पीठ ३०२० पीठगर्भ 11 प्रादि तत्रग्रंथों और देवीभागवत, कालिकापुराण प्रादि पुराणो क्या तुम्हारे कोई संतान नहीं हुई। पीठ पर का, पीठ पर मे दिए गए हैं। काशी में कान के फुहल का गिरना कहा को = (१) जन्मक्रम में अपने सहोदर ( भाई या वहिन) गया है । यहाँ की शक्ति का नाम मणिकर्णी, अन्नपूर्णा या के अनतर का। (२) जोड़ का। वरावरी का। उ०- विशालाक्षी और भैरव का कालभैरव है। दूसरा कौन पीठ पर का है।-चोखे०, पृ० १४ | पीठ पर ८ प्रदेश । प्रात। ६ बैठने का एक विशेष ढग । एक प्रासन । खाना = भागते हुए मार खाना । भागने की दशा मे पिटना । १० कस के एक मत्री का नाम । ११ एक विशेष असुर । कायरता प्रकट करते हुए घायल होना। पीठ मीजना = दे० १२ वृत्त के किसी प्रश का पूरक । 'पीठ पर हाथ फेरना' । पीठ पर हाथ फेरना = दे० 'पीठ पोठ-सक्षा पी० [सं० पृष्ठ ] १ प्राणियो के शरीर मे पेट की ठोकना'। पीठ पर होना = (१) सहायक होना। सहायता दूमरी भोर का भाग जो मनुष्य पीछे की ओर और तिर्यक के लिये तैयार होना । मदद पर होना । हिमायत पर होना। पशुओं, पक्षियों, कीडे मकोड़े आदि के शरीर मे ऊपर को जैसे, -प्राज मेरी पीठ पर कोई होता तो मैं इस प्रकार दीन ओर पडता है। पृष्ठ । पुश्त । हीन बनकर क्यों भटकता फिरता? (२) जन्मक्रम में मुहा०-पीठ का= दे० 'पीठ पर का'। पीठ का कच्चा = अपने किसी भाई या बहिन के पीछे होना। अपने सहोदरी में ( घोहा ) जो देखने मे हृष्ट पुष्ट और सजीला हो पर सवारी से किसी के पीछे जन्म ग्रहण करना । पीठ पीछे = किसी के मे ठीक न हो । (ऐसा घोडा) जिसकी चाल से सवार प्रसन्न पीछे । अनुपस्थिति में। परोक्ष मे । जैसे,—पीठ पीछे विसी न हो । चाल न जाननेवाला (घोडा)। पीठ का सच्चा = की निंदा नही करना चाहिए। पीठ फेरना = (१) बिदा (घोडा) जिसमें अच्छी चाल हो। चालदार (घोडा)। ऐसा होना । चला जाना । रुग्दसत होना । (२) भाग जाना । घोडा जो सवारी के समय सुख दे । पीठ की = दे० 'पीठ पर पीठ दिखाना । (३) किसी की ओर पीठ कर देना । मुंह की। पीठ चारपाई से लग जाना = बीमारी के कारण प्रत्यत फेर लेना । (४) अरुचि वा अनिच्छा प्रकट करना । उपक्षा दुबला और कमजोर हो जाना। उठने वैठने में असमर्थ हो सूचित करना (किसी की) पीठ लगना = चित होना । कुश्ती जाना। पीठ खाली होना = सहायकहीन होना। कोई सहारा मे हार खाना । पटका जाना | पछाडा जाना । (घोदे चल देनेवाला या हिमायती न होना। पीठ पर किसी का न श्रादि की ) पोठ लगना = पीठ पर घाव हो जाना । पीठ होना। पीठ ठोंकना = (१) कोई उत्तम कार्य करने के पक जाना । (चारपाई यादि से) पीठ लगना = लेटना । लिये अभिनदन करना। किसी के कार्य से प्रसन्नता प्रकट सोना । पहना । कल लेना। आराम करना । (किसी की ) करना । किसी के कार्य की प्रशसा करना। पावासी देना । पीठ लगाना= चित कर देना। कुश्ती में हरा देना । पछाड जैसे,—तुम्हारे पीठ ठोकने से ही वे