पुंछोरी पुक्कसी यह जहाँ जाता है यह पुछाला उनके साथ रहता है । ३ या प्रकुश ( = पुकारना)] १. नाम लेकर बुलाना । साथ में जुडी या लगी हुई वस्तु या व्यक्ति जिसकी उतनी अपनी ओर ध्यान भाकर्पित करने के लिये क'चे स्वर से आवश्यक्ता न हो। जैसे,—तुम आप तो जाते ही हो एक सबोधन करना। किसी का इसलिये जोर से नाम लेना पुछाला क्यो पीछे लगाए जाते हो। ४. पिछलग्गू । खुशामद जिसमे वह ध्यान दे या सुनकर पास पाए । हाँक देना । टेरना से पीछे लगा रहनेवाला । चापलूस । प्राश्रित । आवाज लगाना । जैसे,—(क) नौकर को पुकारो वह पुंछोरी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० पूँछ+बारी (प्रत्य॰)] दे० 'पुछल्ला' । प्राकर ले जायगा। (ख) उसने पीछे से पुकारा, मैं खडा हो उ०-फेरि के नैन परे तन पै बदनामी की तापै लगाइ गया। पुछोरी। प्रीति की चग उमंग चढाय के सो हरि हाथ बढाय सयो० कि० देना। के तोरी।-भारतेंदु ग्र०, मा० २, पृ० २६४ । २ नाम का उच्चारण करना । रटना । धुन लगाना । जैसे, पुंडरिया पुंडरी - सज्ञा श्री० [सं० पुण्डरीक] पुडरी नामक पौधा । हरिनाम पुकारना । ३ ध्यान आकर्षित करने के लिये कोई पुंहतना- क्रि० प्र० [हिं० पहुँचना ] दे० पहुंचना' । उ० वात जोर से कहना। चिल्लाकर कहना । घोषित करना। मजल के वरे पुहतो नगर उदधमत । वही कागद समय हुती जैसे, (क) ग्वालिन का 'दही दही' पुकारना । (ख) मगन मिल हकीकत ।-रघु० रू०, पृ० ७६ । का द्वार पर पुकारना । उ०-कारे कबहुँ न होय आपने पुत्रा-सज्ञा पु० [ स. पूप ] मीठे रस मे सने हुए प्रांटे की मोटी मधुवन कहीं पुकारि । —सूर (शब्द०)। ४ चिल्लाकर पूरी या टिकिया। मांगना । किसी वस्तु को पाने के लिये प्राकुल होकर बार बार उसका नाम लेना । जैसे, प्यास के मारे सब पानी पानी' पुत्राई-सज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] एक सदाबहार पेड । पुकार रहे हैं। ५. रक्षा के लिये चिल्लाना । गोहार लगाना । विशेष-इसकी लाडी दृढ़, चिकनी और पीले रंग की होती है। छुटकारे के लिये प्रावाज लगाना । उ०-पौव पयादे घाय यह घरों में लकडी, मेज, कुरसी, आदि बनाने के काम में प्राती गए गज जबै पुकारयो । - सूर (शब्द०)। ६ प्रतिकार के है । लाही प्रति घनफुट १७ या १८ सेर तोल में होती है। लिये किसी से चिल्लाकर कहना । किसी के पहुंचे हुए दुःख यह पेड दारजिलिंग, सिकम (सिक्किम), भोटान प्रादि पहाड़ी या हानि को उससे कहना जो दह या पूर्ति की व्यवस्था करे । प्रदेशो में आठ हजार फुट की ऊचाई तक होता है। इसी फरियाद करना। नालिश करना । उ०-जाय पुकारयो नृप से मिलता जुलता एक और पेड़ होता है जिसे डिडिया कहते दरबार ।-सबल (शब्द॰) । ७ नामकरण करना। है और जिसके पत्तो मे एक प्रकार की सुगध होती है । पभिहित करना । सज्ञा द्वारा निर्देश करना। जैसे,—(क) पुत्राल'-सज्ञा पुं॰ [देश॰] एक चा जगली पेड जिसकी लकडी तुम्हारे यहाँ इस चिडिया को किस नाम से पुकारते हैं । वहुत मजबूत और पीले रंग की होती है और इमारतों में (ख) यहाँ मुझे लोग यही कहकर पुकारते हैं । लगती है। यह दारजिलिंग सिक्किम मौर भोटान के जगलो पुक्करवत्तो-मञ्ज्ञा स्त्री० [स० पुष्कलावती] वह प्रदेश जो श्रीराम ने में होता है। भरत के पुत्र को दिया था। दे० 'पुष्कलावती' । उ०- पुयालरे--सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पलाल ] दे० 'पयाल' । तक्षक ने तखसली, पुकर नै पुक्करवत्तिय ।-रघु. ६०, पुकार-सशा स्त्री॰ [हिं० पुकारना ] १ किसी का नाम लेकर बुलाने पु० २८०। की क्रिया या भाव । अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के पुक्कश'--सशा पुं० [सं०] १. चाडाल । लिये किसी के प्रति केचे स्वर से स वोधन । सुनाने के लिये विशेष-मनुस्मृति के अनुसार निषाद पुरुष और शूद्रा के गर्भ जोर से किसी का नाम लेना या कोई बात कहना। हाँक । से और उशना के अनुसार शूद्र पुरुष और क्षत्रिया स्त्री के टेर । २ रक्षा या सहायता के लिये चिल्लाहट । वचाव या गर्भ से इस जाति की उत्पत्ति है। मदद के लिये दी हुई आवाज । दुहाई। उ०--प्रसुर महा उत्पात कियो तब देवन करी पुकार । —सूर (शब्द॰) । २ अधम व्यक्ति । नीच पुरुष । क्रि० प्र०—करना ।-मचना -मचाना ।—होना । पुक्कश-वि० अधम । नीच ३ प्रतिकार के लिये चिल्लाहट । क्सिी से पहुंचे हुए दुख या पुक्कशक-वि०, सञ्चा पु० [ स० ] दे॰ 'पुक्कश' । हानि का उससे निवेदन जो दह या पूर्ति की व्यवस्था करे। पुक्कशो-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [सं० ] दे० 'पुक्कसी' (को॰] । फरियाद । नालिश । जैसे,—उसने दरवार में पुकार को। पुक्कष-वि०, सज्ञा पु० [सं० ] दे॰ 'पुक्कश'। ४ मांग की चिल्लाहाट । गहरी मांग। जैसे,—जहाँ जामो पुक्कस-वि०, सञ्ज्ञा पु० [सं०] दे॰ 'पुक्कश' । वहाँ पानी पानी की पुकार सुनाई पडती थी। पुक्कसी-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० ] कालापन । कालिमा। २ नील क्रि० प्र०—करना।-मचना ।-मचाना।-होना। का पौधा । ३ फुड्मल । कली। कोरक (को०) ४ पुक्कश पुकारना-क्रि० स० स० सप्लुतकरण (= आवाज को खींचना ) जाति की स्त्री (को०)।
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३२६
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