पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२८४

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पिकेटिग २६६३ पिचरको पिकेटिंग-नचा स्त्री० [अ०] किसी बात को रोकने के लिये पहरा २३ । (ख) पहिरै बसन विविध रंग भूषन, करन कनक देना । घरना । जैसे,-स्वयसेवक विदेशी वस्स की दूकानो के पिचकाई।-नद० ग्रं॰, पृ० ३८१ । सामने पिकेटिंग कर रहे थे, इससे कोई ग्राहक नही पाया। पिचकाना-क्रि० स० [हिं० पिचकना का प्रे०रूप ] फूले या पिक्क-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ बीस बरस की आयु का हाथी । २ उभरे हुए तल को भीतर की ओर दवाना । हाथी का बच्चा [को॰] । पिचकारी-संज्ञा स्त्री० [हिं० पिचकना ] एक प्रकार का नलदार पिक्खना-क्रि० स० [सं० प्रेक्षण, प्रा० पेक्खण, पिक्खण ] यत्र जिसका व्यवहार जल या किसी दूसरे तरल पदार्थ को दे० 'पेखना' । उ०-वोटा अनेक वरतू किते, पचसिखा (नल में) खीचकर जोर से किसी ओर फेंकने मे होता है । पिक्खिय प्रगट ।-ह. रासो, पृ० १० । विशेष-पिचकारी साधारणत वास, शीशे, लोहे, पीतल टीन पिक्चर-सज्ञा स्त्री॰ [प्र. ] १ चित्र । तस्वीर । सिनेमा। आदि पदार्थों की बनाई जाती है। इसमे एक ल वा खोखला पिगलना-क्रि०अ० [हिं॰] दे॰ 'पिघलना' । उ०-सुखवासीलाल नल होता है जिसमें एक ओर बहुत महीन छेद होता है और ( सरोजनी से ) जल्हदी अपने सफरदाइयो को बुला । दूसरी ओर का मुह खुला रहता है । इस नल मे एक डाट ( मन मे ) आखिरकार पिगले, कहिए अव इनकी वो तेजी लगा दी जाती है जिसके ऊपर उसे आगे पीछे हटाने या कहाँ है।-श्रीनिवास प्र०, पृ०५०। बढाने के लिये दस्ते समेत कोई छड लगी रहती है। जब पिचकारी का बारीक छेदवाला सिरा पानी अथवा किसी पिघरना-क्रि० अ० [हिं०] दे० 'पिघलना'। उ०—पिघरि चल्यो नवनीत मीत नवतीत सहस हिय ।-नद न०, ११ । दूसरे तरल पदार्थ में रखकर दस्ते की सहायता से भीतरवाली डाट को ऊपर की ओर खीचते हैं तब नीचे के बारीक छेद पिघलना-क्रि० स० [सं० प्र+गलन ] १. ताप के कारण किसी में से तरल पदार्थ उस नल मे भर जाता है और जब घन पदार्थ का द्रव रूप मे होना। गरमी से किसी चीज का से उस डाट को दवाते हैं तब नल मे भरा हुमा तरल ५६ गलकर पानी सा हो जाना। द्रवीभूत होना। जैसे, मोम जोर से निकलकर कुछ दूरी पर जा गिरता है। साधारण पिघलना, रांगा पिघलना, घी पिघलना। २ चित्त में दया इसका प्रयोग होलियों में रग अथवा महफिलो मे गु उत्पन्न होना। किसी की दशा पर करुणा उत्पन्न होना। जल आदि छोडने के लिये होता है परतु पाजकल मक पसीजना । जैसे,-महीनो तक प्रार्थना करने पर अब वे प्रादि धोने और आग बुझाने के लिये बडी बडी कुछ पिघले हैं। और जरूम आदि धोने के लिये छोटी पिचकारियो का , पिघलाना-क्रि० स० [हिं० पिघलना का प्रे०रूप]१ किसी उपयोग होने लगा है। इसके अतिरिक्त इघर एक ऐसी।च कहे पदार्थ को गरमी पहुंचाकर द्रव रूप में लाना । किसी कारी चली है जिसके आगे एक छेददार सूई लगी होती है चीज को गरमी पहुँचाकर पानी के रूप मे लाना । २. किसी इस पिचकारी की सूई को शरीर के किसी अंग मे जरास के मन मे दया उत्पन्न करना। दया करना। चुभाकर अनेक रोगो की भौपषो का रक्त या मासपेशी पिचंह-सज्ञा पुं॰ [सं० पिचएर ] १ उदर । पेट। २ जानवर का प्रवेश भी कराया जाता है। कोई मग [को०)। कि० प्र०-चलाना । - छोड़ना । - -देना। -मारना पिचंडक-वि० [सं० पिचण्ढक ] प्रौदरिक । पेटु [को॰] । - लगाना। पिचंडिक, पिचंडिल-वि० [सं० पिचण्डिक, पिचएिडल ] १ बडे मुहा०-पिचकारी छूटना या निकलना = किसी स्थान से -ि पेटवाला । तु दियल । २ मोटा । स्थूलकाय [को०] । तरल पदार्थ का बहुत वेग से बाहर निकलना । जैसे, सिर पिष-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [अनु॰] दे० 'पीक' । लहू की पिचकारी छूटना। पिचकारी छोड़ना = किसी पर पदार्थ को वेग से पिचकारी की भाँति बाहर निकालन पिचका-सज्ञा सी० [हिं०] दे॰ 'पिचकारी' । जैसे, पान खाकर पीक की पिचकारी छोडना । पिचकना-क्रि० प्र० [सं० पिच्च ( = दवना)] किसी फूले या पिचको-सञ्ज्ञा स्त्री [हिं० पिचक ] दे० 'पिचकारी'। उभरे हुए तल का दव जाना । जैसे, गाल पिचकना, गिरने के कारण लोटे का पिचकना । पिचपिच-सञ्ज्ञा पुं० [अनु॰] दे० 'चिपचिप' । पिचकवाना-क्रि० स० [हिं० पिचकना का प्रे० रूप] पिचकाने पिचपिचाना-क्रि० अ० [अनु॰] घाव या किसी और चीज में पिचपिचा-वि० [हिं०] दे० 'चिपचिपा' । का काम दूसरे से कराना। किसी दूसरे को पिचकाने में बराबर थोडा थोडा पदार्थ रसना। पानी निकलना। प्रवृत्त करना। पिचका-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पिचकना ] बडी पिचकारी । पिचपिचाट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पिचपिचाना ] गीले या आई का भाव । पिचपिचाने का भाव । पिचकार-सञ्ज्ञा पुं० दे० 'पिचुकिया। पिचरकी-मशा स्त्री० [हिं०] दे० 'पिचकारी'। उ पिचकाई-सञ्ज्ञा सी० [हिं०] दे॰ 'पिचकारी' । उ०-(क) सुमति पिचरकी अपने हाथ, हम भरिहैं तुमहिं त्रलोकन कचन की पिचकाइयाँ मारत हैं कि दुरि।-छीत०, पृ० -सुदर ग्रं०, भा०२, पृ०६०२। - रय