पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/२९८

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पिनपिनहीं ३००७ पिपास या दुर्बल वच्चे के रोने का शब्द । रोगी या दुर्वल बच्चे का पिनावना-क्रि० स० [स० पिञ्जन ] रुई धुनवाना। उ०- रोना। ३ पिनपिन करके रोना। चार वार घीमी और जोइ जोइ निकट पिनावन आवै, रुई सवनि की पीजै । पर- अनुनासिक आवाज में रोना। नकियाकर और ठहर ठहर मारथ कौं देह धरयो है, मसकति कळू न लोज ।-सु दर० कर रोना। ग्र०, भा०२, पृ० ८६६ । क्रि० प्र०—करना । —लगाना । पिन्नपिन्ना-सशा स्त्री० [अनुध्ध ] दे० 'पिनपिन' । उ०-एक पिनपिनहाँ-सा पु० [हिं० पिनपिन + हा (प्रत्य॰)] १ पिन नया तार पिन्न पिन्न करने लगा।-सन्यासी, पृ० २६५। पिन करनेवाला बच्चा । रोना लडका। वह बालक जो हर पिन्नसा-मज्ञा पु० [ स० पीनस ] दे० 'पीनस' । ममय रोया करे। २ रोगी या दुर्बल बालक । कमजोर या पिन्नस २-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० पीनस ] पालकी । डोली बीमार बच्चा। पिनपिनाना-क्रि० अ० [हिं० पिनपिन] १ पिनपिन शब्द करना। पिन्ना-वि० [हिं० पिनपिनाना] जो सदा रोता रहै। रोनेवाला । रोना। रोते समय नाक से स्वर निकालना। २ धीमे स्वर में और रुक रुककर रोना। ३ रोगी अथवा कमजोर बच्चे का पिन्नार-मचा पु० [ मं० पिञ्जन ] १ ० 'पीजन'। २ धुनकी । रोना। पिन्ना-सज्ञा पु० [ म०पीडन या देश० ] दे० 'पीना'२ | "पिना' । पिनपिनाइट-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पिनपिनाना] १ पिनपिन करके रोने पिन्निय-वि• [ स० पिनद्ध ] प्रावृत । प्राच्छादित । बंधा हुआ। का पान्द । २ पिनपिन करके रोने की क्रिया या भाव । युक्त । उ०-सुभ लच्छिन उत्तग अग अग गुन पिन्निय । ता पिनल कोड-सशा पु० [अ० पेनल कोड ] दडित या शासित करने समान छवि वाम पान करतार न किन्निय ।-० रा०, की सहिता। नियम वा कानून की सहिता। दहसहिता। १७८६ । उ०-समाजनीति के पिनल कोडो में लिखा है। -शराबी, पिन्नी--सज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की मिठाई, जो आटे या पृ०१६ | पन्नचूर्ण मे चीनी या गुड मिलाकर बनाई जाती है। पिनसना-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ० पेन्शन ] दे० 'पेंशन' । पिन्यास-सञ्चा पुं० [म०] हीग । पिनसिन-सज्ञा स्त्री० [अ० पेन्शन ] दे० 'पेंशन' । पिन्हाना-क्रि० स० [हिं० पहिनना या स० पिनद्धन] दे० 'पहनाना'। पिनहाँ-वि० [फा० ] छिपा हुआ । गुप्त । उ०-बोले अलख अल्ला पिपतिषत् , पिपतिपु-शा पु० [ न० ] विहग । पक्षी [को०] । तु है, पिनहाँ तेरा इसरार है। -कबीर म०, पृ० ३६० । पिपरमिंट-सचा पुं० [अ.] पुदीने की जाति का पर रूप में उससे पिनाक-सज्ञा पुं० [म०] १ शिव का घनुप जिसे श्रीरामचद्र जी ने भिन्न एक पौधा। जनकपुर में तोडा था। प्रजगव । विशेष - यह पौधा यूरोप और अमेरिका में होता है । इसकी यौ०-पिनाकगोप्ता। पिनाकधूक, पिनाकधृत, पिनाकहस्त = पत्तियो में एक विशेष प्रकार की गध और ठढक होती है २० पिनाकपाणि'। जिसका अनुभव त्वचा और जीभ पर बडा तीव्र होता है। मुहा०—पिनाक होना = ( किसी काम का ) अत्यत कठिन इसका व्यवहार औषध में होता है। पेट के दर्द में यह होना । (किसी काम का ) दुष्कर या असाध्य होना ।- विशेषत दिया जाता है। इसका पौधा देखने में भांग के पी' जैसे,—तुम्हारे लिये यह जरा सा काम भी पिताक हो से मिलता जुलता होता है । टहनियां दूर तक सीधी जाती रहा है। है जिनमें थोडे थोडे अतर पर दो दो पत्तियां और फूलों के २ कोई धनुष । ३ त्रिशूल । ४. एक प्रकार का अभ्रक । नीला गुच्छे होते हैं । पचियां भांग की पत्तियों की सी होती है। अभ्रक । नीलाभ्र । १५ एक प्रकार का वाद्य । दे० २ उक्त पौधे से बना हुआ सफेद रंग का पदार्थ । 'पिनाकी'-२ । उ०—किन्नर तमूर वाजे कानूड की तरगी। पिपरामल-मज्ञा पुं० [ स० पिप्पलीमूल ] पिप्पलीमूल | FM ढोलक पिनाक खेजरि तबले वजे उमगी। - ज० ग्र०, की जड़। पृ०६०। ६ पाणुवर्षा । पूलिवर्षण (को०)। ७ बेंत या पिपराही-सशा पुं० [हिं० पीपर + थाही (प्रत्य॰)] पीपल क लाठी (को०)। वन । पीपल का जगल । पिनाकी'--सञ्ज्ञा पुं० [ स० पिनाकिन् ] महादेव । शिव । पिपली-मशा स्त्री॰ [ देश० नेपाली ] एक पेड़ जो नैपाल, दाजि पिनाकी-सज्ञा स्त्री० एक प्रकार का प्राचीन वाजा जिसमें तार लगा लिंग प्रादि मे होता है। इसकी लक्डी बहुत मजबूत होती रहता था और जो उसी तार को छेडने से बजता था। है और किवाड, चौकठे, चौकियां, आदि बनाने के काम . पिनालटी-सज्ञा स्त्री॰ [अ० पेनाल्टी ] हर्जाना। वह सजा जो रुपए माती है। पैसे के रूप में दी जाती है। अर्थदह । उ०—आपको पिना पिपास-सझा स्त्री० [म० पिपासा ] दे॰ 'पिपासा' । उ०-यूट सटी देनी पड़ेगी।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १४७ ] सवनि के सुख क्षुत्पिपास |--केशव (शब्द॰) ।