पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३१६

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पीतल पीता तांवे और जस्ते के संयोग से बनती है। कभी कभी इसमे रोंगे पीतसार-सगा पुं० [सं०] १ पोतचदन । हरिचदन । २ मलया- या सीसे का कुछ प्रश मिलाया जाता है। गिरि चदन । सफेद चदन | ३ गोमेद मरिण । ४.अकोल ढेरा। ५ विजयसार । ६ शिलारस । विशेप-यह तवेि की अपेक्षा कुछ अधिक दृढ होती है । इसका व्यवहार बहुधा थाली, कटोरे, गिलास, गगरे, हहे आदि पीतसारक-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] १ नीम का पेट । २ ढेरे का गेट । वरतन बनाने में होता है । देवताओं की मूर्तियां, उनके पीतसारि-सशा स्त्री० [सं०] भजन । सुरमा (को०) । सिंहासन, घटे, अनेक प्रकार के वाद्य, यत्र, ताले, कलों के पीतसारिका-सचा पु० [सं० ] काला सुरमा । कुछ पुरजे और गरीबो के लिये गहने भी पीतल से बनाए पोवसाल-सचा पु० [स०] विजयसार । जाते हैं। पीतल की चीजें लोहे की चीजो से कुछ अधिक पीतसालक-सशा पुं० [सं०] विजयसार । पीतसार । टिकाऊ होती हैं, क्योकि उनमें मोरचा नहीं लगता । यह पीतस्कंध-सज्ञा पुं० [सं० पोतस्कन्ध ] १ सुअर । शूकर । २ एक पीतल दो प्रकार का होता है-एक कुछ सफेदी लिए पीले रंग वृक्ष। का और दूसरा कुछ लाली लिए पीले रंग का। रांगे का भाग अधिक होने से इसमें कुछ सफेदी और सीसे का भाग पीतस्फटिक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पुखराज । अधिक होने से लाली आ जाती है। यदि इसमे निकल का पीतस्फोट-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] खुजली । खसरा रोग । मेल दिया जाय तो इसका रग जर्मन सिलवर के समान हो पीतहरित-वि० [सं० ] पीलापन लिए हुए हरे रंग का [को॰] । जाता है । इसपर कलई बहुत अच्छी होती है। पीताग-सचा पु० [सं० पीताङ्ग] सोनापाठा । २ पीला रग । पीत वर्ण (को०)। पीतांबर'-सञ्ज्ञा पु० [ स० पीताम्बर ] १. पीले रंग का वस्म । प.. पीतल-वि० पीत वर्ण का । पीला [को०] । कपडा । २ मरदानी रेशमी धोती जिसे हिंदू लोग पोतलक-सञ्ज्ञा पुं० [स० पित्तलक ] पीतल [को॰] । सस्कार, भोजन आदि के समय पहनते हैं। पोतलोह-सज्ञा पुं० [ स०] पीतल । विशेष-इस वस का व्यवहार भारत मे बहुत प्राचीन काल पीतवर्ण-वि० [सं०] पीले रंग का । पीला। होता है । पहले कदाचित् पीली रेशमी धोती को ही ताब पोतवणे-सचा पु०१ पीला मेढक । स्वणमडूक । २ ताड । ताल कहते थे, पर अब लाल, नीली, हरी प्रादि रगो की राय वृक्ष। ३ कदंब । ४ हलदुमा । ५. लाल कचनार । ६. भी पीतावर कहलाती हैं। मैनसिल । ७. पीतच दन । ८. केसर । ६ पीला रंग । ३ श्रीकृष्ण । ४ नट । पौखूष । अभिनेता । ५ विष्णु (फो०)। पीत वर्ण। पीतांबर-वि० पीले कपडेवाला । पीतवसनयुक्त । पीताबरघारी। पीतवल्ली-सज्ञा स्त्री॰ [ स०] आकाशबेल । पीतामर-सज्ञा पुं॰ [सं० पीताम्बर ] दे० 'पीताबर'। उ पीतवान- सज्ञा पु० [ देश० ] हाथी की दोनो आँखो के बीच की प्रथम प्रयानह सु दरी मिली मक लिय वाल । पीतामर घरे दीप जोति रचि थाल।-० रा०, ८।१८। पीतवालुका-सज्ञा स्त्री० [सं०] हलदी। पीता'-संज्ञा स्त्री० [स०] १ हलदी। उ०-पीता गोरी का पीतवास-सज्ञा पुं० [सं० पीतवासस ] श्रीकृष्ण । । रजनी पिंडानाम |-अनेकार्थ०, पृ० १०५। २ दारु हलदी पीतवास-वि० जो पीले कपड़े पहने हो । पीतवसन युक्त। ३. बडी मालकंगनी । ४. भूरे रंग का शीशम । ५. प्रिया पीतपिंदु-सञ्ज्ञा पुं० [स० पीतविन्दु ] विष्णु के चरणचिह्नों मे १६ गोरोचन । ७ अतीस। ८ पीला केला । स्वर्णकदली से एक। ६ जगली बिजौरा नीबू । १० जदं चमेली। ११ देवदार पीतवीजा-सज्ञा सी० [सं० ] मेथी। १२ राल । १३ असगध । १४ शालिपर्णी। १५ कास पीतवृक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ सोना पीठा २ धूप सरल । पीता-वि० पीले रंग की । पीले रगवाली ( स्त्री अथवा वस्तु )। पीतशाल-सज्ञा पुं॰ [सं०] विजयसार । पीसा -सज्ञा पुं० [हिं० पित्ता] १० "पित्ता'। पीतशालक-सज्ञा पुं० [सं०] पीतशाल । विजयसार । मुहा०-पीते को मारना = दे० "पिचा मारना' । उ०-पीते पीतशेप'-सज्ञा पुं० [सं० पीत+शेप ] वह अश जो पीने के बाद मार मोई जन पूरा।-प्रारण, पृ० २६ । बचा हुआ हो [को०। पीताब्धि-सशा पुं० [सं०] समुद्र को पी जानेवाले, अगस्त्य मुनि । पीतशेष-वि० पीने के बाद बचा हुआ [को०] । पीताभ'-वि० [सं०] जिसमें से पीली प्रामा निकलती हो। पीला पीतशोणित-वि० [सं०] १ खून पीनेवाली (तलवार) । २. जिसने पीतवर्ण। उ०-पीताम, मग्निमय ज्यो दुर्जय ।- ५ रक्तपान किया हो (को०] । पृ०६२। पीतसरा-सञ्ज्ञा पुं० [सं० पितृव्य+श्वन , हिं० पितिया+ ससुर ] पीताम-सया पुं० पीला चदन । पीत चदन । चचिया ससुर । ससुर का भाई। पीताम्र-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का अभ्रक जो पीला होता है। व जगह। ।