प्राज मुझमे लड गए । देना । पटकना (घोड़े पैल आदि की ) पीठ लगाना= (२) किसी कार्य में अग्रसर होने के लिये साहस देना। घोहे या बैल को इस प्रकार कसना या लादना कि उसकी हिम्मत बढ़ाना । प्रोत्साहित करना। पीठ पर हाथ फेरना। पीठ पर घाव हो जाय । सवारी या पीठ पर घाव कर देना । पीठ तोड़ना = कमर तोडना । हताश कर देना। पीठ २ किसी वस्तु की बनावट का ऊपरी भाग । किसी वस्तु की दिखाना = युद्ध या मुकाबिले से भाग जाना। मैदान छोड वाहरी वनावट । पृष्ठ भाग। भीतरी भाग या पेट का उलटा। देना । पीछा दिखाना। जैसे,—कुल एक ही घटे लोहा वजने ३. रोटी के ऊपर का भाग । ४ जहाज का फर्श (लश०) । के बाद शत्रु ने पीठ दिखाई। पीठ दिखाकर जाना = स्नेह पीठक-शा पुं० [सं०] पीढ़ा। तोडकर या ममता छोडकर जाना। घरवालों या प्रिय वर्ग पीठ का मोजा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० पीठ+फा० मोजह ] कुश्ती का से विदा होना । परदेश के लिये प्रस्थान करना । पीठ देना = एक पेंच । इसमें जव जोड कधे पर बायां हाथ रखने आता है (१) यात्रार्थ किसी या कहीं से विदा होना । रुखसत होना। तव दाहिने हाथ से उसको उडाकर उलटा कर देते हैं और (२) विमुख होना। मुंह मोडना । (३) माग जाना । पीठ कलाई के ऊपर के भाग को इस प्रकार पकहते हैं कि अपनी दिखाना । (४) किनारा खीचना । साथ न देना । पीछा देना । कोहनी उसके कधे के पास जा पहुंचती है, फिर झट पैतरा (५) चारपाई पर पीठ रखना । सोना । लेटना । भाराम । बदलकर जोर की पीठ पर जाने के इरादे से बढ़ते हुए करना नैसे,-(क) माज तीन दिन से दो मिनट के लिये भी बाएँ हाथ से बाएँ र्णव का मोजा उठाकर गिरा देते हैं। मैं पीठ न दे सका । (ख) काम के मारे माजकल मुझे पीठ पीठ के डडे-सज्ञा पुं० [हिं० पोठ+ हिं० हुडा ] कुश्ती का एक देना हराम हो रहा है । (यह मुहावरा निषेधार्थ या निपेषा- पेंच । इसमें जब खिलाडी जोड की पीठ पर होता है तब र्थक वाक्य मे ही प्रयुक्त होता है जैसा उदाहरणो से प्रकट शत्रु की बगल से ले जाकर दोनो हाथ गर्दन पर चढ़ाने होता है । ) किसी की ओर पीठ देना = (१) किसी की ओर चाहिए और गर्दन को दबाते हुए भीतरी अडानी टांग पीठ करके बैठना। मुह फेर लेना । (२) अरुचिपूर्वक मारकर गिराना चाहिए। उपेक्षा प्रकट करना। किसी की पोर ध्यान देने या उसकी पीठ केनि-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पीठमदं । नायक । बात सुनने से अनिच्छा दिखाना। पीठ पर = एक ही माता पीठग-वि० [सं०] पगु । लंगडा [को०] । द्वारा जन्मक्रम मे पीछे । एक ही माता की सतानो में से किसी पीठगर्भ-सज्ञा पुं० [स०] वह गड्ढा जो मूर्ति को जमाने के लिये विशेष के जन्म के मनतर । जैसे,—इस लड़के के पीठ पर पीठ (मासन) पर खोदकर बनाया जाता है ।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३११
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