पटित ० ३०४० पुणि ७ प्रादि और प्रत में किसी विशेष मत्र या बीजाक्षर से युक्त पुठवाल-सज्ञा पुं० [म० पृष्ठक, हिं० पुट्टा + चाला] १ चोरों (मत्र, श्लोक आदि)। के दल का वह बलिष्ठ घादमी जो संघ के मुंह पर पहरे पुटित-सञ्ज्ञा पुं० हाथ की अजलि [को०) । के लिये खडा रहता है । २ भले बुरे काम मे किसी का साथ देनेवाला । मददगार । पृष्ठरक्षण । पुटिया-मचा स्त्री॰ [ दश० ] एक प्रकार की छोटी मछली। पुटियाना-क्रि० स० [हिं० पुट + याना (प्रत्य॰) ] फुसलाकर पुछ-सज्ञा स्त्री० [ मं० पृष्ट, प्रा० पुट्ट ] 70 'पीठ' । उ०—जस अपने पक्ष में करना। स्वाथसिद्धि के लिये किसी को अपने छल जागणहार, घर पुट त्यागणहार घिन । अरुणानुज असवार कर छाया ज्यो सिर करे । -वावी. ग्र०, भा०३, अनुकूल बनाना। पृ० ४५ । पुटी-च्चा स्त्री० [सं० पुट ] १ छोटा दोना । छोटा व टोग । उ०- भरि भरि परन पुटी रचि रूरी। -तुलसी (शब्द०)। पुग-सज्ञा पुं० [सं० पुटक ] 'पुटक' । उ०-पई पुटंग तह २ खाली स्थान जिसमें कोई वस्तु रखी जा सके । जैसे, पेम की एक प्रखडी धार । हरिया हरिजन पीसी दुनियाँ चचुपुटी । ३ पुडिया । ४ कोपीन । लंगोटी । ५ पाच्छादन सुधी न सार। -राम० घम०, पृ०६३ । (को०) । (अन्य प्रथ 'पुट' शब्द के समान ) । पुड़ा-सा पु० [मं० पुट ] [ प्रा० अल्पा० पुडिया ] बडी पुहिया या बहल । पुटीन-सञ्ज्ञा पु० [अं० पुटी ] किवाडो मे शीशे बैठाने या लकही के जोड, छेद, दरार प्रादि भन्ने मे काम पानेवाला एक पुडा-सा पुं० [हिं० पुट्ट ] वह चमडा जिसमे ढोल मढ़ा मसाला जो अलसी के तेल मे खरिया मिट्टी मिलाकर बनाया जाता है। जाता है। पुडिया-नी० सज्ञा [सं० पुटिका, प्रा० पुडिया] १ मोड या लपेटकर पुटोटज-पज्ञा पुं० [स० पुट + उटज] सफेद छत्र । श्वेत छाता (को॰) । सपुट के आकार का किया हुपा कागज या पत्ता जिसके पुटोदक-सञ्ज्ञा पुं० [स० पुट+ठदक ] जिसके भीतर जल हो भीतर कोई वस्तु रखी जाय । जैसे,-पसारी ने एक पुडिया नारियल [को॰] । बांधकर दी। पुटोला-सञ्ज्ञा पुं॰ [हिं० ] एक प्रकार का रेशमी वस्त्र । पटोल । कि०प्र०-पाँधना। उ०-फाडि पटोला धज करौं कामलडी पहिराउँ । जिहि २ पुटिया मे लपेटी हुई दवा की एक खुराक या मात्रा । जैसे,- जिहि भेषा हरि मिल सोइ सोइ भेप कराउँ। -कबीर एक पुटिया सुवह साना एक शाम । ३. प्राधारस्थान । ग्र०,११। खान । भडार । घर । जैसे,—यह बुढिया अाफत की पुट्टी-सञ्ज्ञा सी॰ [देश॰] मछलियो के पकडने का झावा । पुडिया है। पुठ्ठ-सचा सी० [ सं० पुष्ट, प्रा० पुट्ठ ] दे० 'पीठ' । उ०-तिन पुड़ी-सच्चा सी० [हिं० पुडा ] वह चमडा जिससे ढोल मढ़ा जाता पर तुट्टै वीज जौं जिन पर राज अट्ठ । राज काज समुह है। १२ दे० 'पुडिया' । ३ पूढी । भिरन दई न कबहू पुट्ठ । -पृ० रा०, ५। ५। पुण'-सा पुं० [सं० पुण्य ] २० 'पुण्य' । उ०-पुण सो हुयो फल पुट्ठा-सञ्चा पुं० [ स० पुष्ट या पृष्ठ ] १ चूतर का ऊपरी कुछ कडा प्राज प्रापत श्राप दरसण वारण।-रघु० रू०, पृ० १२६ । भाग । २ चौपायो विशेषत घोडो का चूतड । पुरण-क्रि० वि० [स० पुन ] पुन । फिर । मुहा०-पुठे पर हाथ न रखने देना = चचलता और तेजी के पुणग-सज्ञा पुं० [ सं० पन्नग ] दे० 'पन्नग'। उ०-घर नीगुल कारण सवार को पास न आने देना । ( घोडो के लिये ) । दीवउ सजल, छाजइ पुणग न माह ।-ढाला, दू० ५०६ । ३ घोडों को सस्या के लिये शब्द । जैसे,—(क) इस साल पुणग-सशा पुं० [सं० पुटक, राज० पुग] 'पुटक' । उ०- कितने पट्टे लाए ? (ख) फी पृट्टा १००) के हिसाब से दाम दादू पा विना तनि प्रीति न उपज सीतल निकट जल ले लो। ५ पृट्टे पर का मजबूत चमड़ा । ( चमार ) । घरिया। जनम लगै जिव पुणग न पीव, निरमल दह दिस पुट्ठी-सशा पी० [हिं० पुट' ] वैलगाडी के पहिए के घेरे का भरिया । -दादू०, पृ०७२ । एक भाग जिसमे पार पोर गज घुसे रहते हैं। पुणचा-तज्ञा पुं० [हिं० दे० 'पहुँचा' । उ०-पुणचा जडत विशेष-किसी पहिए मे ४ किसी में ६ ऐसे भाग मिलकर पूरा जडाऊ पुणची कल प्राजान भुजा केयूर । -रघु० रू०, पृ० घेरा बनाते हैं। २५६ । पुठवार'-क्रि० वि० [हिं० पुट्ठा] पीछे। बगल में । उ०—तुम सैन पुणची-सच्चा स्त्री० [हिं० ] दे० 'पहुंची'। उ०-पुणचा जडत सजे पुठवार रहो भव प्रायसु देह न और सह्यो। हम जाय जडाऊ पुणची कल प्राजान भुजा फेयूर । -रघु० रू०, ५० जुरे पहले उन सौं तुम गौर फरी लखि लोह बह्यो।-सूदन २५६ । (शब्द०)। पुणिंद-सज्ञा पुं० [सं० फणीन्द्र ] फरणीद्र । सर्प । उ०-मारू पुठवार-सञ्ज्ञा पुं॰ [ स० पृष्ट ] दे० 'पुठवाल'-१ । १०-ठाढ़े खडे घूघटि दिढ मई, एता सहित पुरिणद । कीर, भमर, कोकिल, पुठवार, भली विघि लूटही।- कबीर श०, भा॰ २, पृ० कमल, चद, मयद, गयद ।-ढोला०, दू०४५५ । १२२ । पुणि-क्रि० वि० [ सं० पुन. ] दे० 'पुनि' । .
पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/३३१
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