पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३२५

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पुदल ३०३४ पुंछाला गिरने से जो पीठ हुए उनमें एक यह भी है। चीनी यात्री पुंसवन' ---संज्ञा पुं० [मं०] १ दुग्ध । दूध । २ हिजातियों के सोलह हुएन्साग ने इस नगर को एक पमृद्ध नगर लिखा है । इसकी सस्थागे में से दूसरा गम्भार जो गर्भाधान मे तीमरे महीने स्थिति कहा है, इसपर मतभेद है । कोई इसे रंगपुर के पास में किया जाता है । गमिणी पुत्र प्रसव फो इस अभिप्राय कहते हैं और कोई पबना को ही प्राचीन पुडघंन के स्थान से यह किया जाता है। पर मानते हैं । पर कुछ लोगो का कहना है कि यह नगर विशेप-गर्भ हिलने टोलने के पहले ही यह मसार होना गगातट के पास होना चाहिए जैमा कथासरित्सागर और चाहिए। प्रच्छे दिन और मृत में अग्निस्थापना करके हुएन्साग के उल्लेख से पाया जाता है। प्रत मालदह से दो स्त्री और पुरुष हुशासन पर ठने हैं। पति उठकर स्त्री का कोस उत्तरपूर्व जो फीरोजाबाद नाम का स्थान है वही दाहिना कया स्परां पता है, फिर दाहिने हाथ से पी के प्राचीन पुट्रबर्धन हो सकता है। वहाँ के लोग उसे पव नाभि को स्पर्श करता है. फिर दाहिन हाथ में स्त्री के नाभि तक पोंडोवा, पाइया या वडपूडों कहते हैं । को स्पर्श करता हुपा गुच्छ मप्र पढ़ना है। यहां तक सो प्रथम पुदल-सञ्ज्ञा पुं० [?] जहाज के मस्तूल का पिछला भाग । पुसपन हुपा। फिर दूसरे दिन या टमी दिन रिमी वटवृक्ष (लश०) । पी पूर्वोत्तर शाखा की टहनी पो दो फाँबाने मिरे (शुगा = पु ध्वज-सज्ञा पुं॰ [ 10 ] १ मूषक । चूहा । २ कोई भी पशु जो फुनगी) को जो या उपद देकर सात वार मत्र पढपर क्रय नर हो (को॰] । करते है और मत्र पढते हए नोचकर लाते हैं। वट की फुनगी को साफ सिन पर प्रोग के पानी से पीसते हैं। नाग-सज्ञा पुं॰ [ मं० पुन्नाग ] ३० 'पुन्नाग' । फिर इस बरगद के रस को पश्चिम प्रोर मुंह करके बैठी पुभाव-ना पुं० [सं० पुग्माव ] १ पुरुषत्व । २ व्याकरण में ली के पीछे सटा होकर पति उसकी नाक के दाहिने नहुने में पुल्लिग (को०] । डाम देता है। पुमत्र-शा पुं० [सं० पुम् मन्त्र ] वह मन जिसके अंत में माहा' . गर्भ (को०)। ४ वैमो का एकन। मागपत में यह यत या 'नम' न हो। स्सियो के लिये पतष्प कहा है। पु यान-तज्ञा पुं० [सं०] सवारी, पालकी या डाँडी जिगे पुरुप पुंसवन- प्रत्रोतादक । ढोते हैं [को०] । पुसवान् -पि. [म० पु पयत् ] [ वि० ० पु सवती ] पुष वाला। पु योग-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] पुरुष का योग । पुरुषसपर्क । पुरुष से पुसानुज-१० [ म० ] जिसको वटा भाई हो यो । सवध (को०] । पुसी-मज्ञा पी[ 10 ] वह गाय जिसको वडा हो [को०] । पुरत्न-सज्ञा पुं॰ [सं० ] सु दर व्यक्ति । प्रच्छा व्यक्ति (फो०] । पुस्काफिल-मा पुं० [अ० ] कोकिन पदो । नर गोयल [को॰] । पुराशि-सज्ञा पुं० [सं०] ज्योतिप में नर राशि (को॰) । पुस्त्व-मज्ञा पुं॰ [40] १ पुग्पत्त । पुरष का धर्म । २ पुरुष की पुलिंग-सज्ञा पुं॰ [सं० पुलिङ्ग ] १ पुरुष का निह । २ शिश्न । म्त्रीसहवास की शक्ति । ३ शुक्र । वीर्य । ४ (व्याकरण में) ३ व्याकरण में पुरुषवाचक शब्द । पुजिगत्व (को०)। ५ गधतृण । पुर्वत्-वि० [सं०] १ पुरुष की तरह । पुल्लिग के समान पुस्त्वविप्रह-सज्ञा पुं॰ [ 10 ] भूतृण । एक सुगधयुक्त पाम । (व्याकरण)। पुंछल्ला-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'सुधार' । पु वत्स -सञ्चा पुं० [सं०] बछडा । गोवत्स [को०] । पुंछवाना-क्रि० स० [हिं० ] ३० 'पुछवाना' । पुवृष-सज्ञा पुं० [ म० ] छठू दर । पुंछार+-मज्ञा पुं० [हिं पूछ+पार (प्रत्य॰)] मयुर । मोर । पुश्चल --सचा पुं० [सं०] व्यमिवारी पुरुष को०] । उ०-(क) जानि पुछार जो भय बनवासू । रोवे रोवं परि फांद न भासू । —जायसी (शब्द०)। (स) डे फेरि जानु पुश्चिलो'-वि० सी० [ म० ] अनेक पुरुषो के पास जानेवाली गिउ गाडे । हरे पुछार ढगे जनु ठा।-जायनो (शब्द०)। (स्त्री) । व्यभिचारिणी । कुलटा । छिनाल । (ग) कुटी में मेरी सखी है । चार जो मिट्टी की है।- पुश्चली - सज्ञा स्त्री० कुलटा ली। प्रतापनारायण मिश्र (शन्द०)। पुश्चलोय -सज्ञा पुं० [ स० ] कुलटा या वेश्या का पुत्र। विशेष-यह शब्द पु. ही मिलता है। स्त्री प्रयोग उदाहरण पुंश्चलू -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ वैदिक म० ] कुलटा स्त्रो [को०] । (ग) को छोड और फही देखने में नहीं पाया। पुश्चिह्न -सञ्ज्ञा पुं॰ [ मं० पुरुषसूचक चिह्न । लिंग । शिश्न [को०] । पुंछाला-सज्ञा पुं० [हिं० 'छ+ला (प्रत्य०) ] १ पुउन्ला । पु स-मज्ञा पुं० [सं० पुस् ] पुरुष । नर। मदं । उ०-प्रादि दुबाला । पूछ की तरह जोडी हुई वस्तु । जैसे,—(क) पतग या कनकौवे के नीचे बंधी हुई लबी धज्जी जो नीचे लटकती हु राम हि अत हु राम ही मध्ध हु राम हि पुस न वामै । रहती है। (ख) टोपी के पीछे टंकी हुई धज्जी जो नीचे -सु दर० प्र०, भा॰ २, पृ० ५०२ । लटकती रहती है। १ वरावर पीछे लगा रहनेवाला । साथ पु सवत्-वि० [स०] दे० 'पु वत्' (को०] न छोडनेवाला । बराबर साथ में दिखाई पड़नेवाला । जैसे,-