पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२८८

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पिटर २०६७ पि पिट-सञ्ज्ञा पुं॰ [ म०] १ पिटक । पिटारा । स दूक । २ गृह । मूज प्रादि के नरम छिलको से बना हुआ एक प्रकार का बटा मकान । ३. छत । छाजन (को०] । सपुट या ढकनेदार पात्र । झापा । पिटक-सज्ञा पु० [सं०] १ पिटारा । २ फुडिया । फुसी । ३ विशेष-इसका घेरा गोल, तल बिलकुल चिपटा और ढकना थाभूपण जो इ द्रध्वजा मे लगाया जाता है। ४. धान्यकोष्ठ। ढालुवा गोल अथवा बीच में उठा हुअा होता है। पहले घान्यागार । कुसूल (को०)। ५. किसी प्रथ का एक भाग। पिटारे का व्यवहार बहुत था, पर तरह तरह के दृयों के ग्र थविभाग। खड । हिस्सा। जैसे, त्रिपिटक=तीन भागो प्रचार के कारण इसका व्यवहार घटता जाता है। बांस वाला (बौद्ध ) ग्रथ। प्रादि की अपेक्षा मज और वैत का पिटारा अधिक मजबूत पिटका-सशा स्त्री॰ [स०] १. पिटारी । २ फुसी । होता है। मजबूती के लिये अक्सर इसको चमड़े या मिमी मोटे कपडे से मढवा देते है। आजकल लोहे के पतले गोल पिटना-क्रि० प्र० [हिं० पीटना ] १ मार खाना 1 ठोका जाना तारो से भी पिटारे बनते हैं । आघात सहना। उ०-पाछे पर न कुसग के पदमाकर यहि २ बडा गुब्बारा। डोठ। पर धन खात कुपैट ज्यो पिटत विचारी पीठ।-- पद्माकर (शब्द॰) । २ पराजित होता । हार जाना । ३ पिटारी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पिटारा का सी० और अल्पा०] १ छोटा पिटारा। झापी। २ पान रखने का घरतन । वजना । प्राघात पाकर आवाज करना । जैसे, डोटी पिटना, पानदान। ताली पिटना आदि । पिटना -संज्ञा पुं० [हिं० पीटना ] वह प्रौजार जिससे किसी वस्तु मुहा०-पिटारी का खर्च = (१) वह धन जो स्थियो के पान के खर्च के लिये दिया जाय । पानदान का खर्च। (२) वह को विशेषत चूने आदि की बनी हुई छत को राज लोग पीटते हैं। पीटने का औजार । थापी । धन जो किसी स्त्री को व्यभिचार से प्राप्त हो। व्यभिचार की कमाई। पिटपिट-सज्ञा स्त्री॰ [ अनु० ] पिट पिट शब्द । किसी छोटी वस्तु के गिरने का या हलके आघात का शब्द । पिटिक्या-नशा ना. [ स० ] पिटारों का समूह [को०] । पिटपिटाना-क्रि० प्र० [अनु॰] असमर्थता आदि के कारण पिटौर-सज्ञा पुं० [हिं० /पीट + और (प्रत्य॰)] वह डडा या लाठी हाथ पैर पटकहर रह जाना । विवश होकर रह जाना। जिससे फसल की वालो प्रादि को पीटकर उसके दाने निकालते हैं। पिटना। पिटमान-सज्ञा पुं० [2 ] पाल । (लश०) । पिट्टक -सञ्ज्ञा पुं० [सं०] दाँत की मैल । पिटरिया-सशा सी० [हिं० पिटारा + ईया (प्रत्य०)] झापी । दे० 'पिटारी'। पिट्टन-सच्चा स्त्री० [हिं० पीटना ] रोने पीटने की क्रिया या भाव । पिटा-वि० [हि पीटना ] पीटकर बनाया हुमा । पिट्टस। क्रि० प्र०-पड़ना। पिटवाना-क्रि० स० [हिं० पीटना] १ किसी के पिटने या मारे जाने का कारण होना। अन्य के द्वारा किसी पर भाघात पिट्टस-पशा स्त्री० [हिं० पीटना+स (प्रत्य॰)] शोक या कराना । ठोकवाना । कुटवाना। मार खिलवाना। २ दुख से छाती पीटने की क्रिया । (सि.)। बजवाना । जैसे, डौंडी पिटवाना । ३ पीटने का काम मुहा०-पिस पढ़ना या मचना = शोक या दुख में छाती दूसरे से कराना। दूसरे को पीटने मे प्रवृत्त करना । पीटा जाना । रोना धोना होना । हाय हाय मचना । जैसे,- पिटस-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पिट्टस' । उ०-मेरे नरगिसी यह खबर सुनते ही यहां पिट्टस पड गई । आँखोंवाले वेटा दुल्हन लाश पर खडी है आखिरी दीदार पिट्ट-वि० [हिं० पिट्ट + ऊ (प्रत्य०) ] जो प्राय पीटा जाय । न र तो दो। इस फिकरे पर पिटस पड गई ।—फिसाना०, भा. खाने का अभ्यस्त । ३, पृ० ६१३॥ पिट्ठ-नशा ग्वी० [हिं० ] दे० 'पीठ' । उ०-तजे विन नायक पिटाई-मज्ञा स्त्री० [हिं० पीटना ] १ पीटने का काम या भाव । पिट्टि दिखाया।-ह. रातो, पृ० ८। जैसे, छत की पिटाई । २. प्राघात । प्रहार । मार । मारकूट । -सज्ञा स्त्री॰ [ हिं०] १० 'पीठी' ३ पीटने की मजदूरी। ४ मारने का पुरस्कार । ५ पिटवाने पिट्ठ-सज्ञा पुं० [हिं० पिट्ठ + ऊ (प्रत्य॰)] १ पीछे चलने की मजदूरी। वाला। पिछलगा। अनुयायी । २ सहायक । मददगार । पिटाक-मा पुं० [स०] पिटारा । सदूक । ववस [को०] । पृष्ठपोषक । हिमायती । ३ किसी खिलाडी का वह काल्प पिटापिट -सका सी० [हिं० पीटना ] मारपीट । मारकूट । पिसी साथी जिसकी वारी मे वह स्वय खेलता है। वस्तु को कुछ समय तक वरावर पीटना । जैसे,-वहाँ खूब विशेप-जब दोनो पक्षो के खिलाडियो को सख्या बगवर नह पिटापिट मची रही। होती तव न्यून सख्यक पक्ष के एक दो खिलाडी अपने आप पिटारा-सा पुं० [सं० पिटक ] [ पी० पिटारो] १ वॉस, वेत, साय एक एक पिठ्ठ. मान लेते हैं और अपनी बारी से ६-३५ पिट्ठ