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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२९१

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चिता ३००० पितृदेवत' किये श्राड, तर्पण प्रादि करना पुत्रादि का कर्तव्य माना पितृगीता-पवा सी० [सं०] एक विशेष गीता जिममे पितरो का गया। 'या'। माहात्म्य दिया गया है । यह वाराह पुराण के प्रतर्गत है । TT SIT के देवता जो नव जीवो को प्रादिपूर्वज माने पित्गृह-वज्ञा पुं० [स०] १ वाप का घर। नैहर । पीहर । एहै। मायका । ( स्थियो के लिये ) । २. श्मशान । विशेष-मनुस्मृति में लिखा है कि ऋपियो से पितर, पितरो पितृग्रह-सश पुं० [ मं० ] सुश्रुत के अनुसार कार्तिकेय के उन मदरता पौर देवतापो से सपूर्ण स्थावर जगम जगत् की अनुचरों मे से एक जो कुछ रोगो के उत्पादक माने गए हैं । त्यत्ति हुई है। ब्रह्मा के पुप मनु हुए । मनु के मरीचि, पिघात-सञ्ज्ञा पु० [ न०] [वि० पितृघातन, पितृघाती, पितृघ्न ] अग्नि प्रारिपुत्रो को पुत्रपरपरा ही देवता, दानव, दैत्य, वाप को मार डालना । पिता की हत्या करना। माप आदि के मूल पुरुष या पितर हैं । विराट पुत्र नोपण साध्यगण के, प्रमिपुत्र वहिपद्गण दैत्य, दानव, पितृघातक-वि० [स० ] दे॰ 'पितृघाती' । चा, गर्व, मर्प, राक्षन, सुपर्ण, किन्नर और मनुष्यो के, पितृघाती-वि० [म० पितृघातिन] पिता का वध करनेवाला (को० । निपुत्र गोमपा ब्राह्मणो के, अगिग के पुत्र हविर्भुज पितृघ्न-वि० [सं०] पिता का वध करनेवाला । अमिगो के, पुनम्त्य के पुत्र प्राज्यपा वैश्यो के और वशिष्ठ- पितृचरण-सज्ञा पुं॰ [ स० पितृ + चरण ] पिता के चरण । पिता । पुत्र रालिन शूद्रो के पितर हैं। ये सब मुन्य पितर हैं। पिता के लिये आदरार्थक प्रयोग । र पुत्र पोनादि भी अपने अपने वर्गों के पितर हैं । द्विजो पितृतर्पण-सज्ञा पुं॰ [ नं०] १ पितरो के उद्देश्य से किया जाने- के लिये देवकार्य से पितृकार्य का अधिक महत्व है। पितरो वाला जलदान । विशेष-० 'तर्पण'। २ पितृतीर्थ । ३ के निमित्त जलदान मात्र करने से भी अक्षय मुख मिलता है तिल । ४ धाद्ध मे दी जानेवाली वस्तुएँ (को०)। (मनु० ३।१६४-२०३)। पितृवाण-। पुं० [स०] धर्मशास्त्रानुसार मनुष्य के तीन प्रणो पितृतिथि-राजा सी० [सं०] अमावास्या । मे में एक जिनको लेकर वह जन्म ग्रहण करता है। पुत्र विशेष-कहते हैं, पितरो को अमावास्या बहुत प्रिय है और उत्पन्न गरने से इस ऋण से मुक्ति होती है। श्राद्घ भादि कार्य इसी तिथि को करने चाहिए, और इसी लिये इसका नाम पितृतिथि है। पितृक -- [सं०] १ पितृसंवधी । पिता का। पैतृक । २ पितृदत्त । पिता का दिया हुआ। पितृतीर्थ-सज्ञा पुं० [ स०] १ गया। गया तीर्थ । २. मत्स्य- पुराण के अनुसार गया, वाराणसी, प्रयाग, विमलेश्वर आदि पिफर्म - सा पु० [१० पितृकर्मन् ] वह कर्म जो पितरो के उद्देश्य २२२ तीर्थ । ३ अंगूठे और तर्जनी के बीच का भाग जिसका ने पिया जाय । थाद्ध तर्पण प्रादि कर्म । उपयोग पितृकर्म मे दान किया हुया पिंड अथवा संकल्प का पितृपल्पसा पुं० [म.] थाद्धादि कर्म । जल छोडने में होता है। पितृकल्प'- पिता के समान । पितृतुल्य (को०] । पितृत्व-सज्ञा पु० [सं०] पिता या पितृ होने का भाव । पितृ या पितृफानन-मापुं० [२०] श्मशान । पिता होने की स्थिति। पितृकार्य-सा पु० [०] पितृकर्म । पितृदत्त-वि० [स०] पिता द्वारा प्रदत्त ( जैसे, पिता द्वारा स्त्री को पिगुल- 1 पुं० [सं०] वाप, दादा, परदादा या उनके भाई मिलनेवाली सपत्ति )। यधुमो मादि या फुल । वाप की अोर के सबधी। पिता के पितृदान, पितृदानक-सजा पुं० [सं०] पितरो के उद्देश्य से किया यमके लोग। जानेवाला दान । वह दान जो मृत पूर्वजो के उद्देश्य से पितृपुल्या-गो [म०] १ महाभारत में वर्णित एक स्थान । किया जाय। २ एक पवित्र नदी जो मलय पर्वत से निकली है (को॰) । पितृदाय--सजा पु० [ स०] पिता से प्राप्त धन या सपत्ति । वपीती। स्तृिछन्य-० [सं०] पितरम। पादादि । पितृदिन-सा पुं० [सं०] अमावस्या । पितृमिचा- [ #० ] पितृकर्म । बादादि कार्य । पितृदेव-समा पुं० [सं०] पितरो के अधिष्ठाता देवता। अग्नि- पितृगण-० [ मे० ] १ मनुपुत्र मरीचि आदि के पुत्र । प्वात्तादि पितर गण । दे० 'पितृ'-४ ॥ विमेष-दे० 'पितृ'-४। २ समग्न पूर्वपुरुष । पितर लोग । पितृदेवत'-वि० [सं०] पितृदेवता सवधी । पितरो की प्रसन्नता पिग- [म.] दुर्गा या एक नाम [को०)। के लिये दिया जानेवाला (यश मादि)। (यश का अनुष्ठान) पाया ---- १० [] पितगे द्वारा पठिन पुछ विशेष जो पितृदेवों की प्रसन्नता के लिये किया जाय । गया नया भिन्न भिन्न पुराणों के मन मे पे गायाएं पितृदेवत-वर पुं० मघा नक्षत्र |यो । पितृदेवत्य-वि० [ मं० ] 'पितृदेवत" । पितृमामी कि- [से. पितृगामिन् ] पिता से सबधित [को०)। पितृदेवत'-सद्या पुं० [सं०] १ मघा नक्षत्र । २ यम ।