पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३२१

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पीलपा २०३० पोलुपाक होती है । बहुत जल्दी उपाय न करने से यह रोग असाध्य पीला धतूरा-सशा पुं० [हिं० पीला+धतूरा ] १ भंड भाड । सत्या- हो जाता है। सीडवाले देशो में यह रोग अधिक होता है । नासी । घमोय । ऊँटक टारा । २ पीले वर्ण वा कनक पुष्प । कई प्राचार्यों के मत से हाथ, गला, कान, नाक, होठ आदि विशेष-काले या नीले धतूरे के समान इसमें भी तीन फूल एक की सूजन भी इसी के अतर्गत है । ही में लगे रहते हैं । खिल जाने पर इसका फूल सोने की पोलपा-सञ्ज्ञा पुं॰ [फा०] दे० 'पीलपाव' । तरह पीला दिखता है । यह वृक्ष बहुत कम दिखाई पड़ता है । पीलपाया-संश पु० [फा० पीलपायह] वह खभा जो ठेक या पीलापन-सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं० पीला+पन (प्रत्य० ) ] पीला होने का सहारे के लिये लगाया जाता है (को०] । भाव । पीतता। जर्दी। पीलपाल-सज्ञा पुं० [फा० पील, सं० पीलु + सं० पाल] पीलवान । पीलाबरेन-सज्ञा पुं० [ देश० ] वरियारा । बनमेथी । महावत । हाथीवान। पीलाम-सञ्ज्ञा पुं० [?] साटन नाम का कपडा । पीलबान-सज्ञा पुं॰ [ फा० ] दे॰ 'पीलवान' । उ०-पीलवाननि पीला शेर-सज्ञा पु० [हिं० पीला+फा० शेर ] एक प्रकार का बाघ संवारे ये मतग मतवारे ते । -हम्मीर, पृ० २३ । जो अफ्रीका में पाया जाता है और जिसका रग कुछ पीला पीलवान-सशा पुं० [फा० पील यान ] हाथीवान । महावत । होता है। फीलवान । पोलिमाल-सज्ञा स्त्री० [हिं० पीला ] पीलापन । पीतता। पीलसोज-सज्ञा पुं० [फा० फतीलसोज़ ] दीया जलाने की दीवट । पीलिया-मज्ञा पुं० [हिं० पीला+इया (प्रत्य॰)] कमल रोग चौमुखा दीवट । चिरागदान । उ०-पीलसोज फानुस कुपी जिसमें मनुष्य की प्रांखें और शरीर पीला हो जाता है । तिखटी सुमसालें । -सूदन (शब्द॰) । पीलीचमेली-सश सी० [हिं० पीली+ चमेली ] दे० 'चमेली'। पीला'-वि० [सं० पीतलक, (= पीला), अप० पीअर, पीअल] पीली चिट्ठी-सज्ञा स्त्री० [हिं० पीली+चिट्ठी ] विवाह का [ वि० स्त्री० पीली] १ हलदी, सोने या केसर के रग का निमन्त्रणपत्र जिसपर प्राय केसर, हलदी प्रादि छिडवा (पदार्थ) । जिसका रग पीला हो । पीतवर्ण । जर्द । २ ऐसा रहता है। सफेद जिसमें सुखर्जी या चमक न हो। रक्त का प्रभावसूचक पीली जुद्दी-सचा सी० [हिं० पीली+शुही ] दे० 'सोनजुही' । श्वेत । जिससे वर्ण की आभा न निकलती हो । कातिहीन । निस्तेज । घुघला सफेद । जैसे, पीला चेहरा । पोलीमिट्टी-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० पीली+मिट्टी ] एक प्रकार की मिट्टी जो चिकनी, कडी और रग में पीली होती है। मुहा०-पीला पड़ना या होना=(१) रक्त के प्रभाव के कारण ( मनुष्य के शरीर या चेहरे के ) रग में चमफ या काति न पीलु-सज्ञा पुं॰ [ स०] १. एक फलदार वृक्ष जिसे पीला या पीलू रह जाना। बीमारी के कारण चेहरे या शरीर से रक्त का कहते हैं। अभाव सूचित होना । ललाई, तेज या दमक न रह जाना । विशेष-वैद्यक के अनुसार इसका फल स्वादु, क्टु तिक्त, उष्ण, जैसे,—तुम दिन व दिन पीले हुए जा रहे हो, माखिर तुम्हें भेदक तथा वायु, कफ, पिच, गुल्म, प्रमेह, स धिवाक प्रादि कौन सा रोग लगा है। (२) भय के कारण चेहरे पर का नाशक माना गया है । मीठा पीलु कम गरम पौर त्रिदोष- सफेदी पा जाना । खून सूख जाना । रग उड़ जाना या फीका नाशक माना जाना है। पठ जाना । जैसे,—मेरी पुरत देखते ही वह एकदम पीला २ फूल । पुष्प । ३ परमारगु । ४ हाथी । ५ हड्डी का टुकडा । पड गया। अस्थिखड । ६. तालवृक्ष का तना। तालकांड । ७ बाण । पीला-संज्ञा पुं० एक प्रकार का रग जो हलदी या सोने के रग से ८ कृमि । ६ चने का साग । १० सरपत या सरकडे का मिलता जुलता होता है और जो हलदी, हरसिंगार आदि फूल । शरतृणपुष्प । ११ लाल क्टसरेया। किंकिरात वक्ष । से बनाया जाता है। १२ प्रखगेट का पेड। १३ काचन देश का प्रखरोट । १४ मुहा०—पोली फटना = पौ फटना । तडका होना। हथेली । करतल । पोला-सज्ञा पुं० [फा० पील ] शतरज का एक मोहरा । दे० पीलुभा-सच्चा पुं० [ देश०] मछली पकड़ने का बहुत बडा जाला । पीलुक-सञ्ज्ञा पुं॰ [ 10 ] एक प्रकार का कीडा । चीटी। पोला कनेर-सज्ञा पुं॰ [हिं० पीला+कनेर ] कनेर के दो भेदों में पीलुनी-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ चुरनहार । मुर्वा । २ चने का साग से एक जिसका फूल पीला और आकार में घंटी के समान कचूक शाक। होता है । लाल कनेर की अपेक्षा इसका पेड कुछ अधिक पीलुपत्र-सशा पु० [सं०] क्षीर मोरट । मोरट या मूळ लता। ऊँचा होता है । वैद्यक के अनुसार इसके गुण भी सफेद कनेर पीलुपी-सञ्ज्ञा सी० [सं०] १ चुरनहार । मूर्वा । २ कुंदरू । के समान ही होते हैं। कदूरी। विशेष-दे० 'कनेर'। पीलुपाक-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] वैशेषिको का मत । वैशेषिकों का एक 'पील'।