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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२९०

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पिण्याक २६ पिण्याक-सचा पुं० [सं०] १ तिल या सरसो की खली । २ जी ने अपने पिताबर उढायो। -दो सौ वावन०, भा० २, हींग । ३ शिलाजीत । ४ शिलारस । सिह लक । ५ केशर । पृ०७८। पिवंबर-सञ्चा पुं० [ स० पीताम्बर ] दे० 'पीतावर' । उ०-(क) पिता-सचा पु० [सं० पितृ का कर्ता कारक ] जन्म देकर पालनपोपण करनेवाला । बाप । जनक । मोदि पितवर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि सग फिरौंगी। रसखान०, पृ० १३ । (ख) चोलिया पहिरि धनि चली है पर्या०–तात । जनक । प्रसविता । वप्ता। जनयिता । गुरु । गवना, सेत पितवर लागे हिंडोल ।-घरनी० श०, पृ०७० । जन्य । जनित । वीजी । पितपापड़ा-सञ्चा पुं० [सं० पीतपर्पट ] एक झाड या क्षुन जिसका पितामह-सञ्ज्ञा पुं० [०] [स्त्री० पितामही ] १. पिता का पिता। उपयोग औषध के रूप में होता है। दादा । २. भीष्म । ३. ब्रह्मा । ४ शिव । , एक ऋषि विशेष-इसे दवनपापडा भी कहते हैं। इसके दो भेद होते जिन्होने एक धर्मशास्त्र बनाया था। हैं-एक में लाल फूल लगते हैं, दूसरे मे नीले । लाल फूल पितिजिया-सज्ञा स्त्री॰ [ स० पुत्रजीवक ] इगुदी की तरह का एक वाला अधिक गुणदायक माना जाता है। वैद्यक मे इसको प्रकार का पेड । पितौजिया । जियापोता। शीतल, कडवा, मलरोधक, वात को कुपित करनेवाला, विशेष-इसके पत्ते और फल भी इगुदी के पत्तो और फलो हलका तथा भ्रम, मद, प्रमेह तृषा, पित्त, कफ, ज्वर, रक्त से मिलते जुलते होते हैं। इसके बीजो की रुद्राक्ष की तरह, विकार, अरुचि, दाह, ग्लानि पौर रक्तपित्त को नष्ट करने. माला बनती है। वैद्यक मे इसे शीतल, वीर्यवर्धक, कफ- वाला माना है। कारक, गर्भ और जीवदायक, नेत्रों को हितकारी, पित्त पर्या–पर्पट । वरतिक्त । पाशुपर्याय । कवचनामक । नियष्ठि । को शात करनेवाला तथा दाह और तृषा को हरनेवाला तिक्त । चरक । वरक । अरक । रेणु । तृष्णारि । शीत । कहा जाता है। शीतप्रिय। पांशु। कलपांग । वर्मकटक । कृष्णशाख । पितिया-सञ्ज्ञा पुं० [ स० पितृन्य ] [स्त्री० पितियानो ] चचा। प्रगध । सुतिक्त । रक्तपुष्पक। पिचारि। कटु पन्न । नक्र । चाचा । बाप का भाई। शीतवल्लभ । पितियानो-सच्चा सी० [हिं० पितिया+नी (प्रत्य॰)] चाचा की पितर-मचा पुं० [सं० पितृ, पितर ] मृत पूर्वपुरुष। मरे हुए पुरखे स्त्री। चची। चाची। जिनके नाम पर श्राद्ध या जलदान किया जाता है । विशेष- पितियाससुर-सज्ञा पु० [ हिं० पितिया+ससुर ] चचिया ससुर । दे० 'पितृ'-२ । उ०-देव पितर सब तुमहिं गोसाई। ससुर का भाई । स्त्री या पति का चाचा। राख पलक नयन की नाई। —मानस, २१५७ । पिवियासासु-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पितिया + सास ] चचिया सास पितरपखा-ज्ञा पुं० [स० पितृपक्ष ] दे० 'पितृपक्ष । ससुर के भाई की स्त्री । स्त्री या पति की चाची। पितरपच्छा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पितृपक्ष ] दे॰ 'पितृपक्ष' । उ० पितु-सञ्चा पुं० [ सं० पितृ ] दे० 'पिता' । पितरपच्छ के दिन आ गए थे।-नई०, पृ० १०२ । पितृ-सशा पु० [सं०] १ दे० 'पिता' । २ किसी व्यक्ति के मृ पिवरपति-ज्ञा पुं० [सं० पितृ + सं० पति] यमराज । बाप दादा परदादा आदि। ३. किसी व्यक्ति का ऐसा भू. पितराधा-सचा स्त्री॰ [हिं० पीतल + गध ] किसी खाद्य वस्तु के पूर्वपुरुष जिसका प्रेतत्व छूट चुका हो। स्वाद और गध में वह विकार जो पीतल के बरतन मे अधिक विशेष-प्रेत कर्म या प्रत्येष्टि कर्म सवधी पुस्तको मे म समय तक रखे रहने से उत्पन्न हो जाय । पीतल का कसाव । गया है कि मरण पौर शवदाह के अनतर मृत व्यक्ति र पितराई-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पीतल + पाई (प्रत्य॰)] पीतल का पातिवाहिक शरीर मिलता है । इसके उपरांत जब उस कसाव । पीतल का स्वाद । पितराईघ । जैसे,-दही में पुत्रादि उसके निमित्त दशगात्र का पिंडदान करते हैं . पितराई उतर आई है। दशपिंडो से क्रममा उसके शरीर के दश अग गठित होक पितराना-क्रि० प्र० [हिं० पीतर से नाम० ] पितराईध आना । उसको एक नया शरीर प्राप्त होता है। इस देह मे उस . पीतल का स्वाद पा जाना । कसाव पैदा होना। प्रेत सज्ञा होती है । षोडश श्राद्ध और सपिंडन के द्वर पितरिहा -वि० [हिं० पीतल + हा (प्रत्य॰)] पीतल का। क्रमश उसका यह शरीर भी छूट जाता है और वह । पीतल का बना हुआ। नया भोगदेह प्राप्त कर अपने बाप दादा और परदादा पा पिपरिहा-सहा पुं० [हिं० पीतल ] पीतल का घडा। के साथ पितृलोक का निवासी बनता है अथवा कर्मसस्कर पितल-सज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पीतल' । उ०-पारस परसि नुसार स्वर्ग नरक आदि मे सुखदु खादि भोगता है। पितल होय सोनू ।-नद० ग्र०, पृ० १४३ । अवस्था मे उसको पितृ कहते हैं। जबतक प्रेतभाव 4 पितलाना-क्रि०प० [हिं० पोतल से नाम० ] दे० 'पितराना । रहता है तब तक मृत व्यक्ति पितृ सज्ञा पाने का अधिकार नहीं होता। इसी से सपिंडीकरण के पहले जहाँ पितससुर-सज्ञा पुं० [हिं० पितिया ससुर ] दे० 'पितिया ससुर'। आवश्यकता पडती है प्रेत नाम से ही उसका सवोधन पितांबर-सद्या पुं० [हिं०] दे० 'पीतावर' । उ०—मोर श्री ठाकुर जाता है। पितरो अर्थात प्रेतत्व से छूटे हुए पूर्वजो की b