पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२९७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रोग । पित्तेदार ३००६ पिनपिन पित्तेदार- [हि. पित्ता+फा० दार (प्रत्य॰)] क्रोधी। प्रावेश पिद्दा-सज्ञा पुं० [हिं० पिद्दी ] १. पिद्दी का पुल्लिग । विशेष दे० में धानेवाला। उ०-पित्त दार मनुष्य के लिये कोई जरा 'पिद्दी'। २ गुलेल की तात में वह निवाड आदि की गद्दी मी वान हो जाती वो उसको खुर्दबीन की भांत अपने मन जिसपर गोली को फेकने के समय रखते हैं। फटकना। ही मन में नोच मोचकर पहाड की बराबर बना लेता है। पिदो-सशा खी। हिं० पिहा या फुदकना फुदकी] १ बया की श्रीनिवाम ग्र०, पृ० ७८ । जाति की एक सुदर छोटी चिडिया। पित्तोक्लिष्ट-सरा पुं० [म०] घाख की पलको वा एक रोग जिसमें विशेष-यह वया से कुछ छोटी और कई रगो की होती है। पलको का दाह, क्लेद अत्यत पीडा होती है, अखेिं लाल और आवाज इसकी मीठी होती है । अपने चचल स्वभाव के देसने में असमर्थ हो जाती हैं। कारण यह एक स्थान पर क्षण भर भी स्थिर होकर नही पित्तोदर-सा पुं० [म.] पित्त के बिगडने से होनेवालाएक उदर बैठती, फुदकती रहती है । इसी से इसे 'फुदको' भी कहते हैं । २ बहुत ही तुच्छ और प्रगण्य जीव । विशेष-इसमे शरीर का वणं, नेत्र, नख और मल, मूत्र प्रादि पिद्धना-क्रि० स० [ गुज०, पिधेलु ] १ पिलाना। २. पीना । सब पीला हो जाता है, और शोप, तृषा, दाह और ज्वर का पान करना । उ०-अमृत्त देव पिद्धय । सुरा सुदैत सिद्धयं ।- प्ररोप होता है। पृ० रा०। पित्तोपहत-वि० [ मं० ] पित्त से पीडित (को० । पिधातव्य-वि० [स०] ढकने, बद करने वा मूदने योग्य [को०] । पित्तोल्वण सन्निपात-1 पु० [ ग० ] एक प्रकार का सन्नि पिधान-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ आच्छादन । भावरण । पर्दा । गिलाफ । पातिक ज्वर । पाशुकारी ज्वर । २ ढक्कन । ढकना। ३ तलवार का FIन । खड्गकोष । विशेप-इसका लक्षण है-अतिसार, भ्रम, मूर्छा, मुह में ४ आच्छादित करने की क्रिया (को०)। ५ किवाह । पकाव, देह मे लाल दानो का निकल आना और प्रत्यत उ०-सुख के निधान पाए हिए के पिधान लाए ठग के से दाह होना। लाडू खाए प्रेममधु छाके हैं-तुलसी (शब्द०)। पित्र-सज्ञा पुं० [ स० पितृ ] दे० 'पितृ' । उ०—सोनित कुड पिधानक-सज्ञा पु० [सं०] १ म्यान। कोष । २ अाच्छादन । भराय के पोपे अपने पित्र। तिनकै निरदय रूप में नाहिन ढक्कन (को०)। कोक चिय।-नद० ग्र०, पृ० १८१ । पिधानी-सच्चा त्री० [स०] ढकनेवाली वस्तु । ढक्कन [को०] । पित्र्य'-वि० [ म०] १ पितृ सबंधी। २ श्राद्ध करने योग्य । पिधायक-वि० [म.] ढकनेवाला । छिपानेवाला [को०] । जिसका श्राद्ध हो सके। पिघायो-वि० [स० पिधायिन् ] ढकनेवाला । छिपानेवाला [को०] । पित्र्य' या पुं०१ शहद । मधु । २ उरद । ३ वहा भाई। ४ पिन-सचा स्त्री० [सं० ] लोहे या पीतल प्रादि की बहुत छोटी पितृतीर्थ । ५ तर्जनी और अंगूठे का प्रतिम भाग । कील जिससे कागज इत्यादि नत्थी करते हैं। मालपीन । पित्र्या-नरा खी० [म०] १ मघा नक्षत्र । २ पूर्णिमा । ३ पिनक-सशा स्त्री॰ [हिं० ] ८० 'पीनक' । अमावस्या। पिनकना-क्रि० अ० [हिं० पिनक ] १ अफीम के नशे में सिर पित्सत-मरा पुं० [सं०] पक्षी [को०] । का मुका पडना। अफीमची का नशे की हालत में धागे की पित्सत-मरा पु० [सं०] मार्ग । पथ (फो०] । ओर झुकना या ऊँघना। पीनक लेना । २ नीद में आगे को पिथौरा-सा पुं० [सं० पृथ्वीराज ] भारत का प्रतिम हिंदू सम्राट झुकना । ऊँघना । जैसे,-शाम हुई और तुम लगे पिनकने पृथ्वीगज। ३ चिढना । खीझना। पिदडी-सगी [देश॰], 'पिद्दी' । पिनकी-सज्ञा पुं० [हिं० पीनक ] वह व्यक्ति जो अफीम के नशे में पीनक लिया फरे। पिनकनेवाला अफीमची। पिदर-नग पु० [फा०, तुल० स० पितर, भ० फादर ] पिता । पिनच-सचा मी० [स० प्रत्यञ्चा ] दे॰ 'पन'। उ०-पेली जनक (को०] । पार को पारधी, ताकी धुनही पिनच नही रे । ता वेली यो०-पिदरकुशी - पितृहननन । पिता की हत्या । को हूँ क्यो मृगली ता मग कैसी सनही रे। -कवीर पिदरीयत-17 पी० [फा० पिदर + ईयत (प्रत्य॰)] पितृत्व । प्र०, पृ० १६०। उ०-पाप लडकियो के एतवार से पिदरीयत के जिस दर्जे पिनद्ध-वि० [स०] १ बंधा हुआ। कसा हुँमा । २ धारण किया में हैं, लडयो के एतवार से उसी दर्जे में मैं हूँ।-प्रेम मौर हुप्रा । पहना हुआ। ३ माच्छादित । छिपा हुमा । प्रावृत । गोर्की, पृ० ३७। ४ विद्ध । बिधा हुना (को०] । पिदारा-सा ० [हिं० पिच ] पिद्दी पक्षी का नर । पिद्दा । पिनपिना-सचा सी० [अनु०] १ बच्चो का प्रानुनासिक और उ.-4-पाना और पिदारे । नवटा लेदी सोन मलारे।- अस्पष्ट स्वर में ठहर ठहरकर रोने का शब्द । नकियाकर जायसी (शब्द०)। धीमे धीमे और थोडा रुक रककर रोने की आवाज । २ रोगी