पिछला २६६६ पिटर पृ० ३३। समय । दिन अथवा रात का उत्तर काल । पिछली रात = पिछानि-सशा स्त्री० [हिं०] दे० 'पहचान' । उ०-जल तें निकासि रात्रि का उत्तर काल | रात में प्राधी रात के बाद का वहु भाँति गहि डारी तट 'लीजिये पिछानि' देखि सुधि वुधि समय । पिछले काटे = (१) परवर्ती काल में। (२) वर्तमान गई है।-भक्तमाल, पृ० ४८६ । के ठीक पहले के समय में। उ०-मगर, पिछले काटे वह पिछारी-सशा सी० [हिं०] वे० 'पिछाडी' । मानिक के घर बहुत कम पाने लगी।-शरावी, पृ. ३६ । पिछेलना-क्रि० स० [हिं० पीछे+ऐलना (हेलना)] १ पीछे ठेलना ४ बीता हुआ। गत। जो भूत काल का विषय हो गया हो । या करना । उ०-आता है जी में तात यही, पीछे पिछेल पुराना । गुजरा हुआ । जैसे,—पिछली बातो को भूल जाना व्यवधान मही। झट लो चरणो में प्राकर, सुख पाऊं अच्छा होगा। ५ सबसे निकटस्थ । भूत काल का। उस करस्पर्श पाकर । -साकेत, पृ० १८५। २ किसी कार्य में भूत काल का जो वर्तमान के ठीक पहले रहा हो । गत वातो आगे निकल जाना। पिछाड देना। में से अतिम या प्रत की भोर का । जैसे, पिछले साल आदि । पिछोंकड़ा-सचा पुं० [हिं० पीछे+ोकदा (प्रत्य॰)] मकान के पीछे मुहा०—पिछला दिन = वह दिन जो वर्तमान से एक दिन पहले का भाग। पिछवाहा । उ०-भीख जन उदास होकर मंदिर वीता हो। पिछली रात = कल की रात । अाज से एक दिन के पिछोकडे जाकर बैठ गया और वहां से भगवान् की पहले बीती हुई रात । गत रात्रि। पिछली बातों पर खाक स्तुति करता हुआ ध्यान करने लगा। -सुंदर० ग्र० (जी०), ढालना = गत काल की बातों को भुला देना । बीती वात को भा०१, पृ० ८५1 भुला देना। बीती बात को बिसार देना। उ०-लाहो पिछोरा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं०] [ सज्ञा स्त्री० पिछोरी ] दे० 'पिछोरा' । चलो, अब पिछली यातों पर खाक डालो।-सैर कु०, उ०- फूलन को मुकुट बन्यो, फूलन को पिछोरा तन सोहित अति प्यारो वर फूलन को सिंगार। नद० ग्र०, पृ० ३७६ । पिछला-मज्ञा पु० १ पिछले दिन पढ़ा हुआ पाठ । एक दिन पहले पिछौड़ा-वि० [हिं० पीछे + नौद (प्रत्य॰)] जिसने अपना मुंह पढ़ा हुआ पाठ। आमोस्ता। जैसे,-तुमको अपना पिछला पीछे कर लिया हो। किसी के मुंह की ओर जिसकी पीठ दुहराने में देर लगती है। पहती हो | किसी वस्तु को न देखता हुआ। क्रि० प्र०-दुहराना। पिछौड़ा-क्रि० वि० [हिं० पीछा+ौडा (प्रत्य॰)] पीछे की ओर । २ वह खाना जो रोजे के दिनों मे मुसलमान लोग कुछ रात पिछौँता-क्रि० वि० [हिं० पीछा+ौता (प्रत्य॰)] पीछे की भोर । रहते खाते हैं । सहरी। पिछौहा-वि० [हिं० पीछा + श्रोहा (प्रत्य॰)] १. पीछे का । पीछे पिछला-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [देश०] पछेली । हाथ में पीछे पहनने का एक की ओर का । २ पश्चिमीय । पश्चिम का। आभूपण उ०-केंगने पहुंची. मृदु पहुंचों पर, पिछला, मझुवा, पिछौँही।-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'पिछोरी' । अगला क्रमतर, चूड़ियाँ, फूल की मठिया वर । प्राप्या पिछौँ है -क्रि० वि० [हिं० पिछौंहा] पीछे की ओर । पीछे की ओर पृ०४०। से। उ०—कहै पदमाकर पिछौंहैं प्राय आदर से छलिया पिछवाई-सञ्ज्ञा सी० [हिं० पीछा ] पीछे की ओर लटकाने का छबीलो छैल वासर वितै बिते ।-पद्माकर (शब्द०)। परदा। पिछवाड़ा-पज्ञा पुं० [हिं० पीछा+वादा (प्रत्य॰)] [स्मी० पिछवाड़ी] पिछौरा-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पक्षपट ? प्रा० पच्छवद, पछेवदा ] १. मर- १ किसी मकान का पीछे का भाग। घर का पृष्ठ भाग । दाना दुपट्टा । पुरुषों की चादर । २ मोढने का मोटा कपडा । घर का वह भाग जो मुख्य द्वार के विरुद्ध दिशा में हो। २ पिछौरी-सचा सी० [हिं० पिछौरा ] १ स्त्रियों का वह वस्त्र जिसे घर के पीछे का स्थान या जमीन । क्सिी मकान के पृष्ठ भाग वे सबसे ऊपर प्रोढती हैं। स्त्रियों की चादर । उ०-झगा से मिली हुई जमीन । घर की पीठ की ओर का खाली स्थान । पगा अरु पाग पिछोरी ढाढिन को पहिरायो।—सूर (शब्द॰) पिछवारा-सशा ० [हिं०] दे० 'पिछवाडा' । २ ओढ़ने का वस्त्र। कोई कपडा जो ऊपर से हाल लिया पिछाडी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पीछवादी ] १ पिछला भाग । पीछे का हिस्सा । पृष्ठ भाग। २ पक्ति मे अंत का व्यक्ति । ३ वह पिछी-फिवि० [हिं०] दे० 'पीछे'। पीछे की ओर । उ०- रस्सी जिससे घोडे के पिछले पैर बांधते हैं। फौज पिछछी फिरी राज राजगरी।-पृ० रा०, २४।२१४ । क्रि० प्र०-लगाना। -बाँधना । पिटकाकी, पिटकोको-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पिटदाकी, पिटकोकी ] इद्रायन । इद्रवारुणी। पिछान-सश, स्त्री [हिं० पहचान] दे० 'पहचान' । उ०- पिटत-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पीटना+अंत (प्रत्य॰)] पीटने की क्रिया साहिब एक प्रगम्य ताकर करहु पिछान । -कबीर सा०, या भाव । मारपीट । मारकूट । पु०५६८। पिट-सज्ञा पु० [अ०] थिएटर मे गैलरी के पागे की सीटें या पिछानना-क्रि० सं० [हिं० पिछान] दे० 'पहचानना' । उ०- छला परोसिनि हाथ ते करि लियो पिछानि ।-विहारी आसन। (शब्द०)। पिट'-सज्ञा स्त्री॰ [अनु० ] विसी वस्तु के माधात से उत्पन्न ध्वनि। जाय।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२८७
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