पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३३०

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पुटर २०६६ पुटित . जाती है। क्रि० प्र०-देना। पुटपरी -सज्ञा स्त्री॰ [ देशी ] १ धतूरे की पुट दी हुई मदिरा । २ पगचपी। पैर पर चपी करने की क्रिया उ०- जीव नरेश ३ बहुत हलका मेल । अल्प मात्रा में मिश्रण । भावना । जैसे, भांग में सखिया का भी पुट है। अविद्या निद्रा सुख सज्या सोयो करि हेत । कर्म षवास पुटपरी लाई तातें बहुविधि भयो अचेत ।-सु दर० प्र०, भा० २, पुट-सञ्ज्ञा पुं० [ स०] १ आच्छादन । ढाकनेवाली वस्तु । जैसे, पृ०६४१ । रदपुट, नेत्रपुट । २ दोना । गोल गहरा पात्र । कटोरा । पुटपाक-सशा पुं० [स०] १ पत्ते के दोनों में रखकर मौषध उ०-(क) पियत नैन पुट रूप पियूखा। -तुलसी (शब्द०)। पकाने का विधान ( वैद्यक )। (ख) जलपुट पानि घरो प्रांगन में मोहन नेक तो लीजै ।- विशेष-पकाई जानेवाली औषध को गभारी, बरगद, जामुन, सूर (शब्द०)। ३ दोने के आकार की वस्तु । कटोरे की भादि के पत्तो में चारों प्रोर से लपेट दे और कसकर बांध, तरह की चीज । जैसे, अजलिपुट । ४ मुहबद बरतन । दे । फिर पत्तो के ऊपर गीली मिट्टी का अगुल दो अगुल औषध पकाने का पात्र विशेष । मोटा लेप कर दे। फिर उस पिंड को उपले की आग में डाल विशेष-दो हाथ लबा, दो हाथ चौडा, दो हाथ गहरा एक दे। जब मिट्टी पककर लाल हो जाय तब समझे कि दवा चौखूटा गड्ढा खोदकर उसमें बिना पथे हुए उपले डाल दे। पक गई। नेत्ररोगो में भी पुटपाक की रीति से प्रौषध पका- उपलो के ऊपर औषध का मुंहबद वरतन रख दे और ऊपर कर उसका रस पांख में डालने का विधान है। स्निग्ध मांस से भी चारों ओर उपले डालकर आग लगा दे। दवा पक और कुछ प्रोषध लेकर द्रव पदार्थ मिलाकर पीस डाले फिर जायगी। यह महापुट है। इसी प्रकार गडढे के विस्तार के सबको ऊपर लिखित रीति से पकाकर उसका रस निचोडकर के हिसाब से कपोतपुट, कोक्कुटपुट, गजपुट, भाहपुट, इत्यादि अखि मे डाले। हैं, जैसे, सवा हाथ विस्तार के गड्ढे में जो पात्र रखा जाय २ मुहबद बरतन में दवा रखकर उसे गड्ढे के भीतर पकाने वह गजपुट है। का विधान । ५ कटोरे के पाकार के दो बरावर बरतनों को मुंह मिलाकर विशेष-भस्म बनाने के लिये धातुएँ प्राय इसी रीति से फूकी जोडने से बना हुमा बद घेरा । सपट । ६ घोड़े की टाप । ७. प्रत पट । अंतरौटा । ८ जायफल । ६ एक वर्णवृत्त जिसके ३. फुटपाक द्वारा सिद्ध रस या औषध । उ०-रावण सो २० प्रत्येक चरण में दो नगण, एक मगण और एक यगण होता राज सुभट रस सहित लक खल खलतो। करि पुटपार है। जैसे,-श्रवणपुट करी ना जान रानी। रघुपति कर नाकनायक हित घने घने घर घलतो।—तुलसी (शब्द०)। याकी मीचु ठानी। १० कोश (को०)। ११ खाली जगह । पुटपीसचा पुं० [सं० पुट ] सपुट । कली । पुट । उ०—कब पुटपी रिक्त स्थान । जैसे, नासापुट, कर्णपुट (को०)। १२ कौटिल्य कब फुरनै पावे। कब नाभिकमल महँ जाय समावै ।- के अनुसार पोटली या पैकेट जिसपर मुहर की जाती थी। प्राण, पृ०२६। पुटकद्-सशा पुं० [सं० पुटकन्द ] कोलकद । बाराही कद । पुटभेद-संज्ञा पुं० [सं०] १ जल का भवर । २ एक प्रकार का पुटक-सज्ञा पुं० [सं०] कमल । वाद्य (को०) । ३ नगर । पत्तन । विशेष-शेष अर्थ पुट के समान । पुटभेदक-सञ्ज्ञा पुं० [ ० ) परतदार प्रस्तर जो आधा पुरसा खोदने पुटकिनी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ पपिनी । कमलिनी । २ पद्मसमूह । पर जमीन के भीतर मिले । ( वृहत्सहिता)। ३. कमलो से भरा देश । विशेष-कहाँ खोदने से जल निकलेगा इसका विचार जिस उदकार्गल प्रकरण में है उसी में इसका उल्लेख है। पुटकी'-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० पुटक (= दोना) ] पोटली । गठरी । पुटकी-सज्ञा स्त्री॰ [हिं० पटपटामा (= मरना) ] १ आकस्मिक पुटभेदन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] नगर । पत्तन । उपनगर । कस्बा [को०] । मृत्यु । मौत जो एकबारगी आ पडे । २ वचपात । दवी पुटरिया-सहा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पोटली' । आपत्ति । माफत । गजब । पुटरी-मज्ञा स्त्री॰ [ स० पोटलिका ] दे० 'पोटलो' । मुहा०-(किसी पर) पुटकी पड़ना = (१) मौत पाना । अकाल पुटली-मज्ञा स्त्री० [ स० पट्ट, हिं० पटुली ] दे० 'पटुली' । । मृत्यु होना । (२) वच पटना । आफत पाना । गजब गिरना उ०-धक भरै पुटली पे बैठे मुख लखि जोव जिवावै । (सि. शाप)। -धनान६, पृ०४६८। पुटकी-सज्ञा स्त्री० [हिं० पुट (= हलका मेल ) ] बेसन या भाटा पुटनो-सझा स्त्री॰ [सं० पोटलिका ] दे० 'पोटली'। जो तरफारी के रसे में उसे गाढ़ा करने के लिये मिला दिया पुटालु-सशा पुं० [ स०] कोल कद । वाराही कद । जाता है । पालन । पुटास-सज्ञा पुं० [सं० पोटास ] दे० 'पोटास'। पुटग्रीव-सचा पुं० [सं०] १ गगरा । कलसा । ताये का पुटिका-पञ्चा स्त्री० [सं०] १ सपुट । पुडिया । २ इलायची । गगरा (को०)। पुटित'-वि॰ [ स०] १ जो सिमटकर दोने के प्राकार का हो गया पुटन-सक्षा पुं० [ स०] माच्छादन करना। हो । २ स कुचित । सुकडा हुमा । ३ फटा या फाडा हुमा। पुटनो-सच्चा स्त्री० [सं० ] फेनी नाम की मिठाई । ४ सिला हुमा । ५ बद । ६ घृष्ट । घर्षित । पूणित (को॰) ।