पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३०४

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पिष्टपूर योनि । भूत । पिशाच पिशाच-सज्ञा पुं० [स०] [ स्त्री० पिशाची ] १ एक हीन देव यौ०-पिशिताश, पिशिताशी, पिशितभुक् = दे० 'पिशिताशन' । पिशितपिंड = मासखट । मास का टुकड़ा । विशेष-यक्षो और राक्षसो से पिशाच हीन कोटि के कहे गए हैं पिशिताशन-सञ्ज्ञा पु० [सं०] १ राक्षस । प्रत । २. नरभक्षी । ३. और इनका स्थान मरुस्थल बताया गया है। ये बहुत अशुचि भेडिया (को०)। और गदे कहे गए हैं। युद्धक्षेत्रो आदि मे इनके वीभत्स पिशी-सशा स्त्री० [स०] जटामासी । काडो का वर्णन कवि लोगो ने किया है, जैसे खोपडी में रक्त पिशोल, पिशीलक-सशा पुं० [सं०] मिट्टी का प्याला या कटोरा। पीना आदि। (शतपथ ब्राह्मण)। २. प्रत (को०) । ३ अत्यत क्रूर और दुष्ट व्यक्ति (को॰) । पिशुन'-पचा पुं० [मं०] १ एक की बुराई दूसरे से करके भेद हालने- पिशाचक-ज्ञा पुं० [सं०] भूत । पिशाच । वाला । 'चुगलखोर । इघर की उधर लगानेवाला । दुर्जन । पिशाचको-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पिशाचकिन् ] कुरेर । खल । उ०-इसे पिशुन जान तू, सुन सुभाषिणी है बनी। पिशाचक्र-सज्ञा पुं० [सं०] सिहोर का पेह । शाखोट वृक्ष । 'घरो' खगि, किसे धरूं? घृति लिए गए हैं धनी।-साकेत, पिशाचगृहोतक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पिशाच से पीडित । प्रेतबाधा से पृ० २५६ । २ कुकुम । केसर । ३ कपिवक्त्र । नारद । प्रामात (को॰] । ४ काक। कौमा। ५ तगर । ६ कपास । ७. एक प्रेत पिशाचघ्न'-वि० [सं०] पिशाचो को नष्ट या दूर करनेवाला। जो गर्भवती स्त्रियो को कष्ट पहुंचाता है (को०)। ८ प्रवचित करना। धोखा देना। पिशाचघ्न-सज्ञा पुं० पीली सरसो। विशेष-प्रेत उतारनेवाले प्रोमा प्राय पीली सरसो फेकते हैं। पिशुन-वि०१ परस्पर भेद डालनेवाला । सूचक । २ चुगली और उसी से काम लेते हैं। करनेवाला । प्रवचक । धोखेबाज । ३ क्रूर । निर्भय । निर्दय । पिशाचचर्या-नज्ञा स्त्री० [सं०] श्मशान सेवन । जैसे शिव जी करते हैं। नीच । निम्न । ४ मूर्ख [को०] । पिशाचता-सशा स्त्री॰ [ सं० ] दे० 'पिशाचत्व' [को०] । यौ०-पिशुनवचन, पिशुनवाक्य = 'चुगली। पिशाचत्व-ज्ञा पुं० [स०] १ पिशाच होने का भाव । २. पिशुनता-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] चुगलखोरी। क्रूरता [को०) । पिशुना-सहा स्त्री॰ [सं०] प्रसवर्ग । पृक्का । पिशाचदीपिका-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] पिशाचो का दीया। एक मिथ्या पिशोन्माद-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] एक प्रकार का उन्माद या पागलपन । ज्योति । लुकारी। लुक जो रात को घने अधकार में दिखाई विशेष-इसमें रोगी प्राय ऊपर को हाथ उठाए रहता है, अधिक देती है [को॰] । वकता और भोजन करता है, रोता तथा गदा रहता है । पिशाचद्र -सज्ञा पुं॰ [सं०] शाखोट वृक्ष । पिशाच वृक्ष [को॰] । पिशोर-सज्ञा पुं॰ [ देश० ] हिमालय की एक झाड़ी जिसकी टहनियों पिशाचपति-सञ्ज्ञा पुं० [स०] पिशाचो के स्वामी शिव (को०] । से वोझ बांधते हैं और टोकरे प्रादि बनाते हैं । १२ पेशावर । पिशाचबाधा-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] पिशाच द्वारा जन्य या प्राप्त पीड़ा। पिश्वाज-सज्ञा पुं० [फा० पिश्वाज ] नृत्य के समय पहना जानेवाला प्रेतबाधा [को०] । लहँगा । पेशवाज (को॰] । पिशाचभाषा-सज्ञा स्त्री० [सं०] दे० 'पैशाची' (को०) । पिष्ट'-वि० [सं०] १ पिसा हुमा । चूर्ण किया हुमा । २ निचोडा पिशाचमोचन-ज्ञा पुं॰ [सं०] १ प्रेतबाधा से मुक्ति । पिशाचो से हुमा (को०] | ३ गूघा हुआ आटा प्रादि (को०)। मुक्ति । २ एक तीर्थ । ३ काशी का एक प्रसिद्ध तीर्थ । पिष्ट-सच्चा पुं०१ पानी के साथ पीसा हुआ अन्न, विशेषत दाल । पिशाचवदन-वि० [स० ] राक्षस की तरह मुहवाला [को०] । पीठी। पिट्ठो। २ कचौरी या पूमा । रोट । ३ सीसी पिशाचवृक्ष-सहा पुं० [सं०] शाखोट वृक्ष । सिहोर का पेड । धातु (फो०)। पिशाचसचार-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पिशाचसञ्चार ] प्रेतबाधा (को०)। पिष्टक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ पिष्ट । पीठी । पिट्ठी । २ कचौरी या पिशाचागना-सशा सी० [स० पिशाचाहना ] पिशाची [को०] । पूा। रोट । ३ एक नेत्ररोग । फूला । फूली। ४ विशेष पिशाचालय-सज्ञा पुं॰ [सं०] अधकारयुक्त वह स्थान जहाँ बिना प्रकार का अस्थिभग (सुधृत) । ५ सीसा धातु | आग जले प्रकाश की लुक दिखाई पडे (को०)। पिष्टपचन-सचा पुं० [सं० ] कडाही या तावा [को०] । पिशाचिका-सञ्चा खी० [स०] १ छोटी जटामासी। २ पिशाची। पिष्टप-सज्ञा पुं० [सं०] लोक । भुवन । पिशाचो-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १. पिशाच स्त्री । २ जटामासी । पिष्टपशु-सञ्ज्ञा पुं० [०] पिसे हुए माटे का बना पुतला (को०] । पिशिक-सा पुं० [सं०] वृहत्सहिता में वर्णित एक देश का नाम । पिष्टयाचक-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] कहाही। पिशित-तशा पुं० [ स०] १. मास । गोश्त । २ छोटा टुकडा या पिष्टपिंड-समा पुं० [स० पिप्टपिण्ड] रोटी। पगाकरी। बाटो [को०] । हिस्सा (को॰) । पिष्टपूर-सञ्चा पु० [सं०] एक मिठाई । घृतपूर (को॰) । .