पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३०५

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पिष्टपेष २०१४' पिसाना 'न्याय'। पिष्ट पेप-सज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'पिष्टपेषण' । २ पिसकर तैयार होनेवाली वस्तु का तैयार होना । जैसे, पिष्टपेषण-सज्ञा पुं० [सं०] १ पिसे हुए को पीसना । २ कही वात पाटा पिसना, पिट्ठी पिसना । को फिर फिर कहना। संयोकि०-जाना। पिष्टपेषणन्याय-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रकार का न्याय । विशेष-दे० ३ दब जाना । कुचल जाना । जैसे,—पहिए के नीचे पैर पड़ेगा तो पिस जायगा। पिष्टप्रमेह-सञ्चा पु० [ मं० ] एक प्रकार का प्रमेह जिसमे चायन सयोकि०-उठना 1-जाना। के पानी के समान पदार्थ मूत्र के साथ गिरता है। ४ घोर ाष्ट, दुरप या हानि उठाना । पीडित होना। जैसे,- पिष्टमेह-सचा पु० [सं०] दे० 'पिष्टप्रमेह' । (1) एक दुट के माय न जाने कितने निरपराध पिस गए। पिष्टवर्ति-सज्ञा स्त्री० [म०] पीठी। मूग, मसूर, चावल आदि यो (स) महाजन के दिवाने मे न जाने रितने गोव पिस गए । पीसकर बनाई हुई पीठी या लोई [फो०] । सयोनि-जाना। पिष्टसौरभ-सज्ञा पुं० [सं०] चदन जिसे पीसने से सुगध ५ पश्रिम से प्रत्यत पत्रात होना । प्रत्यत श्रात एयपाति निकलती है। होता । था-वेदमरोगा। पिप्टात-सज्ञा पु० [ म०] वस्मादि को संगधित करने का पूर्ण । पिसना -० [हि पीनना ] पीनना । पीमी जानेवाली गुलाल । अवीर । बुक्का । चीज गेहें प्रादि । उ०-पिमना पीत डरी पिच पिउ पिष्टातक-सज्ञा पु० [सं०] द. पिष्टात । वरे पुगार |-पन भा० १, १० १७ । पिष्टाद- वि० [सं०] पीठी या प्राटा खानेवाला [को०।। पिसमान-वि० [मा पश्यमान] दिग्याई पडता हुमा। दृश्यमान । पिष्टान्न-सझा पुं० [म०] पिसे हुए अन्नपूर्ण से निर्मित वस्तु । पग्गोचर । उ०-उग यह मृष्टि वान्ह पिसमाना ।-वबीर पिष्टालिका-सशा स्त्री० [सं०] चदन । सा०, पृ०५६९। पिष्टि-सज्ञा स्त्री॰ [म०] चूर्ण । पाटा (को०] । पिसर-शा पु० [फा० ] पुत्र । प्रात्मज । वेटा । लगा। उ०- पिष्टिक-सम्रा पु० [ स०] १ घावलों से बनाई हुई तवासीर या दिया था सुदा उसको सब कुछ मगर । वले सस्त मुहताज था वसलोचन । २ पिसे हुए चावल फा जल [को०] । विन पिसर । दविखनी०, पृ०.१३६ । पिष्टोडी-सच्चा स्त्री० [सं०] श्वेताम्ली का पौधा । यौ०-पिसरजाया = पौत्र । पुत्र का पुत्र । पिसरख्वादा, पिसर पिष्टोदय-सशा पुं० [सं०] पीसे हुए चावल का घोल या पानी को०] । ए मुतवन्ना = दत्तक पुत्र | गोद लिया बेटा। पिष्पना-क्रि० स० [स० प्रेक्षण, प्रा० पिप्पन ] दे० 'पेखना' । पिसवाज-सशा सी० [फा० पिश्वाज ] दे० 'पेशवाज'। उ.-स्याम रग पिप्पहि न घटा घनघोर गरज्जत ।-पृ० पिसवाना-क्रि० स० [हिं० पीसना का प्रे०रूप ] पीसने का रा०,२। ३४६। काम कराना। पिसंग-वि०, सक्षा पुं० [सं०] दे० 'पिशग',। पिसाई-सज्ञा ग्री० [हिं० पीसना] १ पीसने की क्रिया या भाव । पिसदर-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा०] मौतेला पुत्र को०] । २ पीसने का वाम या व्यवसाय । ३ चक्की पीसने का काम । पिसण-सज्ञा पु० [सं० पिशुन ] शत्रु । दुश्मन । उ०-पिसण घाटा पीसने का पधा। जैसे,—वह पिसाई करके अपना मार मुत पिसरण रौ, असमझ लियो उवार ।-वाँकी० ग्र०, पेट पालती है। ४ पीमने की मजदूरी। ५ भत्यत अधिक पृ०६०। श्रम । वही कडी मिहनत । जैसे,-वहाँ नौकरी करना वढी पिसतापा-सञ्चा पु० [म० पश्चात्ताप ] पश्चात्ताप । पछतावा। उ०-जद करसी पिसतावो जमरा, पूत फिरेला दोला।- पिसाच-सज्ञा पुं० [० पिशाच ] दे॰ 'पिशाच' • उ०-भरे रघु० रू०, पृ० २७॥ कुडनि रुधिर रन रुडनि की रासि भपं मास खग जवुक पिसनहरिया, पिसनहरी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पीसना ] १ दे० पिसाच समुदाई।-हम्मीर० पृ० ५७ । 'पिसनहारी' । २ प्राटा मादि पीसने का स्थान । पिसाचरी-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पिशाचर + हिं० (प्रत्य॰)] पिशाच । पिसनहारी-सशा स्त्री॰ [हिं० पीसना + हारी (प्रत्य॰)] पाटा निशाचर । उ०-ये सब मृत्यु प्रकाल दिखाई । मुए सु योनि पीमनेवाली। वह स्त्री जिसकी जीविका घाटा पीसने से पिशाचर पाई।- सहजो० पृ० ३४ । चलती हो। पिसाना-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पिष्टान्न, या हिं० पिसना, पिसा+अन्न ] पिसना'-क्रि० प्र० [हिं० पीसना] १ रगड या दवाव से अन्न का बारीक पिसा हुआ चूर्ण । धूल की त ह पिसी हुई ट्टकर महीन टुकडो में होना । दाब या रगह खाकर सूक्ष्म अनाज की बुकनी । पाटा। खडो मे विभक्त होना । पूर्ण होना। चूर होकर धूल सा हो मुहा०-पिसान होना = दबकर चूर होना । जाना । जैसे, गेहूँ पिसना, मसाला पिसना । पिसाना'-क्रि० स० [हिं० पीसना का प्रे०रूप ] दे० 'पिसवाना' । सयो० क्रि०-जाना। पिसानारे-क्रि० प्र० [हिं० ] दे॰ 'पिसना'। 1 पिसाई है। -