पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२६९

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पालिमी होल्दर पाल्लविक नेने तो मिलती है, जिसमे लिसा रहता है कि अमुक बातचीत करते दिखाए जायें और चेट, राजपुत्र तथा वणिक भनें पूरी होने या बीच में अमुक दुर्घटना संघटित होने पर लोग अर्धमागधी मे । पर पाली भाषा एक विशेष प्राचीनतर योगासनानेवाले या भाफे उत्ताधिरारी को इतना रुपया काल की मागधी का नाम है, जिसे व्याकरणबद्ध करके मिसंगालि 'बीमा। कात्यायन प्रादि ने उसी प्रकार मचल प्रौर स्थिर कर दिया चौ.-पातिती हो। जिस प्रकार पाणिनि आदि ने सस्कृत को। इससे परवर्ती पालियो छोल्हर-7 . [म.] वर जिनके पास फिनी वीमा काल के पढे लिसे चौद्ध भी उसी प्राचीन मागधी का व्यवहार अपनी शास्त्रचर्चा में बरावर करते रहे। की पालिसी हो । गीमा परानेवाला । 'पाली' शब्द कहाँ से पाया इसका सतोषप्रद उत्तर कही से नहीं पालो'- [ पालिन् ] [५ मी. पालिनी] १ पालन प्राप्त होता है। लोगो ने अनेक प्रकार की कल्पनाएँ की हैं। नेवाला । पोषण परनेवाला । २ रखनेवाला। रक्षा कुछ लोग उसे स० पल्लि (= वस्ती, नगर ) से निकालते हैं, नेवाला । कुछ लोग कहते है, 'पालाश' से, जो मगध का एक नाम पाली ० पृतु मे पुगमा नाम । ( हरिवश ) । है, पाली वना है। कुछ महात्मा पह्नवी तक जा पहुंचे हैं। पासी-बी० [सं० पलिल ( = विशिष्ट स्थान ) ] वह स्थान पटने का प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था इससे कुछ लोगो का जर! तीतर, बुलबुल, वट मादि पक्षी लडाए जाते है। अनुमान है कि पाटलि की भाषा ही पाली कहलाने पाली -- [० या म०पालि ( = वरतन ) ] १ वरतन लगी। पर सवसे ठीक अनुमान यह जान पडता है कि फाटारुन । पारा । परई। २२० पालि' । 'पाली' शब्द का प्रयोग पक्ति के अर्थ में था। अव भी पाली'-- [० पालि (=पक्ति ) ] एक प्राचीन भापा संस्कृत के छान और अध्यापक किसी नथ में आप जिमे वोखो ये घमंग्रघ लिगे हुए है और जिनका पठन पाठन हुए वाक्य को 'पक्ति' कहते हैं, जैसे, यह पक्ति नही लगती है। साम, परमा, सिंहल प्रादि देशो में उसी प्रकार होता है मागघी का बुद्ध के समय का रूप बौद्ध शास्त्रो में लिपिवद्ध हो जिस प्रकार भारतवर्ष में मस्कृत का । जाने के कारण पाली ( स० पालि = पक्ति ) कहलाने लगी। रिशेप-यौद पर्ग के अभ्युदय के समय में इस भाषा का प्रचार हीनयान शाखा मे तो पाली का प्रचार वरावर एक सा वा (जन्म) लेर स्याम देश तक और उत्तर भारत चलता रहा, पर महायान शाखा के बौद्धो ने अपने प्रय मेनार मिल तक हो गया था। कहते हैं, बुद्ध भगवान् सस्कृत मे कर लिए। ने सो भागा में धर्मोपदेश किया था। वौद्ध धर्मग्र थ त्रिपिटक पाली@--मज्ञा स्त्री॰ [ म० पल्यड्क ] पालकी । उ०-होउ वाध्यउ इनी भाषा में हैं । पाली का नवगे पुराना व्याकरण कन्वायन पाटको। पालीय परगह प्रत न पार । -वी० रासो, (तात्यायन) का गुगपिाल है। ये कात्यायन कब हुए पृ० १३॥ थे ठीक पता नहीं। मिहल प्रादि के बौद्धो मे यह प्रसिद्ध है पालो'-शा सी० [हिं० पारी ] पारी । वारी । किवात्यायन बुद्ध भगनान के शिप्पो मे से ये और बुद्ध भग पालीवत-संज्ञा पुं० [ देश० या ०] एक पेड का नाम । चार ने ही उनसे उस भाषा का व्याकरण रनने के लिये कहा विशेप-बृहत्सहिता मे द्राक्षा, विजौरा प्रादि काडरोप्य पा जिसमें भगवान के उपदेश होते थे। पर वात्सायन के (=जिसकी डाल लगाने से लग जाय) पेडो में इसका नाम ध्याकारण में ही एरा स्थान पर सिंहल दीप के राजा तिष्य पाया है। पानाम पाया है जो ईसा से ३०७ वर्ष पहले राज्य करता पालीवाल -सज्ञा ॰ [2] मारवाडी ब्राह्मणो का एक वर्ग । पा। इस बाधा मा उत्तर लोग यह देते हैं कि पाली भाषा का अपन दा दिनो तक गुरु मिप्य परपरानुसा ही होता पालीशोप-सा पुं० [म०] कान का एक रोग । मामा या । इनसे सगा है कि तिप्य' वाला उदाहरण पीछे पालू-वि० [ हि० पालना ] पाला हुा । पालतू । से गिणी ने दे लिया हो। दुध लो। वररुचि गो, जिना पाले-मा पु० [हिं० पल्ला ] दे० 'पाला'। नाम कात्यारन भी था, पाली व्याकरण कार नात्यायन ममभते पालो'-राज्ञा पुं० [सं० पालि ? ] पांच रुपए मर का बाट या तौल । है, पर वरग है। (सुनार )। पारन ने अपने व्याकरण में पानी को मागधी और मूल पालो-क्रि० वि० [ में० पदाति ? ] पैदल । उ०-पहुंचावरण भाषा महा। प. बात से लोगा ने मागधी से पाली को डेरा लग पायो सगलानू सनमानियां । पाणा जोड किया भि माना है। तुध पानी प्रयकारो ने तो यहाँ तक पहा भूपत गुंजाजा राजी जानिया ।-रघु० रू०, पृ० ८७ । है रि पाली गुतो, योघिउत्यो और देवतापो को भापा है और पाल्य-० [सं०] पालन के योग्य । मागपी मनुष्णो यो। वात वह गाम होती है fr भागधी पाल्लवा-सा पी० [सं०] एक सेल जो पल्लवो या टहनियों से मा माता माघ । प्राकृत पे निगे वहन पीये तक सेला जाता है (को०] 1 बगयर होता हा माहित्यतरातर ने नाटों के पान्लविक-वि० [सं०] १. फैलनेवाला । विस्तृत होनेवाला। २ निये यह नियम किया है नि मन पुरवारी लोग मागधी में मसवर । प्रसगत [को०] ।