पंचाग्नि २७३ पंचाल अग्नि जलाकर दिन मे धूप मे बैठा रहता है। यह तप प्राय से च्युत करने के लिये पांच अप्सराएँ भेजी थी। रामायण मे ग्रीष्म ऋतु मे किया जाता है। ४ प्रायुर्वेद के अनुसार चीता शातकरिण को माडकरिण लिखा है । पपासर । चिचडी, भिलावा, गधक और मदार नामक ओपधियाँ जो पचामरा-सज्ञा स्त्री॰ [म० पञ्चामरा ] वैद्यक मे दूर्वा, विजया, विल्व- बहुत गरम मानी जाती हैं। पत्र निर्गु ही और काली तुलसी। पचाग्नि--वि०१ पचाग्नि की उपासना करनेवाला। २ पचाग्नि पचामृत'-तशा पु० [म० पञ्चामृत] १ एक प्रकार का स्वादिष्ट पेय विद्या जानेवाला । ३ पवाग्नि तापनेवाला। द्रव्य जो दूध, दही, घी, चीनी और मधु मिलाकर बनाया पचाज-भशा पु० [ म० पञ्चाज ] बकरी से प्राप्त होनेवाला पांच जाता है। पुराण, तत्रादि के अनुसार यह देवताप्रो को स्नान पदार्थ-दूध दही, घी, पुरीष (लेडी) और मूत्र [को॰] । कराने और चढाने के काम मे पाता है। २ वैद्यक मे पांच गुणकारी अोपधियाँ-गिलोय, गोखरू, मुसली, गोरखमु डी पंचातप-सञ्ज्ञा पुं० [म० पञ्चातप ] चारो ओर आग जलाकर और शतावरी। ग्रीष्मऋतु मे बैठकर तप करना । पचाग्नि । पचामृत-वि० पाँच वस्तुप्रो के योग से निर्मित [को०] । पचातिग-वि० [म० पञ्चातिग ] मुक्त [को॰] । पंचाम्नाय-सशा पु० [ स० पञ्चाम्नाय ] तत्र मे वे पांच शास्त्र जो पचात्कोप-मशा पुं० [ म० पञ्चात्कोप ] कौटिल्य के अनुसार राजा शिव के पाँच मुखो से उत्पन्न माने जाते हैं [को०] । के विजय के लिये आगे बढ़ने पर राज्य मे विद्रोह फैलाना । पचान - पुं० [ स० पञ्चाम्र ] अश्वत्थ प्रादि पाँच घृक्ष (को०] । पचात्मक-वि० [सं० पञ्चात्मक] जिसमे पांच तत्व हो । पाँच तत्वों पंचाम्ल - सज्ञा पुं० [ स० पञ्चाम्ल ] वैद्यक मे ये पांच अम्ल या खट्टे से युक्त, जैसे शरीर [को० । पदार्थ -अम्लवेद, इमली, जंभीरी नीवू, कागदी नीबू और पंचात्मा-सशा भी [ म० पञ्चात्मन् ] पचप्राण । विजौरा । मतातर से-वेर, अनार, विषावलि, अम्लवेद पौर पचानन'-वि० [सं० पञ्चानन] जिसके पांच मुह हो । पचमुखी। बिजौरा नीबू । पचानन'-मशा पुं० १ शिव । २ सिंह । उ०-सबै सेन अवसान पचायत-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पञ्चायतन ] १ किसी विवाद, झगडे या मुक्कि लग्यो बर तामस । तब पचानन हक्कि धक्कि चहुमाना और किसी मामले पर विचार करने के लिये अधिकारियों या पामिस ।-पृ० रा०, १७।८। चुने लोगो का समाज । पचों की बैठक या समा। कमेटी। जैसे- (क) विरादरी की पंचायत । (ख) उन्होने अदालत विशेष-(१) सिंह को पचानन कहने का कारण लोग दो प्रकार मे न जाकर पचायत से निपटारा कराना ही ठीक समझा। से बतलाते हैं । कुछ लोग तो पांच शब्द का अर्थ विस्तृत करके पचानन का अर्थ 'चौडे मुहवाला' (पच विस्तृत श्रानन यस्य) क्रि० प्र०-बैठना ।—बैठाना ।-बटोरना । करते हैं । कुछ लोग चारों पजो को जोडकर पांच मुह २. बहुत से लोगो का एकत्र होकर किसी मामले या झगडे पर गिना देते हैं। विचार । पचो का वाद विवाद । (२) विषय और अध्ययन की दृष्टि से सर्वोच्चता एव गुरुत्व तथा क्रि० प्र०—करना ।—होना । श्रेष्ठता का बोध कराने के लिये इस शब्द का प्रयोग नाम यौ०-पंचायत घर वह स्थान जहाँ समाज के लोग पचो के आदि के साथ भी होता है । जैसे, न्यायपचानन, तर्कपचानने । साथ बैठकर किसी मामले के सबंध मे निर्णय करते हैं। ३ सगीत में स्वरसाधन की एक प्रणाली। श्रारोही-सा रे ग म ३ एक साथ बहुत से लोगो की वकवाद । प। रे ग म प ध । ग म प ध नि म प ध नि सा। अव- पचायतन-चा पु० [ स० पञ्चायतन ] [ जी० पचायतनी ] पाँच रोही-सा नि ध प म । नि ध प म ग । ध प म ग रे । प म देवताओ की प्रतिमा। वह स्थान जहाँ पचदेव की प्रतिमाएं ग रे सा । ४ ज्योतिष मे सिंह राशि (को०)। ५ वह रुद्राक्ष हो [को०] । जिसमें पांच रेखाएं हों (को०)। पचायती-वि० [हिं० पचायत ] १ पचायत का किया हुआ। पचायत का। २ पंचायत सवधी । ३ बहुत से लोगो का पचाननी-सज्ञा स्त्री॰ [म० पञ्चाननी] १ दुर्गा । २. सिंह की मादा। मिला जुला । साझे का। जिसपर किसी एक आदमी का शेरनी (को०)। अधिकार न हो। जो कई लोगो का हो। जैसे,पचायती पचानवे-व० [ म० पञ्चनवति, पा० पचनवइ ] नव्वे और पांच । अखाडा । ४ सव पचो का । सर्वसाधारण का । पांच कम सौ। यौः-पचायती राजजनता का राज्य । बहुत से लोगो का पचानवे-सज्ञा पु० नब्बे से पांच अधिक की सख्या या प्रक जो इस मिला जुला शासन । जनता। प्रकार लिखा जाता है-६५। पचारी-ज्ञा स्त्री० [सं० पञ्चारी] चौसर, शतरज प्रादि की पचाप्सर-मश पुं० [ मै० पञ्चाप्सरम् ] रामायण और पुराणो के विसात [को०। अनुसार दक्षिण मे पपा नामक तालाब जहाँ शातकरिण मुनि पचार्चि-पशा पु० [सं० पञ्चार्चिस् ] बुध ग्रह [को०] । तप करते थे। इनके तप से भय खाकर इद्र ने इनको तप पंचाल-पुज्ञा पुं॰ [ स० पञ्चाल ] १ एक देश का प्राचीन नाम जो
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