पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२८

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पंचसूरण २७३७ पंचाग्नि चुल्ली, पेपणी, उपस्कर, कडनी और उकुभ लिखा है। व्योरेवार दिए गए हों। पत्रा। ५ राजनीतिशास्त्र के इन्ही पाँच प्रकार की हिंसानो के दोषो की निवृत्ति के लिये अतर्गत सहाय, साधन, उपाय, देश-काल-भेद और विपद्- पचमहायज्ञो का विधान किया गया है। दे० 'पचमहायज्ञ' । प्रतिकार । ७ प्रणाम का एक भेद जिसमे घुटना, हाथ और पंचसूरण-संज्ञा स्त्री० [सं० पञ्चसूरण] दे० 'पचशूरण' । माथा पृथ्वी पर टेककर आँख देवता की ओर करके मुंह से प्रणामसूचक शब्द कहा जाता है। ७ तात्रिक उपासना पचस्कघ-सज्ञा पु० [स० पञ्चस्कन्ध ] बौद्ध दर्शन मे गुणो की मे किसी इष्टदेव का कवच, स्तोत्र, पद्धति, पटल और सहस्र समष्टि जिसे स्कध कहते हैं। नाम । ८. वह घोडा जिसके चारो पैर टाप के पास सफेद विशेष-स्कष पांच हैं-रूपस्कघ, वेदनास्कघ, सज्ञास्कघ हो और माथे पर सफेद टीका हो। पचभद्र । पच कल्याणं । सस्कार स्कष और विज्ञानस्कघ रूपस्कूध का दूसरा ६ कच्छप । कछुवा। नाम वस्तुतन्मात्रा है। इस स्कघ के भतर्गत ४ महाभूत, यौ०-पचाग मास = पत्रा के अनुसार चलनेवाला महीना । ५ ज्ञानेंद्रिय, ५ तन्मात्राएँ, २ लिंग ( स्त्री और पुरुष), ३ अवस्थाएँ (चेतना, जीवितेंद्रिय और आकार ), पंचाग वर्ष = सवत् । पंचाग शुद्धि - ज्योतिप मे वार, तिथि, चेष्टा, वाणी, चित्तप्रसादन, स्थितिस्थापन, समता, समष्टि, नक्षत्र, योग और करण की शुद्धता। स्थायित्व, ज्ञेयत्व और परिवर्तनशीलता नामक २८ गुण पचांग-वि० पांच अगोवाला (को०] । माने जाते हैं । रूपस्कध से ही वेदनास्कध की उत्पत्ति होती पंचांगिक-वि० [म० पञ्चाङ्गिक] पाच अगोवाला [को०] । है। यह वेदनास्कंध पांच ज्ञानेंद्रियो और मन के भेद से पचांगुल'-वि० [स० पञ्चाङ्ग ल] [ वि० सी० पचागुला, पंचागुली ] छह प्रकार का होता है, जिनमे प्रत्येक के रुचि, अरुचि, जो परिमाण मे पाँच अगुल का हो या जिनमे पाँच स्पृहशून्यता ये तीन तीन भेद होते हैं । सज्ञास्कध को अनुमिति उँगलियां हो। तन्मात्रा भी कहते है। इद्रिय और अत करण अनुसार पचांगुल-सञ्ज्ञा पुं० १ एरड । रेड । अडी। २ तेजपत्ता । ३ पजे इसके छह भेद हैं। वेदना होने पर ही सज्ञा होती है। चौथा के आकार का एक उपकरण (को०)। सस्कारस्कघ है जिसके ५२ भेद हैं-स्पर्श, वेदना, सज्ञा, पचांगुलि-वि० [स. पञ्चाङ्गुलि ] पांच अगुलियोवाला [को०] । चेतना, मनसिकार, स्मृति, जीवितेंद्रिय, एकाग्रता, वितर्क, विकार, वीर्य, अधिमोक्ष, प्रीति, चड, मध्यस्थता, निद्रा, पचागुली-सशा स्त्री॰ [ स० पञ्चाङ्गुली ] तक्राह्वा नामक अप [को॰] । तद्रा, मोह, प्रज्ञा, लोभ, अलोभ, उत्ताप, अनुताप, ही, अही, पचातरीय-सशा पु० [ स० पञ्चान्तरीय ] बौद्ध मत के अनुसार पांच दोष, प्रदोष, विचिकित्सा, श्रद्धा, दृष्टि, द्विविध प्रसिद्धि प्रकार के पातक-माता, पिता, अर्हत और बुद्ध का घात और याजको के साथ विवाद । ( शारीर और मानस ), लघुता, मृदुता, कर्मज्ञता, प्राज्ञता, उद्योतना, साम्य, करुणा, मुदिता, ईर्ष्या, मात्सर्य, कार्कश्य, पचान-सशा पु० [ स० पञ्चानन ] सिंह । पचानन । उ०-मालि प्रौद्धत्य और मान । पांचवां विज्ञान स्कंध है। हिंदू शास्सो वीर वाराह हक्क बज्जी चावद्दिसि मुक्कि थान पचान मिले में कहे हुए चित्त, आत्मा और विज्ञान इसके अतर्भूत हैं। समूह सूर धसि। -पृ० रा०, १७१। इस स्कघ के चेतना के धर्माधर्म भेद से ४६ भेद किए गए पचांशसञ्चा [ स० पञ्चाश ] पांचवां हिस्सा । पाँचवाँ भाग [को॰] । हैं । वौद्ध दर्शनों के अनुसार विज्ञानस्कध का क्षय होने से ही पचाइण-नशा पु० [ स० पञ्चानन ] सिंह । पचानन । उ०- निर्वाण होता है। पचाइण नई पाखरघउ मइगल नइ मद कीघ । मोहण बोली पचस्नेह-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पञ्चस्नेह ] घी, तेल, चरवी, मज्जा मारुइ कत पेम रस पीध ।-ढोला०, दू०५५४ । और मोम। पचाइत-सचा जी० [हिं० पचायत ] २० 'पचायत' । पचस्रोतसू-सशा पु० [ स० पञ्चस्रोतस् ] १ एक तीर्थ का नाम । पंचाक्षर-वि० [स० पञ्चाक्षर ] जिसमे पांच अक्षर हों। जैसे, २. एक यज्ञ। पचाक्षर मत्र, पचाक्षर शब्द, पचाक्षर वृत्ति । पचस्वेद-ली० पु० [ स० पञ्चस्वेद ] वैद्यक के अनुसार लोष्टस्वेद, वालुकास्वेद, वाष्पस्वेद, घटस्वेद और ज्वालास्वेद । पचाक्षर-सञ्चा पुं०१ प्रतिष्ठा नामक वृत्ति जिसमे पांच अक्षर पंचहजारी-सच्या पु० [फा० पजहजारी] १. पांच हजार की सेना होते हैं । २ शिव का एक मत्र जिसमे पांच अक्षर हैं- का अधिपति । २. एक पदवी जो मुगल साम्राज्य मे बहे बरे ॐ नम शिवाय। लोगो को मिलती थी। पचाग्नि' सञ्चा श्री० [स० पञ्चाग्नि] १ अन्याहार्य पचन, गार्हपत्य, पंचांग-सज्ञा पु०[म० पञ्चाङ्ग] १. पांच अग या पांच अगो से युक्त पाहवनीय, पावसथ्य और सभ्य नाम की पाँच अग्नियाँ । वस्तु । २ वृक्ष के पांच अग-जड, छाल, पत्ती, फूल और २ छादोग्य उपनिषद् के अनुसार सूर्य, पर्जन्य, पृथिवी, पुरुष फल (वैद्यक) । ३. तत्र के अनुसार ये पांच कर्म-जप, और योषित् । होम, तर्पण, अभिषेक और विप्रभोजन जो पुरश्चरण में चौ०-पचाग्नि विद्या = छादोग्य उपनिषद् के अनुसार सूर्य, किए जाते हैं। ४. ज्योतिष के अनुसार वह तिथिपत्र जिसमें बादल, पृथ्वी, पुरुष और स्त्री सवधी तात्विक विज्ञान । किसी संवद के वार, तिथि, नक्षत्र, योग और करण ३. एक प्रकार का तप जिसमे तप करनेवाला अपने चारो ओर