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पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३१७

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पीताम्लान २०१६ पीना पीताम्लान-सशा पु० [स०] पीनी कटसरेया। पीतारुण'-मश पुं० [स०] पीलापन लिए हुए लाल रग। पीतारुण-वि० पीलापन लिए हुए लाल रंग फा। पीतारण वयुक्त । पीतरक्त वर्ण विशिष्ट । पीताशेप-१०, सरा पुं० [4० पीत+अवशेष ] .. 'पीतशेप'। पीताश्म-पग पुं० [110 पोतारमन् ] पुग्पराज । पुष्पराग मरिण । पोताह-संज्ञा पुं० [मं०] राल । पोति-सहा मी[सं०] १ पीना। पान (वैदिक)। २ गुप्ति । रक्षण । रक्षा । ३, गति । ४ सु। ५. गजा। मदिरागृह । (को०)। ६ पाथागार । पायशाला (को०)। पीति-सज्ञा पुं० घोडा । अश्व । पीतिमा-सरा पुं० [ म० पितृव्य ] पाप का भाई । चाचा। उ०- पाए नगर पागरे मोहिं । गु दरदास पोनिमा पाहि ।-प्रपं०, पृ०७। पीविका-सशा सी० [१०] १ हलदी । २. दार हलदी। सोनही । स्वर्णयूयो । ३. केमर (को॰) । पीतिनो-पञ्चा पी० [म०] शालपर्णी । पोतिमा-सञ्चा नी [सं० पोतिमम् ] पीला रंग (फो०) । पीती'-सा पुं० [सं० पोतिन् ] घोस । पीवी-सजा पी० [मे० प्रोति ] दे० 'प्रीति' । पीतु-तया पुं० [स०] १. सूर्य । २ मग्नि । ३ यूपपति । हापियो के समूह का नायक । पीतुदारु-समा पुं० [ 10 ] १ गूलर । २ देवदार । पीतोदक'- पुं० [40] नारियल (जिसो भीतर जल या रस रहता है)। पीतोदक-वि०१ जिम का पानी पिया गया हो। २ जो पानो पिए हुए हो [को०] | जो गाय जितना जल पाना था, पी पुकी हो और जरा के कारण अब नहीं पी सकनी हो (कठोय०)। पीथ-सश स्त्री० [२०] १ पानी । २. घी । ३ पग्नि । ४ सूर्य । ५ काल । समय । ६ रा । रक्षण (को०)। ७ पान (फो०)। पीथकg+-वि० [हिं० पृथक ] दे॰ 'पृथक् । उ०-फतमाला पीथल्ल का, पीथक पारथ भग। तत्ता ताए लोह सम सदा अधाया जग। -रा० रू., मृ० १२६ । पोथि-सज्ञा पु० [ मं० ] घोदा । पीदही-सी० [हिं० पिद्दी ] दे० 'पिद्दी' । पीन'-वि० [सं०] १ स्थूल । मोटा। उ०-गजहस्तप्राय जानु- युगल पीन मासल कूर्मपृष्ठाकार श्रोणी ।-वर्ण०, पृ०४। २ पुष । प्रमृद्ध । परिवपित । ३ सपन्न । भरा पूरा । ४. वृहत् । बडा (को०)। पीन–समा पुं० स्थूलता । मोटाई । पीनक-मच्या स्त्री० [हिं० पिनकना ] १ मफीम के नशे में ऊषना। नशे की हालत में अफीमची का पागे की मोर झुक झुक पटना। कि० प्र०-लेना। गुहा०-पीनक में थाना-मफोमची गा नगे में घने लगना । २.पना । नीद प्राो मे भागेकी मोर पुरा पटना । जैसे,-तुम्हें शाम हुई जिनमें पानक मैने । मि०प्र०-लेना। पीनता-एमा पी• [0] १ मोटाई। म्यूलता । उ०-- दया भाग पूर्वगे हो पापी पीनता । -पाणी, पृ. 11 २माधिप । बहताय । पीनना-कि० म[1. पिज्जन ] : पोगा।' । २०-यहत कई पीनी यह विधि गरि, मुदित भए हरि गई । दादू दास प्रदर पीनारा सुदर पनि चलि जाई।-पुर. प्र०, ना० २, पृ० ८६. पीनल कोढ-सा मुं० [प्र. पनन्त कोर] पागप और दर मवयी ध्ययस्थापो या पागोपा गगह । पिणि । ताजी रात । जैगे, इडियन पी17 पोट । पीनवक्षा-वि० [#० पीनयएस धौनी रातोपाना । जिमरा यक्ष विशाल हो (०] । पीनस'-TET पुं[ M० ] नाफ का एर गेग जिनमें उगी प्राण या वार पहनानने यो मक्ति नष्ट हो जाती है। पिरोप-इस रोग में नास के नपने मुष्प, कसे भरे हुए और फ्लिन पर्यात् गीते रहते है तथा उनमें जलन भी रहनी है। यात पोर कफ के प्राोपाले जुनगम के नाण प्रार इसमे मिलते हैं। पीनस-मा पी० [फा० पीनस ] पालकी । पोनसा-या ग्री० [सं०] गगी। पीनसित-वि० [सं०] पोनस ने पीडित । पोनगी।। पीनसी-वि• [ मे० पीनसिन् ] जिगे पीस रोग हुपा हो । पीनम से पीरित। पीना' -क्रि० स० [१० पान ] १ किसी तरस प्रस्तु को दटपूट करके गले के नीचे उतारना । जल गा जलमग वस्तु फो मुह फे द्वारा पेट मे पहुँचाना । पेय पदापं तो मुस द्वारा ग्रहण करना । टना। पान करना । जैसे, पानी पीना, शरबत पीना, दूध पीना मादि। संयो॰ क्रि-जाना। -दालना।-लेना । २ किसी बात को दया देना। किसी कार्य के सबंध मे वचन या कार्य से फुछ न करना। किसी तयध में सर्वधा मौन पारण फर सेना । पूर्ण उपेक्षा करना । किसी घटना के स वष में अपनी स्थिति ऐसी कर लेना जिससे उनसे पूर्ण मसबध प्रकट हो । जैसे,—इस मामले को वह इस प्रकार पी जायगा, ऐगी माशा तो नही पी। ३ ( गाली, भामान मादि पर ) क्रोघ या उत्तेजना न प्रकट करना । सह जाना । वरदाश्त करना । जैसे,—इस भारी मपमान को वह इस तरह पी गया मानों कुछ हुमा ही नहीं। ४ किसी मनो- विकार को भीतर ही भीतर दवा देना। मनोभाव को विना प्रकट किए ही नष्ट कर देना । मारना । जैसे, गुस्सा पीना। ५. किसी मनोविकार का कुछ भी मनुव न करना।