलायम चमडा । विशेष-पुट के जिस निचले भाग में छेद करके वालियाँ मादि पालित्य-सज्ञा पुं० [सं०] वृद्धावस्था के कारण बालो मे सो पहनी जाती है उसे पालि कहते हैं । इस स्थान पर कई आ जाना । बुजुर्गी (को०] | प्रकार के रोग हो जाते हैं, जैसे, उत्पाटक जिसमे चिरचिराहट पालिघा-समा स्त्री० [सं० ] पारिभद्र वृक्ष । फरहद का पेड । होती है, कडु जिसमे खुजली होती है, अथिक जिसमे जगह पालिनी-वि० स्त्री० [सं० ] पालन करनेवाली। रक्षा करनेवाली जगह गाँठे सी पड़ जाती हैं, श्याव जिसमें चमडा काला हो पालिभंग-सज्ञा पु० [सं० पालिभङ्ग] बाँध या सेतु का टुटना [को० जाता है, स्नावी जिसमें बरावर खुजली होती और पनछा पालिश-सज्ञा स्त्री॰ [अ.] १ चिकनाई और चमक । पोप । बहा करता है, आदि। रोगन या मसाला जिसके लगाने से चिकनाई और च २ कोना । ३ पक्ति । श्रेणी । कतार । ४ किनारा । ५ सीमा। आ जाय। हद । ६ मेड । बाँध । उ०-ढाढी एक संदेसडउ ढोलइ लागि मुहा०-पालिश करना = रोगन या मसाला रगडकर च .कान लइ जाइ । जोबण फट्टि तलावडी, पालि न घघउ काई ।- रोगन से चिकना और साफ करना । जैसे,-जूते पर ढोला०, दू० १२२ । ७ पुल । करारा। कगार । भीटा । कर दो। पालिश होना- रोगन से चिकना और चमक उ०-खेलत मानसरोदक गई । जाइ पालि पर ठाढी भई।- किया जाना । पालिश देना=दे० 'पालिश करना। जायसी ( शब्द०)। ८. देग । बटलोई । ६. एक तौल पालिसी-सञ्चा स्त्री० [१०] १ नीति । कार्यसाधन का . जो एक प्रस्थ के बराबर होती थी । १० वह बंधा हुमा उ०-हैं ! हमारी पालिसी के विरुद्ध उद्योग करते हैं, भोजन जो छात्र या ब्रह्मचारी को गुरुकुल में मिलता था। ~मारतेंदु ग्र०, भाग १, पृ० ४७४ । २ वह प्रमाण ११. अक । गोद । उत्सग । १२. परिघि । १३. ज्या प्रतिज्ञापत्र जो वीमा करनेवाली कपनी की भोर से 4